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________________ परमात्म समर्पित कर्म 4 इसलिए कृष्ण कहते हैं, शास्त्र सम्मत | शास्त्र सम्मत अर्थात उस दिन तक जानी गई आत्माओं का जो विज्ञान था, उससे सम्मत जो बात है अर्जुन, तू उस स्वधर्म को कर। वही श्रेयस्कर है। और वैसे भी न करने से, सदा करना श्रेयस्कर है, क्योंकि करने से बचने का कोई उपाय नहीं है। प्रश्नः भगवान श्री पिछले श्लोक में आपने कहा, संकल्प की बात की, तो संकल्प में और इंद्रियों के दमन में क्या फर्क है? यह जानना चाहते हैं। सं कल्प में और इंद्रियों के दमन में बुनियादी फर्क है। संकल्प पाजिटिव एक्ट है, विधायक कृत्य है और इंद्रियों का दमन निगेटिव एक्ट है, नकारात्मक कृत्य है। इसे ऐसा समझें, एक आदमी को भूख लगी है। वह भूख को दबा रहा है— नकारात्मक। वह यह नहीं कह रहा है कि मैं खाना नहीं खाऊंगा, भूख अब मत लग। नहीं, वह यह नहीं कह रहा है। मन में तो वह सोच रहा है कि खाना खाना है, भूख लगी है। उसे उभार रहा है और दबा भी रहा है। लेकिन उसका कोई पाजिटिव विल नहीं है कि जो कहे कि नहीं, खाना नहीं खाना है; बात बंद ! ऐसा कोई विधायक कृत्य नहीं है। भूख लगी है, वह उसको दबाए जा रहा है, भूख से लड़ रहा है। लेकिन भूख से अन्यथा उसके पास कोई संकल्प का जन्म नहीं हो रहा है। इसे ऐसा समझें, एक आदमी, अपने भीतर कोई भी कामना उठी है, समझें कि कामवासना उठी है; जिसके प्रति उठी है, उसके साथ काम का संबंध संभव नहीं है । सामाजिक होगी परिस्थिति, और कोई परिस्थिति होगी, संभव नहीं है। वासना को उकसा रहा है और दबा भी रहा है। वासना को उकसा रहा है, अगर संभव हो, तो वासना को पूरा करना चाहेगा। लेकिन संभव नहीं है। असुविधापूर्ण है, खतरनाक है, सुरक्षा नहीं है, मर्यादा के बाहर है, समाज के नियम के विपरीत है, प्रतिष्ठा को धक्का लगेगा, अहंकार के पक्ष में नहीं पड़ता है; पत्नी क्या कहेगी ? पिता क्या कहेगा ? भाई क्या कहेगा? लोग क्या कहेंगे? ये सारी बातें नकारात्मक हैं। इसलिए वह अपनी कामवासना को दबा रहा है। हालांकि साथ में ही वह कामवासना से बंधे हुए चित्रों को भी उभारता चला जा रहा है। रस भी ले रहा है, दबा भी रहा है। इससे विल पैदा नहीं होगी, इससे विल थोड़ी-बहुत होगी, तो वह भी नष्ट हो जाएगी। नहीं, वह आदमी न इसकी फिक्र कर रहा है कि कौन क्या | कहेगा, न वह फिक्र कर रहा है कि पत्नी क्या कहेगी, पति क्या | कहेगा, भाई क्या कहेगा, समाज क्या कहेगा, यह कोई सवाल नहीं | है | वह आदमी यह कह रहा है कि मेरे भीतर ऐसी कोई वासना उठ आए, जिसमें मेरा वश न हो, तो यह गलत है। कोई और डर नहीं है । कोई और कारण नहीं है। सिर्फ मैं अपने भीतर वासनाओं के पीछे नहीं चलना चाहता हूं। मैं मालिक होना चाहता हूं। इसलिए वह कहता है, चुप! तब फिर वह कल्पनाएं नहीं करता, इमेजिनेशन नहीं करता, सेक्सुअल इमेज नहीं पैदा करता, प्रतिमाएं नहीं बनाता, | सपने नहीं देखता । वह कहता है, बस । और यह जो बस है, यह किसी चीज को दबाने में कम लगता है, किसी चीज को जगाने में ज्यादा लगता है। अब वह अपने को जगा रहा है। अब वह कह रहा है कि इतनी ताकत मुझमें होनी चाहिए कि मैं जब कहूं, बस ! बात समाप्त हो जाए। तब उसके भीतर संकल्प पैदा होगा। संकल्प एक क्रिएटिव एक्ट है। संकल्प अपने भीतर किसी नई शक्ति को जगाना है । और दमन अपने भीतर पुरानी वासनाओं की शक्तियों को ही दबाना है। दबाने में पुरानी शक्तियां ही नजर में होंगी, उठाने में नई शक्ति का आविर्भाव होगा। अब इस नई शक्ति के आविर्भाव के लिए, इसीलिए सीधा वासनाओं से प्रयोग करना शुभ नहीं होता। ज्यादा शुभ होता है और तरह की चीजों से करना । जैसे कि आप, सर्दी चल रही है और आप सर्दी में बैठे हैं। और आप अपने भीतर उस शक्ति को जगा रहे हैं, जो इस सर्दी को झेलेगी, | लेकिन भागेगी नहीं। आप कहते हैं, मैं इस सर्दी में घंटेभर बैठूंगा, भागूंगा नहीं। अब इसमें कोई समाज का डर नहीं है, कोई सामाजिक नियम - नैतिकता नहीं है, कोई बात नहीं है । आप कहते हैं, मैं भागूंगा नहीं। एक घंटा मैं सर्दी को झेलने की तैयारी रखकर बैठा हूं और देखूंगा कि मेरे भीतर कोई शक्ति जगती है जो सर्दी को घंटेभर झेल पाए! आप कुछ दबा नहीं रहे हैं, आप कुछ जगा रहे हैं। तिब्बत में तो एक पूरा प्रयोग ही है, जिसको वे हीट योग कहते हैं, जिसको संकल्प से गर्मी पैदा करना कहते हैं । और ल्हासा युनिवर्सिटी में प्रत्येक विद्यार्थी को परीक्षा के साथ वह प्रयोग में से गुजरना पड़ता था। वह परीक्षा भी बड़ी अजीब थी। सर्द बर्फ से भरी रात में विद्यार्थियों को नग्न खड़ा रहना पड़ेगा और उनके शरीर से पसीना चूना चाहिए, तब वे परीक्षा उत्तीर्ण हो सकेंगे। न केवल 343
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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