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________________ SIT गीता दर्शन भाग-1 AM पसीना, क्योंकि पसीना तो सबसे चूजाएगा। वह तो प्रयोग है कि आक्सफोर्ड जाता हूं या कैंब्रिज जाता हूं, तो बड़ा माइक से शोरगुल अगर संकल्पपूर्वक आप कहें कि सर्दी नहीं है और गर्मी है, तो शरीर मचाना पड़ता है कि चुप हो जाओ, चुप हो जाओ। उपकुलपति आ पसीना छोड़ता है। रहे हैं, वाइस चांसलर आ रहे हैं, चुप हो जाओ। फिर भी कोई चुप हिप्नोसिस में किसी को भी छूट जाता है। अगर किसी को बेहोश | | नहीं होता। और जब शुरू-शुरू में युनिवर्सिटी में गया था, तो उसने कर दें, सम्मोहित कर दें और कहें कि तेज धूप पड़ रही है और गर्मी | | लिखा है, जैसे ही भीड़ चुप होने लगती थी विद्यार्थियों की, हम सख्त है, तो उस आदमी के माथे से, शरीर से पसीना बहना शुरू | समझते थे कि वाइस चांसलर आ रहे हैं। जैसे ही चुप्पी छाने लगती हो जाएगा। गर्मी पड़ रही हो, आप पसीने से भरे हों। और | थी, वैसे ही हम समझते थे कि उपकुलपति आ रहे हैं। लोगों का हिप्नोटाइज्ड आदमी बेहोश पड़ा है। हिप्नोटिस्ट उससे कहे कि सर्दी | | चुप हो जाना बताता था कि गुरु आ रहा है। अब चिल्लाना पड़ता बहुत जोर की है, बर्फ पड़ रही है बाहर, और ठंडी हवाएं आ रही | | है कि चुप हो जाओ, क्योंकि गुरु आ रहे हैं। फिर भी कोई चुप नहीं हैं, हाथ-पैर कंप रहे हैं, उस गर्मी की हालत में उसके हाथ-पैर होता। जब चिल्लाना पड़ेगा, तो चुप कौन होगा? कंपने शुरू हो जाएंगे। अगर बेहोशी की, सम्मोहन की हालत में | जब संकल्प होता है भीतर. तो वासनाएं चप हो जाती हैं। जब आपके हाथ में एक साधारण रुपया रख दिया जाए और आपसे संकल्प नहीं होता, तो वासनाओं को जबर्दस्ती चुप करना पड़ता है। कहा जाए कि हाथ पर अंगारा रखा है, तो आप इस तरह चीखकर | वह संकल्प के अभाव के कारण मुखर है। . उसको फेंकेंगे, जैसे हाथ पर अंगारा हो। यहां तक तो ठीक है। पुरानी परिभाषा आपसे कहूं। अब साधारणतः हम कहते हैं, गुरु लेकिन हाथ पर फफोला भी आ जाएगा। क्योंकि जब संकल्प ने | के पैर छूने चाहिए। पुरानी परिभाषा और है। वह यह कहती है कि स्वीकार कर लिया कि अंगारा है, तो शरीर को स्वीकार करना ही | | जिसके चरण के पास पहुंचकर छूना ही पड़े, वह आदमी गुरु है। पड़ता है। अगर हाथ ने मान लिया कि अंगारा है, तो शरीर को | | | अब हम कहते हैं, पिता को आदर करना चाहिए। पुरानी परिभाषा जलना ही पड़ेगा, फफोला उठ ही आएगा। और है। जिसको आदर दिया ही जाता है, वह पिता है। आज नहीं उस युनिवर्सिटी में, ल्हासा युनिवर्सिटी में, तिब्बती लामा जब | | कल हम माताओं को सिखाएंगे कि बच्चों को प्रेम करना ही अपनी पूरी शिक्षा करके बाहर निकलेगा, तो उसे यह भी प्रमाण देना | चाहिए; सिखाएंगे ही, सिखाना ही पड़ेगा। लेकिन बच्चे को जो प्रेम पड़ेगा। यह संकल्प की परीक्षा होगी। पसीना तो सभी को आ | | देती है, वही मां है। करना चाहिए, तो बात ही फिजूल हो गई। जाएगा, लेकिन यह कैसे पता चलेगा कि पहला कौन आया? दूसरा । संकल्प जब भीतर होता है, पाजिटिव शक्ति जब भीतर होती है, कौन आया? तो सबके पास पानी में डुबाए हुए गीले कपड़े रखे | | तो वासनाओं को दबाना नहीं पड़ता। इशारा काफी है। इधर संकल्प रहेंगे। उन कपड़ों को पहनो और शरीर को इतना गरमा लो कि | | खड़ा हुआ, उधर वासना विदा हुई। वासना दबानी पड़ती है, क्योंकि कपड़े सूख जाएं! तो जो जितने कपड़े रातभर में सुखा देगा, वह | | संकल्प भीतर नहीं है। वासनाओं को दबाकर संकल्प पैदा नहीं प्रथम। जो उससे कम सुखा पाएगा, वह द्वितीय। जो उससे कम | | होगा। संकल्प पैदा होगा, तो वासनाओं से छुटकारा होता है। और सुखा पाएगा, वह तृतीय। और अब यह कोई तिब्बत की ही बात उस संकल्प की दिशा में आपको...सिर्फ वासनाओं से मत लड़ते नहीं रह गई है, आज तो पश्चिम की भी बहुत-सी प्रयोगशालाओं | | रहें। क्योंकि एक नियम खयाल में ले लें कि आप जिस चीज से में सम्मोहन के द्वारा यह बात सिद्ध हो चुकी है कि मनुष्य के मन | | लड़ते हैं, उस चीज को आप जरूरत से ज्यादा ध्यान दे देते हैं। और का संकल्प जो स्वीकार कर ले, वही घटित होना शुरू हो जाता है। | जिसको भी ध्यान मिल जाता है, वह मजबूत हो जाता है। तब आपको वासनाओं से लडना न पडेगा। वासनाओं के लिए ध्यान भोजन है। अगर कोई आदमी सेक्स से वासनाओं को दबाना ही इसलिए पड़ता है कि संकल्प पास में नहीं | | लड़ेगा, तो उसका सेक्स बढ़ेगा, कम नहीं होगा। क्योंकि सेक्स पर है। संकल्प पास में होगा, तो दबाना नहीं पड़ेगा। जितना ध्यान दिया जाएगा, उतना ही सेक्स शक्तिशाली होता चला बट्रेंड रसेल ने कहीं अपने एक संस्मरण में लिखा है। बर्दैड जाता है। ध्यान भोजन है। आपने ध्यान दिया कि और शक्ति रसेल तो काफी जिंदा रहा न! बहुत, एक सदी के करीब जिंदा रहा; पकड़ेगी। नहीं, सेक्स की फिक्र छोड़ें। इसलिए हम, हमने जो शब्द तो उसने दुनिया बहुत रंगों में देखी। उसने लिखा है कि अब जब मैं खोजा है, वह है ब्रह्मचर्य। ब्रह्मचर्य का मतलब आपने सोचा है 344
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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