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________________ m+ गीता दर्शन भाग-1 AM इसलिए कृष्ण जब कहते हैं, यही परम है, तो वे अर्जुन की आंख | मुझे उस क्षण में दिखाई ही पड़ता है। ऐसा भी नहीं है कि कल मैं में झांक रहे हैं और देख रहे हैं कि शायद यह उसे ठीक पड़ जाए; | बदल जाऊंगा, तो आप कहें कि कल आप बदल गए तो उस दिन तो उसके लिए यही परम हो जाए। आपने धोखा दिया था? नहीं, तब भी उस क्षण में मैंने ऐसा ही जाना इसलिए गीता विशिष्ट है इस अर्थ में कि अब तक सत्य तक | था और वह मेरे पूरे प्राणों से निकला था कि तुझसे ज्यादा सुंदर और पहुंचने के जितने द्वार हैं, कृष्ण ने उन सबकी बात की है। लेकिन कोई भी नहीं है। उस क्षण के लिए मेरे पूरे प्राणों की पुकार वही थी। वह बात सिंथेटिक नहीं है, वह बात गांधी जी जैसी नहीं है। वह | कृष्ण जैसे लोग क्षणजीवी होते हैं, लिविंग मोमेंट टु मोमेंट। जब बात ऐसी नहीं है कि वह भी ठीक है, यह भी ठीक है। कृष्ण कहते | | वे सांख्य की बात करते हैं, तब वे सांख्य के साथ इस प्रेम में पड़ हैं, जो ठीक है, उसके लिए वह परम रूप से ठीक है, बाकी उसके जाते हैं कि वे कहते हैं, सांख्य परम है। अर्जुन! सांख्य से श्रेष्ठ कुछ लिए सब गलत है। दूसरा किसी के लिए ठीक है, तो वह उसके | | भी नहीं है। और जब वे भक्ति के प्रेम में पड़ जाते हैं क्षणभर के लिए परिपूर्ण रूप से ठीक है-एब्सोल्यूट–निरपेक्ष ठीक है, और बाद, तो वे कहते हैं, अर्जुन! भक्ति ही मार्ग है; उसके अतिरिक्त बाकी उसके लिए सब गलत है। कोई भी मार्ग नहीं है। गीता बडी हिम्मतवर किताब है। और इतनी हिम्मत के लोग कम इसे ध्यान में रखना पडेगा। इसमें कोई तलनात्मक कोई होते हैं, जो अपनी ही बात को जिसे उन्होंने दो क्षण पहले कहा है, | कंपेरेटिव बात नहीं है। जब कृष्ण कहते हैं, सांख्य परम है, या जब दो क्षण बाद कह सकें कि वह बिलकुल गलत है, यह बिलकुल | | मैं कहता हूं किसी स्त्री से कि तुझसे सुंदर और कोई भी नहीं है, तब ठीक है। और दो क्षण बाद इसको भी कह सकें कि यह बिलकुल | | मैं दुनिया की स्त्रियों से उसकी तुलना नहीं कर रहा। असल में मेरे गलत है और अब जो मैं कह रहा हूं वही बिलकुल ठीक है। इतना | लिए वह अतुलनीय हो गई है, इसलिए दुनिया में अब कोई स्त्री असंगत होने का साहस केवल वे ही लोग कर सकते हैं, जो भीतरी | उसके मुकाबले नहीं है। मैं कोई तुलना नहीं कर रहा, मैं कोई कंपेयर रूप से परम संगति को उपलब्ध हो गए हैं, और अन्य लोग नहीं नहीं कर रहा, सारी तस्वीरें रखकर जांच नहीं कर रहा कि इससे कर सकते हैं। संदर कोई स्त्री है या नहीं। न मैंने सारी दनिया की स्त्रियां देखी हैं. यह तो बार-बार खयाल में आएगा आपको कि कृष्ण जब भी | | न जानने का सवाल है। न! इस क्षण में मेरे पूरे प्राणों की आवाज . जो कुछ कहते हैं, एब्सोल्यूट, निरपेक्ष कहते हैं; जब जो कुछ कहते यह है कि तुझसे सुंदर और कोई भी नहीं है। वह सिर्फ मैं यह कह हैं, उसे पूर्णता से कहते हैं। खयाल यही है कि वह इतनी पूर्णता में | | रहा हूं कि मैं तुझे प्रेम करता हूं। और जहां प्रेम है, वहां परम, ही अर्जुन के लिए चुनाव बन सकता है, अन्यथा चुनाव नहीं बन | एब्सोल्यूट प्रकट होता है। सकता है। और कृष्ण जब सांख्य की बात करते हैं, तो वे सांख्य के साथ इसलिए दनिया में जब से बहत कम हिम्मत के दयाल लोग पैदा उसी तरह प्रेम में हैं, जैसे कोई प्रेमी। और अगर इतने प्रेम में न हों, हो गए हैं जो कहते हैं, यह भी ठीक है, वह भी ठीक है; सब तो गीता में इतने प्राण नहीं हो सकते थे, तब किताब भगवद्गीता ठीक है; और सबकी खिचड़ी बनाने की कोशिश में लगे हुए | नहीं कही जा सकती थी। तब वह भगवान का वचन नहीं कही जा हैं-तब से उन्होंने न हिंदू को ठीक से हिंदू रहने दिया, न मुसलमान | | सकती थी। भगवान का वचन वह इसीलिए कही जा सकी-वह को ठीक से मुसलमान रहने दिया; न अल्लाह के पुकारने में ताकत | इसीलिए गीत गोविंद बन गई-सिर्फ इसीलिए कि प्रतिपल कृष्ण रह गई, न राम को बुलाने में हिम्मत रह गई। अल्ला-ईश्वर तेरे नाम ने जो भी कहा, उसके साथ वे इतने एक हो गए कि रत्तीभर का बिलकुल इम्पोटेंट हो जाता है, बिलकुल मर जाता है; उसमें कोई फासला न रहा। ताकत नहीं रह जाती। उसमें कोई ताकत ही नहीं रह जाती। । सांख्य की बात करते वक्त वे सांख्य हो जाते हैं: भक्ति की बात एक व्यक्ति के लिए उसका निर्णय सदा परम होता है। वह करते वक्त वे भक्त हो जाते हैं; योग की बात करते वक्त वे निर्णय उसी तरह का है कि मैं किसी स्त्री के प्रेम में पड़ जाऊं, तो महायोगी हो जाते हैं। अतीत गिर जाता, भविष्य शेष नहीं रहता, जो उस प्रेम के क्षण में मैं उससे कहता हूं कि तुझसे ज्यादा सुंदर और सामने होता है, उसके साथ वे पूरे एक हो जाते हैं। कोई भी नहीं है। और ऐसा नहीं है कि मैं उसे धोखा दे रहा हूं। ऐसा । इसे खयाल में रखेंगे, तो उनके वचन तुलनात्मक नहीं हैं। एक 306
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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