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________________ 10 गीता दर्शन भाग-1 -K प्रथम दिन-कहने के लिए प्रथम दिन, बात करने के लिए। | हो गई; जो तेरी मर्जी। प्रथम दिन, अन्यथा सृष्टि के लिए कोई प्रथम दिन नहीं है और कोई | | मेरे देखे, इन दो वाक्यों के बीच में क्रांति घटित हुई। जिस क्षण अंतिम दिन नहीं है-कृष्ण कह रहे हैं, प्रथम दिन जगत का स्रष्टा जीसस ने कहा, यह क्या कर रहा है? उस समय जीसस का मैं जगत को जो जीवन, गति और सृजन देता, वह भी यज्ञ है। और | मौजूद है। अभी कर्म यज्ञ नहीं हुआ। दिखाई पड़ गया जीसस को जिस दिन कोई दूसरा व्यक्ति भी उसी तरह यज्ञरूपी कर्म में संयुक्त कि भूल हो गई। क्योंकि जब कोई कहता है परमात्मा से कि यह हो जाता है, वह भी स्रष्टा का हिस्सा हो जाता है, वह भी उसका | | क्या कर रहा है? तो उसका मतलब यह है कि कुछ गलत कर रहा अंग हो जाता है। | है। उसका मतलब यह है कि जो होना चाहिए था, वह नहीं हो रहा मीरा नाचती है। कोई अगर मीरा को पूछे, तू नाचती है? तो मीरा है। उसका मतलब यह है कि मैं तुझसे ज्यादा समझदार था। मुझसे कहेगी, नहीं, वही नचाता है, वही नाचता है। अगर कोई कबीर को | | भी पूछ लेता, तो यह करने को न कहता! भूल हो रही है ईश्वर से कहे कि तुम कपड़े बुनते हो, किसके लिए? तो कबीर कहते हैं, वही | | कुछ। जब जीसस कहते हैं, यह क्या कर रहा है? गहरी शिकायत बुनता है, उसी के लिए बुनता है। इसलिए कबीर जब कपड़ा बुनते | | है। जीसस अभी कर्म में हैं। अभी यज्ञ नहीं हो पाया। लेकिन एक और गांव की तरफ कपडे बेचने जाते. तो राह पर जो भी मिलता ही क्षण में सारी क्रांति घटित हो गई। उससे कहते कि राम! देखो कितना अच्छा, तुम्हारे लिए बनाया है। तो मैं तो निरंतर कहता हूं कि सूली पर जिस क्षण जीसस ने कहा कहते, राम! बाजार में बैठते, तो ग्राहकों को कहते कि राम, कहां | | कि परमात्मा, यह क्या दिखला रहा है? उस समय तक वे मरियम चले जा रहे हो? कितनी मेहनत की है। ग्राहक भी मश्किल में पड़ते। के बेटे जीसस थे। और एक क्षण बाद एक क्षण, मोमेंट-जैसे उनकी कल्पना में न होता यह कि उन्हें कोई राम पुकारेगा। ही उन्होंने कहा, जो तेरी मर्जी; माफ कर, जो तू चाहे; दाई विल बी और जब कबीर के पास हजारों, सैकड़ों भक्त आने लगे, तो | डन, तेरी इच्छा पूरी हो, उसी क्षण वे क्राइस्ट हो गए। उसी क्षण उन्होंने कहा, बंद करिए आप कपड़ा बुनना। आपको कपड़ा बुनने | | क्रांति घटित हो गई। वे मरियम के बेटे नहीं रहे। उसी क्षण वे की क्या जरूरत है ? तो कबीर ने कहा, जब परमात्मा को अभी | परमात्मा के हिस्से हो गए। उसी क्षण में यज्ञ हो गया कर्म। अब बुनने की जरूरत है, तो मैं बुनने से कैसे बचूं! अभी परमात्मा ही | | अपनी कोई मर्जी न रही; अपनी कोई बात न रही। जो उसकी मर्जी! बुने जा रहा है जीवन को और जगत को। तो मैंने तो अपने को उसी | | परमात्मा इस बड़े सृजन को फैलाकर भी निरंतर यही कह रहा के हाथ में छोड़ दिया है। अब उसी की अंगुलियां मेरी अंगुलियों से | है, इस बड़ी धारा को चलाकर निरंतर यही कह रहा है-पहले बुनती हैं। उसी की आंखें मेरी आंखों से देखती हैं। अब वह चाहेगा, | | दिन, बीच के दिन, आखिरी दिन-एक ही बात है कि हम इस तो बंद हो जाएगा बुनना। और वह चाहेगा, तो जारी रहेगा। अब छोटे-से मैं को बीच में न ले आएं। उस मैं के कारण ही सारा उसकी मरजी। उपद्रव, सारा विघ्न, सारा उत्पात खड़ा हो जाता है। उस मैं के तो कबीर कपड़ा बुनना बंद नहीं करते, कपड़ा बुने चले जाते हैं। | आस-पास ही कर्म बंधन बन जाता है। जैसे परमात्मा मुक्त...। मेरे देखे कबीर ज्यादा गहरे साधु हैं, कपड़ा बुनना जारी रखते हैं। | कभी आपने खयाल किया कि परमात्मा कहीं दिखाई नहीं जो चलता था, चलता है। फर्क पड़ गया लेकिन। यज्ञ हो गया अब | | पड़ता। सृष्टि दिखाई पड़ती है और स्रष्टा दिखाई नहीं पड़ता। कर्म। अब वे कहते हैं, वही बुनता है, उसी के लिए बुनता है। मैं | लेकिन कभी सोचा आपने कि इसका कारण क्या होगा? अनेक हूं ही नहीं। इसलिए ठीक है, जो उसकी मर्जी। लोग कहते हैं, ईश्वर कहां है? असल में जिसका मैं नहीं है, वह जीसस को जिस दिन सूली लगाई गई, उस दिन सूली पर जब दिखाई कहां पडे। असल में जिसको कभी खय उनके हाथ में कीले ठोंके गए, तो एक क्षण को जीसस भी कंप गए। कि मैंने सृष्टि की है, वह दिखाई कहां पड़े! जो किया है, वह दिखाई एक क्षण को जीसस भी डांवाडोल हो गए। एक क्षण को जीसस के पड़ रहा है और करने वाला बिलकुल दिखाई नहीं पड़ रहा है! कर्ता मुंह से निकल गया, हे परमात्मा! यह क्या कर रहा है? यह क्या बिलकुल अदृश्य है और कर्म बिलकुल दृश्य है। दिखला रहा है? शिकायत हो गई। जीसस को खयाल में भी आ ऐसे ही कृष्ण कह रहे हैं कि तू ऐसे कर्म में जूझ जा कि कर्म ही गई। और दूसरे ही वाक्य में उन्होंने कहा, क्षमा कर, माफ कर, भूल दिखाई पड़े और कर्ता बिलकुल दिखाई न पड़े; कर्ता रहे ही न। 348
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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