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________________ 3 कर्ता का भ्रम - को हठपूर्वक रोककर मन में काम के चिंतन को चलाए चला जाता | मनुष्य को किसी काम में नहीं ले जाती, मन ले जाता है। और जब है, वह दंभ में, पाखंड में, अहंकार में पतित होता है। मूढ़ कहेंगे!| | कोई इंद्रियों को दबाता है, इंद्रियों को रोकता है और मन जब इंद्रियों कह रहे हैं, ऐसा व्यक्ति मूढ़ है, जो इंद्रियों को दमन करता है, सप्रेस | का सहयोग नहीं पाता है, तो पागल होकर भीतर ही उन चीजों की करता है। रचना करने लगता है, जो उसने बाहर चाही थीं। काश! फ्रायड को यह वचन गीता का पढ़ने मिल जाता, तो | __ अगर दिनभर आप भूखे रहे हैं, तो रात सपने में आप राजमहल फ्रायड के मन में धर्म का जो विरोध था, वह न रहता। लेकिन | में आमंत्रित हो जाते हैं। मन ने इंतजाम किया, मन ने कहा कि ठीक फ्रायड को केवल ईसाई दमनवादी संतों के वचन पढ़ने को मिले। | है। मन ने जिस स्त्री, जिस पुरुष के प्रति दिन में अपने को रोका, उसे केवल उन्हीं धार्मिक लोगों की खबर मिली, जिन्होंने जननेंद्रियां | रात सपने में मन नहीं रोक पाता। काट दीं, ताकि कामवासना से मुक्ति हो जाए। फ्रायड को उन । खुद फ्रायड ने अपने एक पत्र में लिखा है-और फ्रायड जानता सूरदासों की खबर मिली, जिन्होंने आंखें फोड़ दी, ताकि कोई है-खुद लिखा है। कोई पैंतालीस साल की उम्र में लिखा गया पत्र सौंदर्य आकर्षित न कर सके। उन विक्षिप्त, न्यूरोटिक लोगों की है। एक मित्र को लिखा है कि आज मैं रास्ते पर चलते वक्त हैरान खबर मिली, जिन्होंने अपने शरीर को कोड़े मारे, लहू बहाया, ताकि हुआ, एक सुंदर स्त्री को देखकर मेरे मन में उसे छूने की इच्छा शरीर कोई मांग न करे। जो रात-रात सोए नहीं, कि कहीं कोई जगी। फिर मैंने सोचा भी कि मैं कैसा पागल है। इस उम्र में। और सपना मन को वासना में न डाल दे। जो भूखे रहे, कि कहीं शरीर फ्रायड जैसा आदमी, जिसने जिंदगीभर सेक्स को समझने की में शक्ति आए, तो कहीं इंद्रियां बगावत न कर दें। शायद मनुष्य जाति के इतिहास में सर्वाधिक कोशिश की है, जो स्वभावतः, अगर फ्रायड को लगा कि इस तरह का सब धर्म | जानता है कि सेक्स क्या है, जो जानता है वासना क्या है। उसने न्यूरोटिक है, पागल है और मनुष्य जाति को विक्षिप्त करने वाला | | लिखा है कि मैंने अपने को रोकना चाहा, लेकिन मैं रोकता भी रहा है, तो आश्चर्य नहीं। लेकिन कृष्ण का एक वचन भी फ्रायड के मन | और मैंने बढ़कर भीड़ में उस स्त्री को छू भी लिया, स्पर्श भी कर की सारी ग्रंथियों को खोल देता। | लिया। आधे मन से रोकता भी रहा, आधे मन से स्पर्श भी कर कृष्ण कह रहे हैं, मूढ़ है वह व्यक्ति— फ्रायड से पांच हजार | | लिया। पछताता भी रहा, कामना भी करता रहा। फ्रायड ने लिखा साल पहले-जो अपनी इंद्रियों को दबाता है। क्योंकि इंद्रियों को | है कि अब भी मेरे भीतर यह संभव है, यह मैंने सोचा न था। दबाने से मन नहीं दबता, बल्कि इंद्रियों को दबाने से मन और प्रबल मरते वक्त तक भी संभव है। मुर्दा भी, अगर थोड़ी-बहुत शक्ति होता है। इसलिए मूढ़ है वह व्यक्ति। क्योंकि इंद्रियों का कोई कसूर बची हो, तो उठकर यही कर सकता है। मुर्दो ने तो कभी नहीं किया, ही नहीं, इंद्रियों का कोई सवाल ही नहीं है। असली सवाल भीतर लेकिन मुर्दो के साथ करने वाले लोग मिल गए हैं। छिपे मन का है। वह मन मांग कर रहा है, इंद्रियां तो केवल उस मन क्लियोपैट्रा जब मरी और उसकी लाश दफना दी गई कब्र में, तो के पीछे चलती हैं। वे तो मन की नौकर-चाकर, मन की सेविकाएं, | उसकी लाश चोरी चली गई। सुंदर स्त्री! पंद्रह दिन बाद उसकी इससे ज्यादा नहीं हैं। लाश मिली और चिकित्सकों ने कहा कि पंद्रह दिन में हजारों लोगों ___ मन कहता है, सौंदर्य देखो, तो आंख सौंदर्य देखती है। और मन ने उसकी लाश से संभोग किया है। लाशों से भी संभोग होता है! कहता है, बंद कर लो आंख, तो आंख बंद हो जाती है। आंख की | अगर लाशें भी उठ आएं, तो वे भी कर सकती हैं। अपनी कोई इच्छा है? आंख ने कभी कहा कि मेरी यह इच्छा है ? __ कृष्ण कह रहे हैं कि बाहर से दबा लोगे इंद्रियों को—इंद्रियों का हाथ ने कभी कहा कि छुओ इसे? मन कहता है, छुओ, तो हाथ | तो कोई कसूर नहीं, इंद्रियों का कोई हाथ नहीं। इररेलेवेंट हैं इंद्रियां, छूने चला जाता है। मन कहता है, मत छुओ, तो हाथ ठहर जाता | | असंगत हैं, उनसे कोई वास्ता ही नहीं है। सवाल है मन का। रोक है और रुक जाता है। इंद्रियों की अपनी कोई इच्छा ही नहीं है। | लोगे इंद्रियों को, न करो भोजन आज, कर लो उपवास। मने, मन लेकिन कितनी इंद्रियों को गालियां दी गई हैं ! इंद्रियों के खिलाफ | | दिनभर भोजन किए चला जाएगा। ऐसे मन दो ही बार भोजन कर कितने वक्तव्य दिए गए हैं। और इंद्रियां बिलकल निष्पाप और लेता उपवास के दिन दिनभर का निर्दोष और इनोसेंट हैं। इंद्रियों का कोई संबंध नहीं है। कोई इंद्रिय | | है, मूढ़ है वह व्यक्ति, जो इस मन को समझे बिना, इस मन को जो मन 327
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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