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________________ - कर्ता का भ्रम - यह अपनी रुचि की, व्यक्तित्व की बात है। यह अपने देखने के | | फहराएंगे और शास्त्रों से सिद्ध करेंगे कि सत्य बात क्या है। दूसरा ढंग की बात है। असत्य है। और हम जब भी कुछ कहते हैं, तो हम उस संबंध में कम कहते ठीक भी है। जिनको पता न हो. उनके लिए दोनों वक्तव्य हैं जिस संबंध में कह रहे हैं, अपने संबंध में ज्यादा कहते हैं। जब | एकदम कंट्राडिक्टरी हैं। कि गिलास आधा खाली है; खाली है, इस भी हम कुछ कहते हैं, तो वह खबर हमारे बाबत होती है कि हम | | पर ध्यान जाता है। गिलास आधा भरा है; भरा है, इस पर ध्यान किस तरह के व्यक्ति हैं। हमें जो दिखाई पड़ता है, वह गेस्टाल्ट है। | जाता है। एक कहता है, खाली है। एक कहता है, भरा है। और उसमें हम भी जुड़ जाते हैं। | जिन्होंने देखा नहीं, जिन्हें कुछ पता नहीं, वे कहेंगे, इससे ज्यादा अब जैसे उदाहरण के लिए, कहीं एक गिलास में आधा पानी विरोधी वक्तव्य क्या हो सकते हैं! ये दोनों अलग-अलग बातें हैं। भरा रखा हो और एक व्यक्ति कमरे के बाहर आकर कहे कि दो में से कोई एक ही सही हो सकता है। इसलिए निर्णय करो कि गिलास आधा खाली है और दूसरा आदमी बाहर आकर कहे कि सही कौन है। गिलास आधा भरा है। इन दोनों ने दो चीजें नहीं देखीं। इन दोनों ने | | यह निर्णय हजारों साल तक चलेगा और कभी नहीं हो पाएगा। दो चीजें कही भी नहीं। लेकिन फिर भी इन दो व्यक्तियों के देखने | क्योंकि वहां सिर्फ एक ही गिलास है, जो आधा खाली है और का ढंग बिलकुल प्रतिकूल है। आधा भरा है। दो आदमियों ने देखा है। बस, वक्तव्य इसीलिए एक ने देखा कि आधा खाली है। खाली पर उसकी नजर गई है, भिन्न हो गए हैं। भरे पर उसकी नजर नहीं गई। एफेटिकली खाली उसे दिखाई पड़ा। ब्रह्म-निर्वाण दो बातों का समन्वय नहीं है। एक सत्य के लिए है, भरा किनारे पर रहा है। खाली बीच में रहा है, सेंटर में, भरा | उपयोग किए गए दो शब्दों का समवेत प्रयोग है। समन्वय सिर्फ परिधि पर रहा है। खाली ने उसको पकड़ा है; भरे ने उसे नहीं पकड़ा | असत्यों में करना पड़ता है। सत्य में समन्वय नहीं हो सकता, है। दूसरा व्यक्ति कहता है, आधा भरा है। भरा उसके बीच में है | | क्योंकि सत्य एक है। दूसरा है नहीं, जिससे समन्वय करना पड़े। ध्यान के, खाली बाहर है, परिधि पर है। खाली उसे दिखाई नहीं | ___ इसलिए जितने लोग समन्वय की बातें करते हैं, इन्हें सत्य का पड़ा, दिखाई उसे भरा पड़ा है, खाली ने सिर्फ भरे की सीमा बनाई | कोई भी पता नहीं है। सत्य को समन्वय की कोई भी जरूरत नहीं है। भरा है असली, खाली पड़ोस में है, सिर्फ सीमांत है। तो वह | | है। सत्य है ही एक। किससे समन्वय करना है? असत्य से! हां, कह रहा है, आधा भरा है। असत्य से करना हो तो हो सकता है। लेकिन सत्य से असत्य का और गिलास, गिलास से पूछे कि गिलास आधा भरा है या आधा | | समन्वय कैसे होगा? कोई उपाय नहीं है। और दो सत्य नहीं हैं कि खाली है? गिलास कुछ भी नहीं कहेगा। क्योंकि गिलास कहेगा, | | जिनका समन्वय करना हो। हां, एक ही सत्य को बहुत लोगों ने यह विवाद पागलपन का है। मैं दोनों हूं। मैं एक साथ दोनों हूं। देखा है, बहुत शब्दों में कहा है। भेद शब्दों के हैं, सत्यों के नहीं। लेकिन यह दो भी इसलिए कहना पड़ रहा है, क्योंकि दो लोगों ने मुझे देखा है। असल में मैं तो जो हूं, हूं। यहां तक पानी है और यहां से पानी नहीं है। बीच तक पानी है और बीच तक पानी नहीं है। एक प्रश्नः भगवान श्री, कल आपने कहा कि कर्ता तो रेखा है, जहां मेरा आधा खालीपन और आधा भरापन मिलते हैं। | प्रभु है, मनुष्य तो केवल निमित्त-मात्र है। तो कोई दो आदमियों ने दो तरह से देखा है। ये दो आदमी दो तरह से व्यक्ति जब दुष्कर्म की ओर प्रवृत्त होता है, तो क्या कहते हैं। और अगर ये दोनों आदमी बाजार में चले जाएं और ऐसे दुष्कर्म का कर्ता और प्रेरक भी प्रभु है? और कर्तापन लोगों के बीच में पहुंच जाएं जिन्होंने कभी आधी भरी और आधी के अभाव से बुरे कर्म का अभिनय करना कहां तक खाली चीज न देखी हो, तो दो संप्रदाय बन जाएंगे उस बाजार में। उचित है? एक आधे खाली वालों का संप्रदाय होगा, एक आधे भरे वालों का | संप्रदाय होगा। और उनमें भारी विवाद चलेगा; और उनके पंडित बड़ा तर्क करेंगे और विश्वविजय की यात्राएं निकालेंगे और झंडे | अच्छे और बुरे का फासला आदमी का है, परमात्मा का 323
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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