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________________ - गीता दर्शन भाग-1 किसी को हीरे मिल जाते हैं, तो कंकड़-पत्थर छोड़ता है। त्याग से | अब तीसरा नहीं होगा। क्योंकि अब तो हिटलर भी मर गया, अब परमात्मा मिलता है, ऐसा नहीं; लेकिन परमात्मा से अक्सर त्याग | तो मुसोलिनी भी नहीं है, अब तीसरा किसलिए होगा? लेकिन क्या फलित होता है। क्योंकि परमात्मा महाभोग है, वह परम रस है। फर्क पड़ता है! माओ को पैदा होने से कैसे रोकिएगा? और नामों कृष्ण यहां एक बहुत ही कैटेगोरिकल वक्तव्य, एक बहुत से फर्क पड़ता है! कोई फर्क नहीं पड़ता। नहीं हिटलर, तो माओ निश्चयात्मक वक्तव्य दे रहे हैं। वह वक्तव्य बहुत कीमती है। उस होगा। नहीं माओ, तो कोई और होगा। नहीं कोई और, तो कोई अ वक्तव्य पर पूरे जीवन का यहां से वहां होना निर्भर है। वह वक्तव्य बस होगा। यह है कि कर्म नहीं छोड़ना है। छोड़ा भी नहीं जा सकता। जीते-जी __ युद्ध इतना विराट जाल है कि वह कोई अर्जुन यह सोचता हो कि कर्म को छोड़ने का कोई उपाय भी नहीं है। | मेरे भाग जाने से हट जाएगा, तो बहुत ही ईगोइस्ट है, बहुत संन्यासी भी कर्म करेगा ही! दुकान नहीं चलाएगा, तो भीख | अहंकारी है। सोच रहा है, मेरी वजह से ही यह इतना बड़ा विराट मांगेगा। फर्क क्या पड़ता है ? भीख मांगना कोई कम कर्म है दुकान युद्ध हो रहा है! करने से? उतना ही कर्म है। घर नहीं बनाएगा, आश्रम बनाएगा। सभी को ऐसा खयाल होता है कि सारी दुनिया उन्हीं के कारण घर छोड़कर आश्रम बनाना कोई कम कर्म है? उतना ही कर्म है। चल रही है। सबको यह खयाल होता है। छोटों को, बड़ों को; कर्म से भागा नहीं जा सकता। जब कर्म से भागा ही नहीं जा अनुयायियों को, नेताओं को सबको यह खयाल होता है कि सकता, तो कर्म से भागना सिर्फ हिपोक्रेसी में ले जाएगा, पाखंड में उनसे ही सारी दुनिया चल रही है। वे गए कि एकदम से सब चला ले जाएगा। जो असंभव है, उसे करने की कोशिश पाखंड पैदा जाएगा। लेकिन नेपोलियन चला जाता है, कहीं कोई पत्थर नहीं करती है। अगर अर्जुन भाग भी जाए युद्ध के मैदान को छोड़कर, | हिलता। सिकंदर चले जाते हैं, किसी पत्ते को खबर नहीं होती है। तो करेगा क्या? कुछ तो करेगा। वह जो भी करेगा, वह भी कर्म हिटलर आते हैं, चले जाते हैं; चर्चिल, गांधी, नेहरू, सब आते हैं, है। कर्म से नहीं भागा जा सकता। तो फिर क्या कोई उपाय नहीं है? | खो जाते हैं; जगत चलता चला जाता है। कृष्ण एक नया द्वार, एक नया डायमेंशन, एक नया आयाम कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि तू यह पागलपन छोड़ कि तेरी वजह ते हैं, कर्म जारी रखो, कर्ता से भाग जाओ। कृष्ण से कुछ हो रहा है। वजह बड़ी है। विराट है जाल उसका। उस विराट मनुष्य के व्यक्तित्व में बड़ी गहरी क्रांति की बात कहते हैं। वे कहते | | जाल को ही नियति कहते हैं, डेस्टिनी कहते हैं। जो एक व्यक्ति पर हैं, कर्म जारी रखो। वह असंभव है, उससे जाया नहीं जा सकता; | निर्भर नहीं है। अनंत-अनंत कारणों के जाल पर जो निर्भर है। उससे लेकिन कर्ता से जाया जा सकता है। कर्म को चलने दो, कर्ता को | हो रहा है। इसलिए तू यह पागलपन छोड़ कि तेरे हट जाने से कोई जाने दो। भीतर से कर्ता को छोड़ो, यह छोड़ो कि मैं कर रहा हूं। | | युद्ध नहीं होगा, कि तेरे होने से युद्ध हो रहा है। तू नहीं भी हो, तो भी इसलिए कृष्ण बार-बार गीता में अर्जुन को कहते हैं कि जिन्हें तू | हो जाएगा। क्योंकि तू बहुत छोटा पुर्जा है। तेरे बिना हो सकता है। सोचता है कि तू मारेगा, मैं तुझे कहता हूं कि वे पहले ही मारे जा | | शायद पुर्जा भी नहीं है। क्योंकि जिसने तुझे पुर्जा चुना है, वह किसी चुके हैं। जिन्हें तू सोचता है कि तेरे कारण मरेंगे, तू नासमझ है, तू दूसरे को भी पुर्जा चुन सकता है। और तुझसे तो पूछकर चुना नहीं है मात्र निमित्त है, वे तेरे बिना भी मरेंगे। परे समय वे यह कह रहे हैं। उसने. दसरे को भी बिना पछे चन लेगा। कि तू एक खयाल छोड़ दे कि तू करने वाला है। और अर्जुन की | | कर्ता होने का खयाल अगर गिर जाए और व्यक्ति देखे कि अनंत परेशानी यही है, उसे लग रहा है कि करने वाला मैं हूं। अगर मैं | | नियमों के जाल में जीवन चलता है। एक धारा है, जो बही जा रही भाग जाऊं, तो युद्ध बच जाए। है; उसमें हम तिनकों-से बहते हैं-तिनके। हम बहते हैं, यह ___ यह जरूरी नहीं है। अर्जुन अकेला नहीं है। अर्जुन के भागने से | कहना भी शायद ठीक नहीं। धारा बहती है। हम तो तिनके हैं, हम भी युद्ध बच जाएगा, यह जरूरी नहीं है। युद्ध अनंत कारणों पर | | क्या खाक बहते हैं। धारा बहती है, हम सिर्फ धारा में होते हैं। धारा निर्भर है। पूरब बहती है, तो हम पूरब बहते हैं; धारा पश्चिम बहती है, तो लोग सोचते थे कि पहला महायुद्ध हो गया, अब दूसरा महायुद्ध | हम पश्चिम बहते हैं। नहीं होगा। दूसरा भी हो गया। फिर दूसरे के बाद लोग सोचने लगे, __ कृष्ण का सारा जोर इस बात पर है कि तू यह भूल जा कि तू करने |314
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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