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Sam गीता दर्शन भाग-1 AM
अब वे फिर कहते हैं कि दो तरह की निष्ठाएं हैं अर्जुन! सांख्य की | | निष्पाप? क्यों कहा निष्पाप? मुझ पापी को क्यों कहते हैं? कोई और योग की, कर्म की और ज्ञान की।
| मौका नहीं दिया। बात आई और गई, और अर्जुन के मन में सरक एकदम तत्काल। कृष्ण ने तीन बार नहीं कहा कि हे निष्पाप | | गई। अर्जुन, हे निष्पाप अर्जुन, हे निष्पाप अर्जुन। नियम यही था। नियम ___ध्यान रहे, जैसे ही चित्त सोचने लगता है, वैसे ही बात गहरी नहीं यही था। अदालत में शपथ लेते हैं तो तीन बार। इमाइल कुए है | | जाती है। चित्त ने सोचा, उसका मतलब है कि हुक्स में अटक गई। फ्रांस में; अगर वह सुझाव देता है, तो तीन बार। दुनिया के किसी | | चित्त ने सोचा, उसका मतलब है कि ऊपर-ऊपर रह गई, लहरों में भी सम्मोहनशास्त्री और मनोवैज्ञानिक से पूछे, तो वह कहेगा कि | | जकड़ गई-गहरे में कहां जाएगी। विचार तो लहर है। सिर्फ वे ही जितनी बार सुझाव दो, उतना गहरा परिणाम होगा। कृष्ण कुछ | बातें गहरे में जाती हैं, जो बिना सोचे उतर जाती हैं। इसलिए सोचने ज्यादा जानते हैं। कृष्ण कहते हैं एक बार, और छोड़ देते हैं। क्योंकि | का जरा भी मौका नहीं है। और सोचने का मौका दूसरी बात में है, दुबारा कहने का मतलब है, पहली बार कही गई बात झूठ थी क्या! ताकि इसमें सोचा ही न जा सके।
जब अदालत में एक आदमी कहता है कि मैं परमात्मा की कसम | । वे कहते हैं, दो निष्ठाएं हैं। एक निष्ठा है ज्ञान की, एक निष्ठा खाकर कहता हूं कि सच बोलूंगा; और फिर दुबारा कहता है कि मैं | है कर्म की। परमात्मा की कसम खाकर कहता हूं कि सच बोलूंगा; तो पहली बात का क्या हुआ! और जिसकी पहली बात झूठ थी, उसकी दूसरी बात का कोई भरोसा है? वह तीन बार भी कहेगा, तो क्या होगा? न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्य पुरुषोऽश्नुते ।.
कृष्ण कुए से ज्यादा जानते हैं। कृष्ण एक बार कहते हैं। न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति ।। ४ ।। इनोसेंटली-जैसे कि जानकर कहा ही नहीं-हे निष्पाप अर्जुन! | मनुष्य न तो कमों के न करने से निष्कर्मता को प्राप्त होता और बात छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं; एक क्षण ठहरते भी नहीं। है और न कमों को त्यागने मात्र से भगवत् साक्षात्कार रूप शक का मौका भी नहीं देते, हेजिटेशन का मौका भी नहीं देते,
सिद्धि को प्राप्त होता है। अर्जुन को विचारने का भी मौका नहीं देते। ऐसा भी नहीं लगता अर्जुन को कि उन्होंने कोई जानकर चेष्टा से कहा हो। बस, ऐसे संबोधन किया और आगे बढ़ गए।
क र्मों के न करने से निष्कर्म को मनुष्य प्राप्त नहीं होता है असल में उसका निष्पाप होना, कृष्ण ऐसा मान रहे हैं, जैसे कोई पा और न ही सब कुछ छोड़कर भाग जाने से भगवत् बात ही नहीं है। जैसे उन्होंने कहा हो, हे अर्जुन! और बस, ऐसे ही
साक्षात्कार को उपलब्ध होता है। चुपचाप आगे बढ़ गए। जितना साइलेंट सजेशन, उतना गहरा जाता बड़े ही विद्रोही और क्रांतिकारी शब्द हैं। क्या होगा त्यागियों का! है। जितना चुप, जितना इनडायरेक्ट, जितना परोक्ष-चुपचाप | क्या होगा भागने वालों का? भीतर सरक जाता है। जितनी तीव्रता से, जितनी चेष्टा से, जितना । कृष्ण कहते हैं, मात्र कर्म को छोड़कर भाग जाने से कोई निष्कर्म आग्रहपूर्वक-उतना ही व्यर्थ हो जाता है।
को उपलब्ध नहीं होता। क्योंकि निष्कर्म कर्म के अभाव से ज्यादा पश्चिम के मनोविज्ञान को बहुत कुछ सीखना है। कुए जब बड़ी बात है। मात्र कर्म का न होना निष्कर्म नहीं है। निष्कर्म और अपने मरीज को कहता है कि तुम बीमार नहीं हो, और जब दुबारा | | भी बड़ी घटना है। कहता है कि तुम बीमार नहीं हो, और जब तिबारा कहता है कि तुम जैसे कि बीमारी का न होना स्वास्थ्य नहीं है; स्वास्थ्य और बड़ी बीमार नहीं हो, तो कृष्ण उस पर हंसेंगे। वे कहेंगे कि तुम तीन बार | घटना है। ऐसा हो सकता है कि आदमी बिलकुल बीमार न हो और कहते हो, तो तीन बार तुम उसे याद दिलाते हो कि बीमार हो, बीमार | | बिलकुल स्वस्थ न हो। सब तरह की जांच-परख कहे कि कोई हो, बीमार हो।
| बीमारी नहीं है और आदमी बिलकुल ही स्वस्थ न हो। बीमारी का हे निष्पाप अर्जुन! आगे बढ़ गए वे और कहा कि दो निष्ठाएं हैं। न होना मात्र, स्वास्थ्य नहीं है। और मात्र कर्मों को छोड़कर भाग अर्जुन को मौका भी नहीं दिया कि सोचे-विचारे, पूछे कि कैसा जाने से निष्कर्म उपलब्ध नहीं होता। क्यों?
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