________________
- गीता दर्शन भाग-1-m
है, जिनके लिए धन कमाया जाता है, जिनके लिए यश की कामना | रहेगा, लेकिन तब, तब कर्म परमात्मा के हाथ में समर्पित होकर की जाती है, वे सब मेरे मर जाएंगे युद्ध में, तो मैं इस राज्य का, चलता है। तब मेरा कोई भी दायित्व, तब मेरा कोई भी बोझ नहीं इस धन का, इस साम्राज्य का, इस वैभव को पाकर करूंगा भी | । रह जाता। इस बात को ही कृष्ण आगे और स्पष्ट करेंगे। क्या? जब मेरे ही मर जाएंगे...!
लेकिन उसे भी साफ नहीं है कि मेरे के मरने का इतना डर मैं के मरने का डर है। जब पत्नी मरती है, तो पति भी एक हिस्सा मर प्रश्न : भगवान श्री, पांचवें श्लोक पर प्रश्न करने के जाता है। उतना ही जितना जड़ा था, उतना ही जितना पत्नी उसके पहले कल की चर्चा के संबंध में तीन छोटे प्रश्न रह भीतर प्रवेश कर गई थी और उसके मैं का हिस्सा बन गई थी। गए हैं। कल आपने कहा कि क्षत्रिय बहिर्मुखी है और एकदम से खयाल में नहीं आता कि हम सब एक-दूसरे से अपने ब्राह्मण अंतर्मुखी है और तदनुरूप उनकी साधना में मैं के लिए भोजन जुटाते हैं।
भेद है। कृपया बताएं कि वैश्य और शूद्र को आप एक बच्चा हो रहा है एक मां को। एक स्त्री को बच्चा हो रहा किस चित्त-कोटि में रखेंगे? है। जिस दिन बच्चा पैदा होता है, उस दिन अकेला बच्चा ही पैदा नहीं होता है, उस दिन मां भी पैदा होती है। उसके पहले सिर्फ स्त्री है, बच्चे के जन्म के बाद वह मां है। यह जो मां होना उसमें आया, त्रिय बहिर्मुखता का प्रतीक है, ब्राह्मण अंतर्मुखता का यह बच्चे के होने से आया है। अब उसके मैं में मां होना भी जड़ 1 प्रतीक है। फिर शूद्र और वैश्य किस कोटि में हैं? गया। कल यह बच्चा मर जाए, तो उसका मां होना फिर मरेगा,
दो-तीन बातें समझनी होंगी। अब उसके मैं से फिर मां होना गिरेगा। बच्चे का मरना नहीं अंतर्मुखता अगर पूरी खिल जाए, तो ब्राह्मण फलित होता है; अखरता; गहरे में अखरता है, मेरे भीतर कुछ मरता है, मेरे मैं की | अंतर्मुखता अगर खिले ही नहीं, तो शूद्र फलित होता है। बहिर्मुखता कोई संपदा छिनती है, मेरे मैं का कोई आधार टूटता है। | पूरी खिल जाए, तो क्षत्रिय फलित होता है; बहिर्मुखता खिले ही
उपनिषदों ने कहा है, कोई किसी दूसरे के लिए दुखी नहीं होता, नहीं, तो वैश्य फलित होता है। इसे ऐसा समझें। एक रेंज है सब अपने लिए दुखी होते हैं। कोई किसी दूसरे के लिए आनंदित अंतर्मुखी का, एक श्रृंखला है, एक सीढ़ी है। अंतर्मुखता की सीढ़ी नहीं होता, सब अपने लिए आनंदित होते हैं। कोई किसी दूसरे के | के पहले पायदान पर जो खड़ा है, वह शूद्र है; और अंतिम पायदान लिए जीता नहीं, सब अपने मैं के लिए जीते हैं। हां, जिन-जिन से | पर जो खड़ा है, वह ब्राह्मण है। बहिर्मुखता भी एक सीढ़ी है। उसके हमारे मैं को सहारा मिलता है, वे अपने मालूम पड़ते हैं; और प्रथम पायदान पर जो खड़ा है, वह वैश्य है; और उसके अंतिम जिन-जिन से हमारे मैं को विरोध मिलता है, वे पराए मालूम पड़ते | | पायदान पर जो खड़ा है, वह क्षत्रिय है। हैं। जो मेरे मैं को आसरा देते हैं, वे मित्र हो जाते हैं; और जो मेरे | | यहां जन्म से क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र की मैं बात नहीं कर रहा मैं को खंडित करना चाहते हैं, वे शत्रु हो जाते हैं।
| हूं। मैं व्यक्तियों के टाइप की बात कर रहा हूं। ब्राह्मणों में शूद्र पैदा इसलिए जिसका मैं गिर जाता है, उसका मित्र और शत्रु भी पृथ्वी | होते हैं, शूद्रों में ब्राह्मण पैदा होते हैं। क्षत्रियों में वैश्य पैदा हो जाते से विदा हो जाता है। उसका फिर कोई मित्र नहीं और फिर कोई शत्रु | हैं, वैश्यों में क्षत्रिय पैदा हो जाते हैं। यहां मैं जन्मजात वर्ण की बात नहीं। क्योंकि शत्रु और मित्र सभी मैं के आधार पर निर्मित होते हैं। नहीं कर रहा है। यहां मैं वर्ण के मनोवैज्ञानिक तथ्य की बात कर __यह जो कृष्ण अर्जुन को कह रहे हैं कि कर्म से भागने का कोई रहा हूं। उपाय नहीं, मनुष्य परवश है; कर्म तो करना ही होगा, क्योंकि कर्म | ___ इसलिए यह भी ध्यान में रखने जैसा है कि ब्राह्मण जब भी नाराज जीवन है। इस पर इतना जोर इसीलिए दे रहे हैं कि अर्जुन को दिखाई | होगा किसी पर, तो कहेगा, शूद्र है तू! और क्षत्रिय जब भी नाराज पड़ जाए कि असली बदलाहट, असली म्यूटेशन, असली क्रांति होगा, तो कहेगा, बनिया है तू! कभी सोचा है? क्षत्रिय की कल्पना कर्म में नहीं, कर्ता में करनी है। कर्म नहीं मिटा डालना, कर्ता को में बनिया होना नीचे से नीची बात है। ब्राह्मण की कल्पना में शूद्र विदा कर देना है। वह भीतर से कर्ता विदा हो जाए, तो कर्म चलता | होना नीचे से नीची बात है। क्षत्रिय की कल्पना अपनी ही
320