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im+ स्वधर्म की खोज AM
तो निष्कर्म की व्याख्या कृष्ण की समझनी पड़ेगी। क्योंकि | | निष्कर्म को उपलब्ध होता है, वह कर्म को छोड़कर क्यों भागेगा! आमतौर से हम अब तक कर्म के न करने को निष्कर्म समझते रहे | | वह स्वीकार कर लेगा, जो नियति है, जो डेस्टिनी है, जो हो रहा हैं; निष्क्रियता को निष्कर्म समझा है। निष्क्रियता निष्कर्म नहीं है। है, उसे स्वीकार कर लेगा। तब तो आलसी भी निष्कर्म को उपलब्ध हो जाएंगे। तब तो मुरदे दूसरी बात वे कहते हैं कि चीजों को त्यागकर, छोड़कर कोई भी निष्कर्म को उपलब्ध हो जाएंगे। तब तो पत्थर इत्यादि परमात्म-| | अगर सोचता हो कि संसार को त्यागकर परमात्मा का साक्षात्कार साक्षात्कार में ही होंगे।
हो जाए, तो जरूरी नहीं है। ऐसा नहीं होता है। परमात्मा का निष्कर्म नहीं, लेकिन कर्म कर्तारहित निष्कर्म बनता है। कर्म, | | साक्षात्कार किसी भी सौदे से नहीं होता है। कि आपने ये-ये चीजें जहां भीतर करने वाला मैं मौजूद नहीं है, निष्कर्म बनता है। निष्कर्म | | छोड़ दी, तो परमात्मा का साक्षात्कार हो जाएगा। कर्म का अभाव नहीं, कर्ता का अभाव है-नाट एब्सेंस आफ ___एक संन्यासी मेरे पास आए थे। वे कहने लगे कि मैंने घर छोड़ डूइंग, बट एब्सेंस आफ दि डुअर, वह जो करने वाला है। | दिया, पत्नी छोड़ दी, बच्चे छोड़ दिए, दुकान छोड़ दी, अभी तक
कृष्ण कह रहे हैं अर्जुन से कि अगर तू यह छोड़ दे कि तू कर | | परमात्मा का साक्षात्कार क्यों नहीं हुआ है? तो मैंने कहा, कितनी रहा है, तो तेरा कोई कर्म कर्म नहीं है, सब निष्कर्म हो जाता है। | कीमत थी मकान की, दुकान की, पत्नी की, बच्चों की? हिसाब अगर तू यह पकड़े रहे कि मैं कर रहा हूं, तो तू कर्म से भाग भी जा, | | है? तो उन्होंने कहा, आपका मतलब? मैंने कहा कि पक्का हो जाए तो भागना भी तेरा कर्म बन जाता है।
कि कितने मूल्य की चीजें छोड़ी हैं, तो फिर परमात्मा के सामने ___ भागना भी कर्म है, भागना भी तो पड़ेगा। त्यागना भी तो कर्म | शिकायत की जाए कि यह आदमी इतने दाम लग रहा है तुम्हारे लिए है, त्यागना भी तो पड़ेगा। जहां कर्ता मौजूद है, जहां लग रहा है कि और तुम अभी तक छिपे हो! इसने एक मकान छोड़ दिया। मकान मैं कर रहा हूं, वहां कर्म मौजूद है, चाहे वह करना आलस्य ही क्यों | के बदले में परमात्मा? न हो, चाहे वह करना न-करना ही क्यों न हो। लेकिन जहां लग। असल में जहां भी बदले का खयाल है, वहां व्यवसाय है, वहां रहा है कि मेरे करने का कोई सवाल ही नहीं, परमात्मा कर रहा है; | | धर्म नहीं है। त्यागी कहता है, मैंने यह छोड़ दिया और अभी तक जो है, वह कर रहा है, सारा जीवन कर रहा है; जहां मैं एक हवा | नहीं हुआ! लेकिन तुमसे कहा किसने कि छोड़ने से हो जाएगा! में डोलते हए पत्ते की तरह हं. जहां मैं नहीं डोल रहा. हवा डोल रही और जो तमने छोड दिया है. उसका मल्य क्या है? और कल जब है; जहां मैं एक सागर की लहर की तरह हूं, मैं नहीं लहरा रहा, | मौत आएगी, तब तुम क्या करोगे? उसे छोड़ोगे कि पकड़े लिए सागर लहरा रहा है; जहां मेरा मैं नहीं-वहां निष्कर्म है। निष्क्रियता चले जाओगे? मौत आएगी तो वह छूट जाएगा। और तुम नहीं थे, नहीं, निष्कर्म।
तब भी वह था। और तुम नहीं रहोगे, तब भी वह होगा। तो तुम कर्म होगा, फिर भी कर्म का जो उत्पात है, वह नहीं होगा। कर्म | | अपने को छोड़ने वाला समझ रहे हो! जो तुम्हारे होने के पहले था होगा, लेकिन कर्म की जो चिंता और संताप है, वह नहीं होगा। कर्म | | और तुम्हारे होने के बाद रहेगा, उसे तुम छोड़ सकते हो? उसकी होगा, लेकिन कर्म के साथ जो विफलता और सफलता का रोग है, | | मालकियत पागलपन है। और ध्यान रहे, त्याग में भी मालकियत वह नहीं होगा। कर्म होगा, लेकिन कर्म के पीछे वह जो| | का खयाल है। और जब एक आदमी कहता है, मैंने त्यागा, तो वह महत्वाकांक्षा का ज्वर है, बुखार है, वह नहीं होगा। कर्म होगा, यह कह रहा है कि मालकियत मेरी थी। सच बात यह है, लेकिन कर्मे के पीछे वह जो फलाकांक्षा की विक्षिप्तता है, वह नहीं मालकियत नहीं है। त्यागेंगे कैसे? होगी। और तब कर्म फूल की तरह आनंददायी हो जाता है; तब उस | कृष्ण कहते हैं, कुछ त्याग देने से परमात्मा का साक्षात्कार नहीं पर कोई वजन नहीं रह जाता; तब कर्म फूल की तरह खिलता है। | हो जाता।
. तब करने वाला मौजूद नहीं होता; तब कर्म का आनंद ही और हो | परमात्मा का साक्षात्कार बात ही अलग है। वह त्याग से फलित जाता है; तब वह परमात्मा को समर्पित हो जाता है।
नहीं होती है। हां, ऐसा हो सकता है कि परमात्मा के साक्षात्कार से कृष्ण कह रहे हैं कि कर्म को छोड़कर तू अगर भाग गया, तो तू त्याग फलित हो जाए। ऐसा होता है। क्योंकि जब कोई उस विराट यह मत समझना कि तू निष्कर्म को उपलब्ध हो गया है। क्योंकि जो को जान लेता है, तो क्षुद्र को पकड़ने को राजी नहीं रहता। जब
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