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________________ mगीता दर्शन भाग-1 AM क्या मैं कभी भी समाप्त न होऊंगा। ऐसा ही बना रहंगा! तब भी ध्यान रहे, जब हम दूसरे से पूछते हैं, तो वह केवल इसकी खबर मन घबड़ाता है। होती है कि अब हम अपने से पूछने की हालत में बिलकुल नहीं __ अब बडी मश्किल है। एक साक्रेटीज है. जो कहता है, नास्तिक रहे। अब हालत इतनी बुरी है कि अपने से पूछना बेकार ही है। से भी निश्चय निकाल लेता है, आस्तिक से भी निश्चय निकाल अपने से जो उत्तर आते हैं, सब कनफ्यूजिंग हैं, सब...। लेकिन लेता है। एक ये मित्र हैं, ये बिलकुल एंटीसाक्रेटीज हैं। ये बुद्ध और | यह जिसके भीतर से हम पूछ रहे हैं, जो पूछ रहा है, वही तो सुनेगा महावीर से भी चिंता निकालते हैं, बड रसेल से भी चिंता निकालते | न? वही फिर नए प्रश्न खड़े कर लेता है। अर्जुन करेगा। हैं। ये दोनों विरोधियों से भी चिंता निकाल लेते हैं। तो इसका अर्थ | ऐसे उसकी बड़ी कृपा है, अन्यथा गीता पैदा नहीं हो सकती थी। क्या है? इस अर्थ में भर उसकी कृपा है कि वह उठाता जाएगा प्रश्न और इसका अर्थ यह है, हम वही निकाल लेते हैं, जो हम निकाल | कृष्ण से उत्तर संवेदित होते चले जाएंगे। कृष्ण जैसे लोग कभी कुछ सकते हैं। लेकिन फिर भी हम सोचते हैं कि वह बड रसेल की | | लिखते नहीं। कृष्ण जैसे लोग सिर्फ रिस्पांड करते हैं, प्रतिसंवेदित वजह से मुझे चिंता पैदा हो रही है, महावीर की वजह से चिंता पैदा | | होते हैं। लिखते तो केवल वे ही लोग हैं, जो किसी को कुछ थोपना हो रही है। सच बात यह है कि मैं चिंतित हूँ, अनिश्चित हूं। मैं | चाहते हों। कृष्ण जैसे लोग तो कोई पूछता है, पुकारता है, तो बोल महावीर से भी अनिश्चय निकालता हूं, रसेल से भी अनिश्चय | देते हैं। निकाल लेता हूं। तो अर्जुन खुद तो परेशानी में है, लेकिन अर्जुन से आगे आने अर्जुन कहता है, कुछ ऐसा कहें मुझे कि मैं सारे अनिश्चय के पार | वाले जो और अर्जुन होंगे, उन पर उसकी बड़ी कृपा है। गीता पैदा होकर थिर हो जाऊं। अर्जुन की मांग तो ठीक है; लेकिन साफ-साफ | नहीं हो सकती थी अर्जुन के बिना; अकेले कृष्ण से गीता पैदा नहीं उसे नहीं है कि कारण क्या है। हम सबकी भी यही हालत है। मंदिर | हो सकती थी। अर्जुन पूछता है, तो कृष्ण से उत्तर आता है। कोई में जाते हैं, मस्जिद में जाते हैं, गुरु के पास, साधु के पास-निश्चय नहीं पूछेगा, तो कृष्ण शून्य और मौन रह जाएंगे; कुछ भी उत्तर वहां खोजने कि कहीं निश्चित हो जाए बात। कहीं निश्चित न होगी। | से आने को नहीं है। उनसे कुछ लिया जा सकता है, उनसे कुछ अनिश्चित मन लिए हुए इस जगत में कुछ भी निश्चित नहीं हो | | बुलवाया जा सकता है। और अर्जुन ने वह बुलवाने का काम किया । सकता। अर्जुन को भीतर लिए हुए इस जगत में कुछ भी निश्चित | | है। उसकी जिज्ञासा, उसके प्रश्न, कृष्ण के भीतर से नए उत्तर का नहीं हो सकता। और निश्चित, ऋजु मन हो, तो इस जगत में कुछ जन्म बनते चले जाते हैं। भी अनिश्चित नहीं, सब निश्चित है। चित्त है आधार-शब्द और | सिद्धांत और शास्त्र नहीं, दूसरे के वक्तव्य नहीं। अब कृष्ण से ज्यादा निश्चित आदमी अर्जुन को कहां मिलेगा! श्रीभगवानुवाच मुश्किल है। जन्मों-जन्मों भी अर्जुन खोजे, तो कृष्ण जैसा आदमी लोकस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ । खोज पाना बहुत मुश्किल है। पर उनसे भी वह कह रहा है कि आप ज्ञानयोगेन सांख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम् ।। ३ ।। कुछ निश्चित बात कहें, तो शायद मेरा मन निश्चित हो जाए! और इस प्रकार अर्जुन के पूछने पर भगवान श्री कृष्ण बोले, ध्यान रहे, जो व्यक्ति दूसरे से निर्णय खोजता है, वह अक्सर निर्णय | हे निष्पाप अर्जुन, इस लोक में दो प्रकार की निष्ठा मेरे द्वारा नहीं उपलब्ध कर पाता। पहले कही गई है। ज्ञानियों की ज्ञानयोग से और योगियों की एक व्यक्ति मेरे पास आए। उन्होंने कहा, मैं संन्यास लेना चाहता निष्काम कर्मयोग से। हूं। आप सलाह दें कि मैं लूं या न लूं? मैंने कहा कि जब तक सलाह मानने की और मांगने की इच्छा रहे, तब तक मत लेना। जिस दिन सारी दुनिया कहे कि मत लो, फिर भी हो कि लेंगे, तभी लेना। कहते हैं कृष्ण, निष्पाप अर्जुन! संबोधन करते हैं, निष्पाप अन्यथा लेकर भी पछताओगे, लेकर भी दुखी होओगे और लोगों से प अर्जुन! क्यों? क्यों? इसे थोड़ा समझना जरूरी है। पूछने जाओगे कि कोई गलती तो नहीं की। संन्यास छोड़ दूं कि रखू! यह एक बहुत मनोवैज्ञानिक संबोधन है। 3101
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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