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________________ m- कर्ता का भ्रम - कृष्ण की बात पश्चिम में भी नहीं सुनी गई। असल में कृष्ण की | असल में जहां पीड़ा है, वहीं बोध टिक जाता है। अगर पैर में कांटा बात किसी ने भी नहीं सुनी कि कर्म से छुटकारा नहीं है, क्योंकि गड़ा है, तो सारा बोध, सारी अटेंशन वहीं, उसी कांटे पर पहंच जाती जीवन और कर्म एक ही चीज के दो नाम हैं। सिर्फ एक बात हो है। अगर शरीर में कहीं भी कोई पीड़ा नहीं है, तो शरीर का बोध मिट सकती है। इसका यह मतलब नहीं है कि हम जैसे जी रहे हैं और जाता है। बाडी कांशसनेस चली जाती है। शरीर का पता ही नहीं जो कर रहे हैं, वैसे ही जीते रहें और वैसे ही करते चले जाएं। अगर चलता है। विदेह हो जाता है आदमी, अगर शरीर स्वस्थ हो। ऐसा कोई समझता है, तो उसे भी कृष्ण की बात सुनाई नहीं पड़ी। ठीक ऐसे ही अगर आत्मा स्वस्थ हो, तो मैं का पता नहीं चलता। कृष्ण यह कह रहे हैं कि कर्म को बदलने की उतनी फिक्र मत | | मैं का पता चलता है तभी तक, जब तक आत्मा बीमार है। इसलिए करो, कर्ता को बदलने की फिक्र करो। असली सवाल यह नहीं है जो आत्मा के तल पर स्वस्थ हो जाते हैं, वे होते तो हैं, लेकिन उन्हें कि क्या तुम कर रहे हो, क्या नहीं कर रहे हो! असली सवाल यह ऐसा नहीं लगता है कि मैं हूं। उन्हें ऐसा ही लगता है—हूं। हूं काफी है कि तुम क्या हो और क्या नहीं हो! असली सवाल डूइंग का नहीं, | | हो जाता है, मैं विदा हो जाता है। बीइंग का है। असली सवाल यह है कि भीतर तुम क्या हो! अगर । वह मैं भी एक कांटे की तरह चुभता है चौबीस घंटे। रास्ते पर तुम भीतर गलत हो, तो तुम जो भी करोगे, उससे गलत फलित | चलते, उठते-बैठते, कोई देखे तो, कोई न देखे तो, वह मैं का कांटा होगा। और अगर तम भीतर सही हो. तो तम जो भी करोगे, उससे चुभता रहता है। उस मैं के घाव से भरे हुए हम कर्ता से घिर जाते हैं। सही फलित होगा। वह अर्जुन भी उसी पीड़ा में पड़ा है। उसका मैं सघन होकर उसे ___ कर्म का प्रश्न नहीं है। वह भीतर जो व्यक्ति है, चेतना है, आत्मा | पीड़ा दे रहा है। वह कह क्या रहा है? वह यह नहीं कहता है, युद्ध है, कर्म उससे ही निकलते हैं, उससे ही फलते-फूलते हैं। उस | में हिंसा होगी, इसलिए मैं युद्ध नहीं करना चाहता हूं। नहीं, वह यह चेतना, उस आत्मा का सवाल है। और वह आत्मा बीमार है एक नहीं कहता। वह कहता है, युद्ध में मेरे लोग मर जाएंगे, इसलिए बहुत बड़ी बीमारी से। लेकिन वह बड़ी बीमारी, हमें लगता है कि मैं युद्ध नहीं करना चाहता हूं। कहता है, मेरे प्रियजन, मेरे संबंधी, हमारा बड़ा स्वास्थ्य है। वह आत्मा बीमार है मैं के भाव से, | | मेरे मित्र दोनों तरफ युद्ध के लिए आतुर खड़े हैं। सब मेरे हैं, और ईगोइज्म से। मैं हूं-यही आत्मा की बीमारी है। मर जाएंगे। कभी शायद आपने खयाल न किया हो, अगर शरीर पूरा स्वस्थ | | कभी आपने सोचा है कि जब मेरा मरता है, तो पीड़ा क्यों होती हो, तो आपको शरीर का पता नहीं चलता। ठीक से समझा जाए, है? क्या इसलिए पीड़ा होती है कि जो मेरा था, वह मर गया! या तो स्वास्थ्य का एक ही प्रमाण होता है कि शरीर का पता न चलता इसलिए पीड़ा होती है कि मेरा होने की वजह से मेरे मैं का एक हो, बाडीलेसनेस हो जाए। आपके सिर में दर्द होता है, तो सिर का हिस्सा था, जो मर गया! ठीक से समझेंगे, तो किसी दूसरे के मरने पता चलता है। अगर सिर में दर्द न हो, तो सिर का पता नहीं से किसी को कभी कोई पीड़ा नहीं होती है। लेकिन मेरा है, तो पीड़ा चलता। और अगर सिर का थोड़ा भी पता चलता हो, तो समझना होती है। क्योंकि जब भी मेरा कोई मरता है, तो मेरे ईगो का एक कि थोड़ा न थोड़ा सिर बीमार है। अगर पैर में पीड़ा हो, तो पैर का हिस्सा, मेरे अहंकार का एक हिस्सा बिखर जाता है भीतर, जो मैंने पता चलता है; पांव में कांटा गड़ा हो, तो पांव का पता चलता है। उसके सहारे सम्हाला था। जहां भी वेदना है, वहीं बोध है। जहां वेदना नहीं, वहां बोध नहीं। ___ इसीलिए तो हम मेरे को बढ़ाते हैं—मेरा मकान हो, मेरी जमीन जहां वेदना है, वहीं चेतना सघन हो जाती है। और जहां वेदना नहीं | | हो, मेरा राज्य हो, मेरा पद हो, मेरी पदवी हो, मेरा ज्ञान हो, मेरे है, वहां चेतना विदा हो जाती है। मित्र हों—जितना मेरा मेरे का विस्तार होता है, उतना मेरा मैं यह वेदना शब्द भी बहुत अदभुत है। इसके दो अर्थ होते हैं। मजबूत और बीच में सघन होकर सिंहासन पर बैठ जाता है। अगर इसका अर्थ ज्ञान भी होता है और दुख भी होता है। हमारे पास शब्द | मेरा सब विदा हो जाए, तो मेरे मैं को खड़े होने के लिए कोई सहारा है, वेद। वेद का अर्थ होता है ज्ञान। वेद से ही वेदना बना है। वेदना | | न रह जाएगा और वह भूमि पर गिरकर टूट जाएगा, बिखर जाएगा। का एक अर्थ तो होता है : ज्ञान, बोध, कांशसनेस; और एक अर्थ | | अर्जुन की पीड़ा क्या है? अर्जुन की पीड़ा यह है कि सब मेरे हैं। होता है : पीड़ा, दुख। यह अकारण अर्थ नहीं होता है इस शब्द का। इसलिए वह बार-बार कहता है कि जिनके लिए राज्य जीता जाता 319
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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