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________________ + गीता दर्शन भाग-14 कृष्ण भी अर्जुन को कह सकते थे कि तू वर्ण बदल ले, लेकिन कृष्ण बहुत भलीभांति अर्जुन को जानते हैं। वह क्षत्रिय होने के अतिरिक्त कुछ और हो नहीं सकता। उसका रोआं रोआं क्षत्रिय का है, उसकी श्वास- श्वास क्षत्रिय की है। सच तो यह है कि अर्जुन जैसा क्षत्रिय फिर दुबारा हम पैदा नहीं कर पाए। इसके स्वधर्म के बदलने का कोई उपाय नहीं है। इसका व्यक्तित्व वन डायमेंशनल हो गया है। सारी तैयारी उसकी जिस काम के लिए है, उसी को वह छोड़कर भागने की बात कर रहा है। अगर यह संभव हो सके कि आइंस्टीन फिर नए जन्म के साथ ही, | जहां उसका पिछला जन्म समाप्त हुआ था, वहां से उसे जो-जो उसने विकसित किया था, उसको विकास करने का मौका मिल जाए, हम दुनिया में बहुत - बहुत विकास करने की संभावनाएं पैदा कर पाएंगे। लेकिन आइंस्टीन को फिर नया गर्भ खोजना पड़ेगा। हो सकता है, वह एक घर में पैदा हो, जो दुकानदार का घर है । और तब उसकी पिछले जन्म की यात्रा और नई यात्रा में बहुत व्याघात पड़ जाएगा। जब हमने यह तय कर लिया था कि लोग जन्म से ही, चार वर्गों में हमने उन्हें बांट दिया था, हमने आत्माओं को भी जन्म लेने के चयन की सुविधा दे दी थी। यह जरा खयाल में ले लेना जरूरी है और इस पर ही वर्णों का जन्मगत आधार टिका था। आज जो लोग भी वर्ण के विरोध में बात करते हैं, उन्हें इस संबंध का जरा भी कोई पता नहीं है। जैसे ही एक व्यक्ति मरता है, उसकी आत्मा नया जीवन खोजती है। नया जीवन, पिछले जन्मों में उसने जो कुछ किया है, सोचा है, पिछले जन्म में वह जो कुछ बना है, पिछले जन्म में उसकी जो-जो निर्मिति हुई है, उसके आधार पर वह नया गर्भ खोजता है । वर्ण की व्यवस्था ने उस गर्भ खोजने में आत्माओं को बड़ी सुविधा बना दी थी। यह आज हमारी कल्पना में भी आना मुश्किल है कि अनेक जन्मों की श्रृंखला में भी व्यक्ति को हमने चैनेलाइज करने की कोशिश की थी। इसलिए कृष्ण कहते हैं कि शास्त्र सम्मत, वह जो अनंत अनंत दिनों से अनंत अनंत लोगों के द्वारा जाना हुआ विज्ञान है ! तो तेरी आत्मा आज ही कोई क्षत्रिय हो, ऐसा भी नहीं है। क्षत्रिय होना तेरा बहुत जन्मों का स्वधर्म है। उसे लेकर तू पैदा | हुआ है। आज तू अचानक उससे मुकरने की बात करेगा, तो तू सिर्फ एक असफलता बन जाएगा, एक विषाद, एक फ्रस्ट्रेशन | तेरी जिंदगी एक भटकाव हो जाएगी। लेकिन तेरी जिंदगी अनुभव की उस चरम सीमा को, उस पीक एक्सपीरिएंस को नहीं पा सकती, जो तू क्षत्रिय होकर ही पा सकता है। | एक ब्राह्मण मरते ही ब्राह्मण-गर्भ को खोज पाता था। वह सरल था। इतनी कठिन नहीं रह गई थी वह बात; वह बहुत आसान बात हो गई थी। वह उतनी ही आसान बात थी, जैसे हमने दरवाजों पर आंख के स्पेशलिस्ट की तख्ती लगा रखी है, तो बीमार को खोजने में आसानी है। हमने हृदय की जांच करने वाले डाक्टर की तख्ती लगा रखी है, तो बीमार को खोजने में आसानी है। ठीक हमने आत्मा को भी, उसके अपने इंट्रोवर्ट या एक्सट्रोवर्ट होने की जो भी सुविधा और संभावना है, उसके अनुसार गर्भ खोजने के लिए सील लगा रखी थी। इसलिए आमतौर से यह होता था कि ब्राह्मण अनंत-अनंत जन्मों तक ब्राह्मण के गर्भ में प्रवेश कर जाता था। क्षत्रिय अनंत जन्मों तक क्षत्रिय का गर्भ खोज लेता था । इसके परिणाम बहुत कीमती थे। वर्ण के संबंध में जब भी लोग वर्ण के विरोध में या पक्ष में बोलते. हैं, तो उन्हें कोई भी अंदाज नहीं है कि वर्ण के पीछे अनंत जन्मों का विज्ञान है। ध्यान इस बात का है कि हम व्यक्ति की आत्मा को दिशा दे सकें, वह अपने योग्य गर्भ खोज सके, अपने स्वधर्म के अनुकूल घर खोज सके । आज धीरे-धीरे कनफ्यूजन पैदा हुआ है। धीरे-धीरे सारी व्यवस्था टूट गई, क्योंकि सारा विज्ञान खो गया। और आज हालत यह है कि आत्माओं को निर्णय करना अत्यंत कठिन होता चला जाता है कि वे कहां जन्म लें! और जहां भी जन्म लें, वहां से उनकी पिछली यात्रा का तारतम्य ठीक से जुड़ेगा या नहीं जुड़ेगा, यह बिलकुल सांयोगिक हो गई है बात। इसको हमने वैज्ञानिक विधि बनाई थी। इसका मतलब यह हुआ कि हम एक जन्म में ही स्पेशलाइजेशन नहीं देते थे, हम अनंत जन्मों की श्रृंखला में स्पेशलाइजेशन दे देते थे। अगर किसी दिन यह हो सके कि आइंस्टीन फिर एक ऐसे बाप के घर में पैदा हो जाए जो फिजिसिस्ट हो, अगर यह संभव हो सके कि आइंस्टीन फिर एक ऐसी मां को मिल जाए जो गणितज्ञ हो, 342 ऐसे तो नदियां भी बहती हैं, लेकिन जब विज्ञान विकसित होता है, तो हम नहर पैदा कर लेते हैं। नदियां भी बहती हैं, लेकिन नहर सुनियोजित बहती है। वर्ण की व्यवस्था आत्माओं के लिए नहर का काम करती थी । वर्ण की व्यवस्था जिस दिन टूट गई, उस दिन से आत्माएं नदियों की तरह बह रही हैं। अब उनकी यात्रा का कोई सुसम्मत मार्ग नहीं है।
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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