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________________ गीता दर्शन भाग-1 4 छोड़ते ही, सब छूट जाता है । फिर जो भी हो - कृष्ण कहते हैं — वह परमात्मा का है। तू निमित्त भर है। निमित्त भर जो है, उसे योजना नहीं बनानी है। निमित्त भर जो है, उसे कामना नहीं करनी है। निमित्त की क्या कामना ? निमित्त की क्या वासना ? कृष्ण का संदेश धार्मिक है, नैतिक नहीं। और नैतिक संदेश भी कोई संदेश होता है ! कामचलाऊ, कनवीनिएंट होता है। अनीति को किसी तरह रोकने का उपाय हम करते रहते हैं। रुकती नहीं। किसी तरह इंतजाम करते रहते हैं, काम चलाते हैं। धर्म का संदेश कामचलाऊ नहीं है। धर्म का संदेश तो जीवन की आमूल क्रांति का संदेश है। जो स्वयं को सब भांति छोड़ देता है, उसके जीवन से सब कुछ गिर जाता है, जो कल तक था। न बुरा, न अच्छा — दोनों गिर जाते हैं। फिर तो परमात्मा ही शेष रह जाता है। फिर जो भी हो, उससे अंतर नहीं पड़ता, वह सभी कुछ परमात्मा के लिए समर्पित है। चौबीस घंटे के लिए भी कभी प्रयोग करके देखें । फिर वासना को उठाना मुश्किल होगा। क्योंकि वासना केवल कर्ता ही उठा सकता है। निमित्त वासना कैसे उठाएगा? फिर यह सोचना मुश्किल होगा कि मैं करोड़ रुपया इकट्ठा कर लूं, क्योंकि मैं हूं कौन? मैं हूं . कहां ? यह करोड़ रुपया इकट्ठा करने की वासना निमित्त मात्र व्यक्ति में नहीं उठ सकती। सारी वासना का आधार, मूल स्रोत अहंकार है । प्रश्नः भगवान श्री, कल की चर्चा पर एक छोटा-सा प्रश्न और आया है। आपने कहा कि तीन बार किसी बात का संकल्प करना कमजोर संकल्प घोषित करता है। आपके ध्यान में संकल्प तीन बार किया जाता है, तो यह क्या है? और ध्यान-साधना से ज्ञान होगा कि ध्यान-साधना स्वयं में कर्म है ? ध्या 'न के प्रयोग में तीन बार संकल्प किया जाता है, वह भी कम पड़ता है। तीन सौ बार किया जाए, तब पूरा पड़े ! क्योंकि आप अर्जुन नहीं हैं। आप अर्जुन नहीं हैं। आपको तीन सौ बार कहने पर भी एक बार सुनाई पड़ जाए बहुत है। तीन बार इसीलिए कहा जाता है कि शायद एकाध बार सुनाई पड़ जाए। बहरों के बीच मेहनत अलग तरह की होती है। कृष्ण भीड़ को नहीं बता रहे हैं। और जब मैं ध्यान करवा रहा . हूं, तो भीड़ को । कृष्ण एक आदमी से बात कर रहे हैं - सीधे, आमने-सामने। जब मैं हजारों लोगों से कुछ बात कर रहा हूं, तो | आमने-सामने कोई भी नहीं है। दिखाई पड़ते हैं आमने-सामने, है कोई भी नहीं। तीन सौ बार भी कहा जाए, तो थोड़ा पड़ेगा। आशा | यही है कि तीन सौ बार कहने में शायद एकाध बार आपको सुनाई पड़ जाए। काम तो एक ही बार में हो जाता है, लेकिन वह एक बार सुनाई पड़ना चाहिए न ! और पूछ रहे हैं कि ध्यान से क्या फलित होगा ? अगर बहिर्मुखी व्यक्तित्व है, तो ध्यान से वह ब्रह्म की यात्रा पर निकल जाता है। अगर अंतर्मुखी व्यक्तित्व है, तो ध्यान से निर्वाण की यात्रा पर निकल जाता है। ध्यान दोनों यात्राओं पर वाहन का काम करता है। इसलिए ध्यान किसी व्यक्ति विशेष के टाइप से संबंधित | नहीं है। ध्यान तो ऐसा है, जैसे कि आप ट्रेन पर पश्चिम जाना चाहें, | तो पश्चिम चले जाएं; और पूर्व जाना चाहें, तो पूर्व चले जाएं। ट्रेन नहीं कहती कि कहां जाएं। ट्रेन कहीं भी जा सकती है। ध्यान सिर्फ एक वाहन है । बहिर्मुखी व्यक्ति अगर ध्यान में उतरे, तो वह ब्रह्म की यात्रा पर, बहिर्यात्रा पर निकल जाएगा, कास्मिक जर्नी पर निकल जाएगा - जहां सारा अखंड जगत उसे अपना ही स्वरूप मालूम होने लगेगा। अगर अंतर्मुखी व्यक्ति ध्यान के वाहन पर सवार हो, तो अंतर्यात्रा पर निकल जाएगा, शून्य में, और शून्य में, और महाशून्य में - जहां सब बबूले फूटकर मिट जाते हैं और | महासागर अस्तित्व का, शून्य का ही शेष रह जाता है। ध्यान दोनों के काम आ सकता है। ध्यान का टाइप से संबंध नहीं है। ध्यान का संबंध यात्रा के वाहन से है ! 326 कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसास्मरन् । इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते ।। ६ ।। इसलिए जो मूढबुद्धि पुरुष कर्मेद्रियों को हठ से रोककर इंद्रियों के भोगों का मन से चिंतन करता है, वह मिथ्याचारी अर्थात दंभी कहा जाता है। ' •दभुत वचन है। कृष्ण कह रहे हैं कि जो मूढ़ व्यक्ति मूढ़ खयाल रखना - जो नासमझ, जो अज्ञानी इंद्रियों अ
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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