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________________ m+ परमात्म समर्पित कर्म +m कभी! उसका मतलब होता है, ब्रह्म में चर्या, ब्रह्म में डूबना। हम | | विधायक दृष्टि लें। नहीं तो आप ला आफ रिवर्स इफेक्ट में फंस कहते हैं, कामवासना की फिक्र छोड़ो, तुम तो ब्रह्म में डूबने की | जाएंगे। अधिक लोग फंसे हुए हैं। इसलिए जो वे चाहते हैं कि न फिक्र करो। इधर तुम ब्रह्म में डूबोगे, उधर कामवासना विदा होने | हो, रोज-रोज वही होता है। और जब वही होता है, तो संकल्प और लगेगी। कामवासना से लड़े कि मुश्किल में पड़े। फिर वह विदा कमजोर होता है कि इतना तो चाहा कि न हो, फिर भी वही हुआ। नहीं होगी, फिर वह पीछा करेगी। | अब अपने से कुछ भी न हो सकेगा। संकल्प और कमजोर होता और एक ला आफ रिवर्स इफेक्ट का एक नियम है। जिसको | चला जाता है। संकल्प बढ़ता है विधायक मार्ग से। वासनाओं का पीछे पश्चिम में फ्रांस के एक विचारक इमाइल कुए ने खोजा। दबाना नकारात्मक है। यह अंतर है। उसका कहना है, विपरीत परिणाम का नियम। आप जो भी करना चाहते हैं, अगर बहुत ज्यादा कोशिश की, तो उससे विपरीत परिणाम आ जाता है। . यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्म बन्धनः । जैसे एक नया आदमी साइकिल चलाना सीखता है। साठ फीट तदर्थ कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर।।९।। चौड़े रास्ते पर साइकिल चलाता है। और किनारे पर मील का पत्थर और हे अर्जुन, बंधन के भय से भी कमों का त्याग करना लगा हे जरा-सी जगह में। नया सिक्खड़ है: एकदम से पत्थर योग्य नहीं है। क्योंकि यज्ञ-कर्म के सिवाय अन्य कर्म में उसको पहले दिखाई पड़ता है। इतना बड़ा रास्ता दिखाई नहीं पड़ता, लगा हआ ही यह मनुष्य कों द्वारा बंधता है। इसलिए है साठ फीट चौड़ा। उसे पत्थर दिखाई पड़ता है कि मरे, अब कहीं यह अर्जुन, आसक्ति से रहित हुआ उस परमेश्वर के निमित्त पत्थर से टकराहट न हो जाए। और जैसे ही उसकी पत्थर से कर्म का भली प्रकार आचरण कर । टकराहट न हो जाए, यह निगेटिव खयाल उसको पकड़ा, रास्ता मिटा और पत्थर ही उसको अब दिखाई पड़ेगा। अब उसकी साइकिल चली पत्थर की तरफ। अब वह घबड़ाया। जितनी 7 क और भी अदभुत बात कृष्ण कहते हैं। वे कहते हैं, साइकिल चली पत्थर की तरफ, उतना वह घबड़ाया; और उतना | । ५ कर्मों के बंधन से बचने के ही निमित्त जो आदमी कर्म उसने ध्यान दिया पत्थर को कि बचना है इस पत्थर से। से भागता है, वह उचित नहीं करता है। वह जो मैं कह लेकिन जिससे बचना है, उस पर ध्यान देना पड़ेगा। और जिस रहा था वही बात, ला आफ रिवर्स इफेक्ट। जो आदमी कर्मों के पर ध्यान देना पड़ेगा, उससे बचना मुश्किल है। वह जाकर बंधन से बचने के लिए ही कर्मों को छोड़कर भागता है, वह उलटे टकराएगा। अंधा आदमी भी साइकिल चलाए, तो सौ में एक मौका | परिणाम को उपलब्ध होगा। वह और बंध जाएगा। और फिर कर्मों है पत्थर से टकराने का। क्योंकि रास्ता साठ फीट चौड़ा है। लेकिन | के बंधन से भागने की जो इच्छा है, वह स्वयं की स्वतंत्रता की यह आंख वाला पत्थर पर पहुंच जाता है एकदम। क्या, मामला | घोषणा नहीं, स्वयं की परतंत्रता की ही घोषणा है। कर्म के बंधन से क्या है ? यह पत्थर पर हिप्नोटाइज्ड होकर जाता है। इसको पत्थर | | कोई भाग भी न सकेगा। क्योंकि कहीं भी जाए, कुछ भी करे, कर्म से बचना है, बस यही इसकी मुश्किल हो जाती है। इसी में उलझ | करना ही पड़ेगा। तब क्या करे आदमी? जाता है। और जो चाहता है कि न हो, चाहने के कारण, वही हो __ कृष्ण कहते हैं, यज्ञरूपी कर्म। कृष्ण कहते हैं, ऐसा कर्म जो प्रभु जाता है। को समर्पित है, ऐसा कर्म जो मैं अपने लिए नहीं कर रहा हूं। आपने अगर तय किया कि क्रोध न करेंगे, तो आपसे क्रोध जल्दी | | परमात्मा ने जीवन दिया, जन्म दिया, जगत दिया, उसने ही कर्म होने लगेगा। नहीं. आप क्रोध की फिक्र छोडें. आप क्षमा करने की | दिया। उसके लिए ही कर रहा है। ऐसे यज्ञरूपी कर्म को जो करता फिक्र करें। आप पाजिटिवली क्षमा की तरफ देखें, क्रोध की फिक्र | है, वह बंधन में नहीं पड़ता है। छोड़ें। आप क्षमा करेंगे, इसकी फिक्र करें। आप क्रोध नहीं करेंगे, | | इसमें दो बातें ध्यान देने योग्य हैं। एक तो सिर्फ बंधन से बचने ऐसी नकारात्मक फिक्र मत करें। आप कामवासना से बचेंगे, ऐसी | के लिए जो भागता है, वह भाग नहीं पाएगा। वह नए बंधनों में घिर नकारात्मक दृष्टि मत लें। आप ब्रह्मचर्य में प्रवेश करेंगे, ऐसी जाएगा। ध्यान रहे, बंधन से बचने के लिए भागने वाला 345
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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