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m- गीता दर्शन भाग-1 AM
नहीं है। और जो अच्छे-बुरे में फर्क करता है, उससे कभी न कभी। है कि मैं कर्ता हूं। और मजा यह है कि जब तक कर्ता होता है, तब बुरा होगा; वह बुरे से बच नहीं सकता है। सिर्फ बुरे से वही बच तक अच्छा काम होता नहीं है। अब इस मिस्ट्री को, इस रहस्य को सकता है, जिसने सभी परमात्मा पर छोड़ दिया हो।
ठीक से समझ लेना चाहिए। लेकिन हम कहेंगे कि एक आदमी चोरी कर सकता है और कह कर्ता की मौजूदगी, अहंकार की मौजूदगी ही जीवन में पाप का सकता है कि मैं तो निमित्त-मात्र हूं; चोरी मैं नहीं करता हूं, परमात्मा जन्म है। अहंकार की अनुपस्थिति, गैर-मौजूदगी ही जीवन में पुण्य करता है। कहे; अड़चन अभी नहीं है, अड़चन जब घर के लोग की सुगंध का फैलाव है। इसलिए अगर कोई कर्ता रहकर पुण्य भी पकड़कर उसे मारने लगते हैं, तब पता चलेगी। क्योंकि अगर वह करे, तो पाप हो जाता है। कर नहीं सकता, इसीलिए हो जाता है। तब भी यही कहे कि परमात्मा ही मार रहा है और ये घर के लोग | हो ही नहीं सकता। दूसरी बात भी नहीं हो सकती। कोई कर्ता मिट कर्ता नहीं हैं, निमित्त-मात्र हैं, तभी पता चलेगा।
| जाए और पाप करे, यह भी नहीं हो सकता। और ध्यान रहे. जो आदमी. कोई दसरा उसे मार रहा हो और हमने जो फर्क किया है पाप और पण्य का, अच्छे और बरे का, फिर भी जानता हो कि परमात्मा ही मार रहा है, निमित्त-मात्र हैं। | वह उन लोगों ने किया है, जिनके पास कर्ता मौजूद है, जिनका दूसरे, ऐसा आदमी चोरी करने जाएगा, इसकी संभावना नहीं है। | अहंकार मौजूद है। और इस अहंकार के मौजूद रहते हमें ऐसा असंभव है, यह बिलकुल असंभव है।
| इंतजाम करना पड़ा है कि हम बुरे आदमी को बहुत बुरा कहते हैं, हम बुरा करते ही अहंकार से भरकर हैं। बिना अहंकार के बुरा | ताकि अहंकार को चोट लगे। हम अहंकार से ही बुराई को रोकने हम कर नहीं सकते। और जिस क्षण हम परमात्मा को सब कर्तृत्व की कोशिश कर रहे हैं। इसलिए बुराई रुक नहीं पाई, सिर्फ अहंकार दे देते हैं, अहंकार छूट जाता है; बुरे को करने की बुनियादी बढ़ा है। सारी मारेलिटी, सारा नीतिशास्त्र क्या करता है? वह इतना आधारशिला गिर जाती है। बुरा करिएगा कैसे?
ही करता है कि आपके अहंकार को ही उपयोग में लाता है बुराई से कभी आपने खयाल किया है कि बरे कर्म को करके तो कोई भी रोकने के लिए। अपने को कर्ता नहीं बताना चाहता है। कभी आपने यह खयाल बाप अपने बेटे से कहता है, ऐसा करोगे तो गांव के लोग क्या किया है। एक आदमी चोरी भी करता है, तो वह कहता है, मैंने नहीं कहेंगे? बात गलत है या सही है, यह सवाल नहीं है बड़ा। बड़ा की। फंस जाए, हम सिद्ध कर दें, बात अलग। लेकिन अपनी तरफ सवाल यह है कि गांव के लोग क्या कहेंगे! कोई आदमी किसी के से वह इनकार ही करता चला जाता है कि मैंने नहीं की। बुरे का घर में चोरी करने जाता है, तो सोचता है-यह नहीं कि चोरी बुरी कर्ता तो कोई भी होने को राजी नहीं है। और मजा यह है कि बुरा है-यह कि पकड़ तो न जाऊंगा! अगर पक्का विश्वास दिला बिना कर्ता के होता नहीं है।
दिया जाए कि नहीं पकड़े जा सकोगे, तो कितने लोग हैं जो अचोर उलटी बात भी खयाल में ले लें, कोई आदमी दो पैसे दान दे, रह पाएंगे। पुलिस वाला चौरस्ते पर न हो चौबीस घंटे के लिए, तो दो लाख जैसे दान दिया हो, ऐसी खबरें उड़ाना चाहता है! न भी अदालत चौबीस घंटे के लिए छुट्टी पर चली जाएं, कानून चौबीस खबर उड़ा पाए, दो पैसा दान दे, तो भी दो लाख दिया है, इतनी | घंटे के लिए स्थगित कर दिया जाए, कितने भले लोग भले रह अकड़ से चलना तो चाहता ही है। भिखारी भी जानते हैं, अगर आप जाएंगे? और चौबीस घंटे के लिए यह भी तय कर लिया जाए कि अकेले मिल जाएं रास्ते पर, तो उनको भरोसा कम होता है कि दान | | जो बुरा करेगा, उसे सम्मान मिलेगा और जो अच्छा करेगा, उसे मिलेगा। चार आदमी आपके साथ हों, तब उनका भरोसा बढ़ जाता | | अपमान मिलेगा, तब तो और मुश्किल हो जाएगी। है। तब वे आपका पैर पकड़ लेते हैं। तब आप पर भरोसा नहीं नहीं, हम बुरे से नहीं रुके हैं। बुरे से रोकने के लिए भी हमने होता, चार आदमियों की मौजूदगी पर भरोसा होता है। ये चार | | अहंकार का ही उपयोग किया है कि लोग क्या कहेंगे? इज्जत का आदमियों के सामने यह आदमी इतनी दीनता प्रकट न कर पाएगा | | क्या होगा? कुल का क्या होगा? वंश का क्या होगा? प्रतिष्ठा, कि कह दे कि नहीं देते। इसलिए भिखारी को अकेला कोई मिल | सम्मान, आदर-इसका क्या होगा? इससे हम रोके हुए हैं जाए, तो काम नहीं सधता। उसे भीड़ में पकड़ना पड़ता है। आदमी को।
अच्छा काम आदमी न भी किया हो, तो भी घोषणा करना चाहता | लेकिन जिस चीज का हम उपयोग कर रहे हैं रोकने के लिए,