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im कर्ता का भ्रम -
बहिर्मुखता में जो निम्नतम सीढ़ी देखती है, वह वैश्य की है। अगर सारे लोग विकसित हों, तो जगत में दो ही वर्ण होंगेइसलिए अगर क्षत्रिय पतित हो तो वैश्य हो जाता है; और अगर बहिर्मुखी और अंतर्मुखी। लेकिन जो विकसित नहीं हो पाते, वे भी वैश्य विकसित हो तो क्षत्रिय हो जाता है।
| दो वर्ण निर्मित कर जाते हैं। इसलिए चार वर्ण निर्मित हुए : दो, जो इसकी बहुत घटनाएं घटी। और कभी-कभी जब कोई व्यक्ति | विकसित हो जाते हैं; दो, जो विकसित नहीं हो पाते और पीछे छूट समझ नहीं पाता अपने टाइप को, अपने व्यक्तित्व को, अपने जाते हैं। स्वधर्म को, तो बड़ी मुश्किल में पड़ जाता है। महावीर क्षत्रिय घर क्षत्रिय की आकांक्षा शक्ति की आकांक्षा है, ब्राह्मण की आकांक्षा में पैदा हुए, लेकिन वे व्यक्ति अंतर्मुखी थे और उनकी यात्रा ब्राह्मण शांति की आकांक्षा है। क्षत्रिय की आकांक्षा शक्ति की है। और अगर की थी। बुद्ध क्षत्रिय घर में पैदा हुए, लेकिन वे व्यक्ति ब्राह्मण थे क्षत्रिय न हो पाए कोई वैश्य रह जाए। तो बहुत भयभीत, डरा हुआ,
और उनकी यात्रा ब्राह्मण की थी। इसलिए बुद्ध ने बहुत जगह कहा कायर व्यक्तित्व होता है वैश्य का, लेकिन बीज उसके पास क्षत्रिय है कि मुझसे बड़ा ब्राह्मण और कोई भी नहीं है। लेकिन बुद्ध ने के हैं, इसलिए शक्ति की आकांक्षा भी नहीं छूटती। लेकिन क्षत्रिय ब्राह्मण की परिभाषा और की है। बुद्ध ने कहा, जो ब्रह्म को जाने, होकर शक्ति को पा भी नहीं सकता। इसलिए वैश्य फिर धन के द्वारा वह ब्राह्मण है।
शक्ति को खोजता है। वह धन के द्वारा शक्ति को निर्मित करने की बुद्ध और महावीर क्षत्रिय हैं और ब्राह्मण उनका व्यक्तित्व है। कोशिश करता है। लड़ तो नहीं सकता, युद्ध के मैदान पर नहीं हो जन्म से वे क्षत्रिय हैं। जब महावीर जैसा क्षत्रिय ब्राह्मण की यात्रा सकता, हाथ में तलवार नहीं ले सकता, लेकिन तिजोरी तो ली जा पर गया, इंट्रोवर्शन की, अंतर्यात्रा पर गया, सारे बाहर के जगत को | | सकती है और तलवारें खरीदी जा सकती हैं। इसलिए इनडाइरेक्टली छोड़कर भीतर ध्यान और समाधि में डूबा। स्वभावतः, महावीर के | | धन की आकांक्षा, शक्ति की आकांक्षा है—परोक्ष, पीछे के रास्ते आस-पास क्षत्रियों के ही संबंध थे-मित्र थे, प्रियजन थे—वे भी | | से, भयभीत रास्ते से। महावीर से प्रभावित हुए और महावीर के पीछे यात्रा पर गए। यह | ब्राह्मण होने की आकांक्षा शूद्र में भी है। होगी ही। बीज उसके बड़े मजे की बात है कि महावीर के पीछे जो क्षत्रिय यात्रा पर गए, | भीतर है अंतर्मुखता का। अगर वह विकसित हो, तो वह पूर्ण अंत में वे वैश्य होकर रह गए। सारा जैन समाज वैश्यों का हो गया। अंतर्मुखी यात्रा पर निकल जाएगा। अगर विकसित न हो, तो सिर्फ
असल में महावीर से प्रभावित होकर जो क्षत्रिय महावीर के पीछे | आलस्य में खड़ा रह जाएगा। बहिर्मुखी हो न पाएगा, अंतर्मुखी गया था, वह इंट्रोवर्ट नहीं था। वह ब्राह्मण हो नहीं सकता था। था | | होगा नहीं। तब बीच में खड़ा रह जाएगा। आलस्य, तमस, प्रमाद तो वह क्षत्रिय, महावीर से प्रभावित होकर पीछे चला गया। ब्राह्मण | उसकी जिंदगी हो जाएगी। बाहर की यात्रा पर जाएगा नहीं, भीतर हो नहीं पाया, क्षत्रिय होना मुश्किल हो गया, वैश्य होने का एकमात्र की यात्रा पर जा सकता था, जा नहीं रहा है। यात्रा ठहर जाएगी। मार्ग रह गया। वह क्षत्रिय होने से नीचे गिरा और वैश्य हो गया। | दोनों यात्राएं ठहर जाएंगी। शूद्र का अर्थ है, प्रमादी। शूद्र का अर्थ ___ यह होने ही वाला था। ब्राह्मण अंतर्मुखता की श्रेष्ठतम स्थिति | है, सोया हुआ। शूद्र का अर्थ है, आलस्य, तमस से घिरा हुआ। है। सभी ब्राह्मण ब्राह्मण नहीं हैं। अगर ठीक से समझें, तो हम सब | | शूद्र का अर्थ है, जो कुछ भी नहीं कर रहा है; न बाहर जा रहा है, पैदा तो होते हैं या शूद्र की तरह या वैश्य की तरह, विकसित हो | न भीतर जा रहा है; जो प्रमाद में, अंधेरे में सोया रह गया है। सकते हैं ब्राह्मण की तरह या क्षत्रिय की तरह। पैदा तो हम होते हैं | - यह जो मैं कह रहा हूं-यह ध्यान रख लेंगे—यह किसी शूद्र, नीचे पाय दान पर, विकसित हो सकते बीज में तो हम या तो होते किसी ब्राह्मण, किसी वैश्य, किसी क्षत्रिय के लिए नहीं कह रहा है। हैं शूद्र, या होते हैं वैश्य। फिर अगर बीज खिल जाए, तो बन सकते | यह मनोवैज्ञानिक टाइप के लिए कह रहा हूं। हैं क्षत्रिय, या बन सकते हैं ब्राह्मण।
___ इसलिए शूद्र निरंतर ही ब्राह्मण के विपरीत अनुभव करेगा। और मेरे देखे, जन्म से सारे लोग दो तरह के होते हैं-शूद्र और अगर आज सारी दुनिया में और विशेषकर इस मुल्क में, जिसने कि वैश्य। उपलब्धि से, एचीवमेंट से दो तरह के हो जाते हैं ब्राह्मण | | यह टाइप की मनोवैज्ञानिक व्यवस्था सबसे पहले खोजी थी, शूद्र
और क्षत्रिय। जो विकसित नहीं हो पाते, वे पिछली दो कोटियों में | | ने ब्राह्मण के खिलाफ बगावत कर दी है। बगावत करने का एक रह जाते हैं। वर्ण तो दो ही हैं।
ढंग और भी था; वह ढंग यह था कि शूद्र ब्राह्मण होने की यात्रा पर
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