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कर्ता का भ्रम
वही पाप की जड़ है। हम जहर सींचकर ही बुराई मिटाने की कोशिश कर रहे हैं। इसलिए हजारों साल हो गए, बुराई मिटती नहीं है। सिर्फ जहर सिंचता है और बुराई नए रास्तों से निकलकर प्रकट होती है।
अच्छे आदमी से भी हम क्या करवाते हैं? उसके भी अहंकार को बल देते हैं। हम कहते हैं, तुम्हारे नाम की तख्ती लगा देंगे मंदिर पर, तुम्हारा संगमरमर पर नाम खोद देंगे। काम अच्छा है, यह सवाल नहीं है; हम तुम्हारे अहंकार के लिए सील - मोहर दे देंगे। अच्छा आदमी भी मंदिर बनाने के लिए मंदिर नहीं बनाता, मंदिर में नाम का पत्थर लगाने के लिए मंदिर बनाता है। अच्छे काम के लिए भी हमें जहर को ही सींचना पड़ता है। इसलिए सब मंदिर, मस्जिद अगर जहरीले हो गए हैं, तो कोई आश्चर्य नहीं है। उनकी जड़ में जहर है, वहां अहंकार खड़ा हुआ है। अच्छाई करवानी हो तो भी अहंकार, बुराई रोकनी हो तो भी अहंकार !
कृष्ण कुछ और ही सूत्र कह रहे हैं; वह बहुत अदभुत है। वह एक अर्थ में, कहें कि धर्म का बुनियादी सूत्र है । वे यह कह रहे हैं कि नीति से काम नहीं चलेगा अर्जुन, क्योंकि नीति तो अहंकार पर ही खड़ी होती है। धर्म से काम चलेगा, क्योंकि धर्म कहता है, छोड़ो तुम मैं को, परमात्मा को करने दो जो कर रहा है, तुम निमित्त मात्र हो जाओ।
हमें डर लगता है कि अगर हम निमित्त मात्र हुए, तो अभी चोरी पर निकल जाएंगे। हमें डर लगता है कि अगर हम निमित्त मात्र हुए और हमने कहा कि अब हम कर्ता नहीं हैं, तो हम अभी चोरी पर निकल जाएंगे।
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में
मैंने सुना है कि एक दफ्तर में एक मैनेजर को एक बुद्धिमानी की बात सूझी। वैसे आमतौर से मैनेजर्स को बुद्धिमानी की बात नहीं सूझती। या ऐसा हो सकता है कि मैनेजर होते-होते तक आदमी को बुद्धि खो देनी पड़ती है। या ऐसा हो सकता है कि मैनेजर तक पहुंचने के लिए बुद्धि बिलकुल ही गैरजरूरी तत्व है, या बांधा है। लेकिन एक मैनेजर को बुद्धिमानी सूझी और उसने अपने दफ्तर एक तख्ती लगा दी। लोग काम नहीं करते थे, टालते थे, पोस्टपोन करते थे, तो उसने एक तख्ती लगा दी। एक वचन किसी संत का लगा दिया। लगा दिया: काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। जो कल करना चाहता था, वह आज कर; जो आज करना चाहता था, वह अभी कर, क्योंकि समय का कोई भरोसा नहीं है कि कल आएगा कि नहीं आएगा।
सात दिन बाद उसके मित्रों ने पूछा, तख्ती का क्या परिणाम हुआ? उसने कहा, बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं। मेरा सेक्रेटरी टाइपिस्ट को लेकर भाग गया। एकाउंटेंट सारा पैसा लेकर नदारत हो गया। सब गड़बड़ हो गई है। पत्नी का सात दिन से कोई पता नहीं चल रहा है, चपरासी के साथ भाग गई है। दफ्तर में अकेला ही रह गया हूं। क्योंकि उन लोगों ने, जो-जो उन्हें कल करना था, आज ही | कर लिया है; और जो आज करना था, वह अभी कर लिया है।
हमें भी ऐसा लगता है कि अगर हम परमात्मा पर सब छोड़ दें, तो फिर तो छूट मिल जाएगी। फिर तो हमें जो भी करना है, वह हम अभी कर लेंगे। हां, अगर उसको करने के लिए ही निमित्त बन रहे हैं, अगर उसे करने के लिए ही परमात्मा को कर्ता बना रहे हैं, तो जरूर ऐसा हो जाएगा।
लेकिन जो कुछ करने के लिए निमित्त बन रहा है, वह निमित्त | बन ही नहीं रहा है। और जो कुछ करने के लिए परमात्मा को कर्ता बना रहा है, वह परमात्मा को कर्ता बना ही नहीं रहा है। योजना तो उसकी अपनी ही है, अहंकार तो अपना ही है, परमात्मा का भी शोषण करना चाह रहा है।
नहीं, कृष्ण उसके लिए नहीं कह रहे हैं। कृष्ण कह रहे हैं कि अगर तुम परमात्मा में अपने को छोड़ दो, तो छोड़ने के साथ ही अपनी योजनाएं भी छूट जाती हैं; छोड़ने के साथ ही अपनी कामनाएं भी छूट जाती हैं; छोड़ने के साथ ही अपनी वासनाएं भी छूट जाती हैं; छोड़ने के साथ ही अपना भविष्य भी छूट जाता है; | छोड़ने के साथ ही हम ही छूट जाते हैं। फिर हम बचते ही नहीं । फिर जो हो । फिर जो हो !
लेकिन हमें डर लगेगा। क्योंकि जो-जो होने की, हमें करने की इच्छा है, वह फौरन दिखाई पड़ेगी कि यह - यह होगा । तब हम कृष्ण
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को नहीं समझ पा रहे हैं। तब कृष्ण को समझना मुश्किल होगा। जिस दिन कोई व्यक्ति स्वयं को समर्पित करने का साहस जुटाता है और स्वयं को समर्पित करना बड़े से बड़ा साहस है। उससे बड़ा कोई साहस नहीं, कोई एडवेंचर नहीं, उससे बड़ा कोई दुस्साहस नहीं। स्वयं को छोड़ना परमात्मा के चरणों में, आसान | बात नहीं है । और जो आदमी स्वयं को छोड़ सकता है, वह चोरी | नहीं छोड़ पाएगा, यह सोचना भी मुश्किल है। जो स्वयं को ही छोड़ | सकता है, वह चोरी किसके लिए करेगा ? जो स्वयं को छोड़ सकता है, हत्या किसके लिए करेगा? जो स्वयं को छोड़ सकता है, बेईमानी किसके लिए करेगा? उसका कोई उपाय नहीं है। स्वयं को
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