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________________ 10. स्वधर्म की खोज -Am इसका अर्थ हुआ कि कृष्ण ने कितने ही निश्चय से कही हो, तो भी मैं निश्चित हूं। क्योंकि जब बचना ही है, तो चिंता कैसी? अर्जुन के व्यक्तित्व से उसका कोई तालमेल नहीं हो पाया। अर्जुन | ___ अब इसको समझें। यह साक्रेटीज इतनी अनिश्चित स्थिति में से के लिए वह कहीं भी निश्चय की ध्वनि भी नहीं पैदा कर पाई। । | भी निश्चय निकाल लेता है। और कृष्ण इतनी निश्चित बात कहते अर्जुन और उसके बीच समानांतर स्थिति रही—पैरेलल। वैसे ही । | हैं। उनका स्टेटमेंट टोटल है, कि सांख्य परम निष्ठा है; ज्ञान पर्याप्त जैसे रेल की दो पटरियां समानांतर होती हैं, चलती हैं जिंदगीभर | | है; स्वयं को जान लेना काफी है, कुछ और करने का कोई अर्थ नहीं साथ, मिलती कहीं भी नहीं हैं। साथ ही साथ होती हैं सदा और है। अर्जुन कहता है, कुछ ऐसी निश्चित बात कहो कि मेरा बहुत दूर फासले पर मिलती हुई मालूम भी होती हैं; लेकिन जब | अनिश्चित मन अनिश्चित न रहे, मेरा विषयों में भागता हुआ यह वहां पहुंची तो पाया जाता है, उतनी ही अलग हैं, मिलती कहीं भी | मन ठहर जाए। अर्जुन यह नहीं समझ पा रहा है कि बातें निश्चित नहीं। पैरेलल लाइन की तरह अर्जुन और कृष्ण के बीच यह लंबा । नहीं होती, चित्त निश्चित होते हैं। सिद्धांत निश्चित नहीं होते, चेतना संवाद चलने वाला है। | निश्चित होती है। सर्टेन्टीज जो हैं, निर्णायक तत्व जो हैं, वे सिद्धांतों ___ अर्जुन कह रहा है, निश्चित कहो कि मेरा भ्रम टूटे, मेरा उलझाव | से नहीं आते, चित्त की स्थिति से आते हैं। मिटे। लेकिन जो चित्त भीतर उलझा हुआ है, वह निश्चित से निश्चित कभी आपने अर्जुन शब्द का अर्थ सोचा है ? बड़ा अर्थपूर्ण है। बात में से भी उलझाव निकाल लेता है। कोई बात निश्चित नहीं हो शब्द है एक-ऋजु। ऋजु का अर्थ होता है : सीधा-सादा, स्ट्रेट। सकती जब तक चित्त उलझा हुआ है, क्योंकि वह हर निश्चय में से अऋजु, अऋजु का अर्थ होता है : टेढ़ा-मेढ़ा, डांवाडोल। अर्जुन अनिश्चय निकाल लेता है। कितनी ही निश्चित बात कही जाए, वह शब्द का अर्थ ही होता है, डोलता हुआ। उसमें से नए दस सवाल उठा लेता है। वे सवाल उसके भीतर से हम सबके भीतर अर्जुन है। वह जो हमारा चित्त है, वह अर्जुन आते हैं, उसके अनिश्चय से आते हैं। और अगर निश्चित चित्त हो, की हालत में होता है। वह सदैव डोलता रहता है। वह कभी कोई तो कितनी ही अनिश्चित बात कही जाए. वह उसमें से निश्चय | निश्चय नहीं कर पाता। वह काम भी कर लेता है अनिश्चय में। निकाल लेता है। हम वही निकाल लेते हैं, जो हमारे भीतर की | काम भी हो जाता है, फिर भी निश्चय नहीं कर पाता। काम भी कर अवस्था होती है। हममें कुछ डाला नहीं जाता; हम वही अपने में चुका होता है, फिर भी तय नहीं कर पाता कि करना था कि नहीं आमंत्रित कर लेते हैं, जो हमारे भीतर तालमेल खाता है। करना था। पूरी जिंदगी अनिश्चय है। साक्रेटीज मर रहा था। तो उसके एक मित्र ने साक्रेटीज से पूछा वह जो अर्जुन है, वह हमारे मन का प्रतीक है, सिंबालिक है। कि आप बड़े निश्चित मालूम पड़ रहे हैं और मृत्यु सामने खड़ी है, | वह इस बात की खबर है कि मन का यह ढंग है। और मन से आप जहर पीसा जा रहा है! आपके निश्चय को देखकर मन डरता है, | कितनी ही निश्चित बात कहें, वह उसमें से नए अनिश्चय मन कंपता है। यह कैसा निश्चय है? मृत्यु सामने है, आप इतने | निकालकर हाजिर हो जाता है। वह कहता है, फिर इसका क्या निश्चितमना क्यों हैं? होगा? फिर इसका क्या होगा? साक्रेटीज ने कहा कि मैं सोचता हूं कि नास्तिक कहते हैं कि एक मित्र कल मुझे मिलने आए। कहने लगे, बड रसेल ऐसा आत्मा बचेगी नहीं, सब मर जाएगा। अगर वे सही हैं, तो चिंता का कहते हैं कि आत्मा नहीं है, तो मेरा क्या होगा? मैंने कहा, बर्टेड कोई भी कारण नहीं। क्योंकि मैं मर ही जाऊंगा, चिंता करने वाला | रसेल कहते हैं, तो उनको चिंता करने दो, तुम क्यों चिंता करते हो? भी कोई बचने वाला नहीं है। आस्तिक कहते हैं कि नहीं मरोगे; शरीर फिर मैंने कहा, बट्रेंड रसेल कहते हैं कि आत्मा नहीं है, लेकिन खुद ही मरेगा, आत्मा बचेगी ही; आत्मा को मारा ही नहीं जा सकता। तो चिंतित नहीं हैं। तुम क्यों चिंतित होते हो? नहीं, उन्होंने कहा कि अगर वे सही हैं, तो मेरे चिंतित होने का कोई भी कारण नहीं। | और ये बुद्ध, महावीर और कृष्ण, ये सब कहते हैं कि आत्मा अमर क्योंकि जब बचूंगा ही, तो चिंता क्या करनी! साक्रेटीज कहता है, | है, इससे बड़ी चिंता होती है। मैंने कहा कि बड रसेल कहते हैं कि मझे मालम नहीं कि नास्तिक ठीक कहते हैं कि आस्तिक ठीक कहते आत्मा नहीं है. तो क्या चिंता होती है? तो चिंता होती है कि मैं हैं। लेकिन अगर नास्तिक ठीक कहते हैं, तो मैं निश्चित हूं। क्योंकि समाप्त हो जाऊंगा। बुद्ध और महावीर कहते हैं कि आत्मा अमर मर ही जाऊंगा, चिंता किसे है। और अगर आस्तिक ठीक कहते हैं, | है, तो क्या चिंता होती है? तो वे कहने लगे, चिंता यह होती है कि | 309
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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