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________________ → स्वधर्म की खोज 4 चुनना ही होगा। दोनों पर नहीं चला जा सकता। और इसीलिए एक बात और आपसे कह दूं । इसीलिए जो व्यक्ति जिस मार्ग से पहुंचेगा, वह बलपूर्वक कहेगा कि मेरा ही। मार्ग ठीक है। उसके कहने में कोई गलती नहीं है, वह पहुंचा है उस मार्ग से। और वह बलपूर्वक यह भी कहेगा कि दूसरे का मार्ग ठीक नहीं है, जानते हुए भी कि दूसरे का मार्ग भी ठीक है। पर ऐसा क्यों कहेगा ? क्योंकि अगर वह ऐसा कहे कि वह मार्ग भी ठीक है, यह मार्ग भी ठीक है, तो जिन लोगों को मार्ग पर चलना है, उनके लिए चुनाव कठिन होता चला जाता है। इसलिए दुनिया में जब से इक्लेक्टिक रिलीजन पैदा हो गए, जैसे थियोसाफी, जिसने कहा कि सब मार्ग ठीक हैं, तो उस मार्ग पर कोई आदमी चला नहीं कभी। हां, लोग किताब पढ़ लिए। जब सब मार्ग ठीक हैं, तो चुनाव मुश्किल हो गया। जब से दुनिया में कुछ ऐसे लोगों ने बात करनी शुरू की कि सभी ठीक है, तब से करीब-करीब मतलब यह हुआ कि सभी बेकार है, कुछ भी ठीक नहीं है। जो अंततः मतलब हुआ। जब हम कहने लगते हैं कि सभी • ठीक है, तो करीब-करीब बात ऐसी हो जाती है कि गलत कुछ भी नहीं है। और अंततः मनुष्य के मन पर जो परिणाम होता है, वह यह होता है कि सभी गलत है। इसलिए सांख्य अनिवार्य रूप से कहेगा कि गलत है कर्म की बात; ज्ञान ही सही और मैं मानता हूं, इसमें करुणा है, इसमें मेटम नहीं है। इस बात को ठीक से समझ लेना है। इसमें कोई रूढ़िवाद नहीं है; इसमें सिर्फ करुणा है। क्योंकि वह जो विराट मनुष्य जाति है, उसे चुनाव करना है। एक- एक आदमी को डिसीजन लेना है - कहां चले ? अगर सभी ठीक है, तो आदमी इनडिसीसिव हो जाता है। वह अनिश्चय में पड़ जाता है। वह सिर्फ खड़ा रह जाता है। अगर चौरस्ते पर आप किसी से पूछें कि कौन-सा रास्ता नदी पहुंचता है? और वह कहे कि सभी रास्ते नदी पहुंचते हैं, तो बहुत संभावना यही है कि आप चौरस्ते पर खड़े रह जाएं और दूसरे आदमी की प्रतीक्षा करें, जो एक रास्ता बता सकता हो। सांख्य कहेगा : ठीक है ज्ञान। योग कहेगा : ठीक है साधना, कर्म, श्रम। उनके कहने में करुणा है। व्यक्तियों को, जिनसे यह बात कही जा रही है, उनके सामने स्पष्ट चुनाव चाहिए। लेकिन एक बात समझ लेनी चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने को तौलकर मार्ग...। | इसलिए गीता एक अर्थ में अदभुत ग्रंथ है। न कुरान इस अर्थ में अदभुत है, न बाइबिल इस अर्थ में अदभुत है, न महावीर के वचन, न बुद्ध के, इस अर्थ में अदभुत हैं। किसी और अर्थ में वे सारी चीजें अदभुत हैं । लेकिन गीता एक विशेष अर्थ में अदभुत है कि उसमें सब तरह के व्यक्तियों के मार्गों की चर्चा हो गई है। उसमें सब तरह की संभावनाओं पर चर्चा हो गई है, क्योंकि अर्जुन पर कृष्ण ने सभी तरह की संभावनाओं की बात की है। एक-एक संभावना बेकार होती गई है, वे दूसरी संभावना की बात करते चले गए हैं। ऐसे अर्जुन के बहाने कृष्ण ने प्रत्येक मनुष्य के लिए संभावना का द्वार |खोल दिया है। 305 लेकिन उससे उलझन भी पैदा हुई। उलझन यह पैदा हुई कि कृष्ण जब सांख्य की बात करते हैं, तो वे कहते हैं, सांख्य परम है। तब वे ऐसे बोलते हैं, जैसे वे सांख्य स्वयं हैं। बोलना ही पड़ेगा। जब वे योग की बात करते हैं, तो लगता है, योग परम है। जब वे भक्ति की बात करते हैं, तो लगता है कि भक्ति परम है। इससे एक उपद्रव जरूर हुआ। वह उपद्रव यह हुआ कि भक्त ने पूरी गीता में से भक्ति निकाल डाली। निकाल ली भक्ति और पूरी गीता पर भक्ति को थोप देने की कोशिश की। रामानुज, वल्लभ, निम्बार्क – सबकी टीकाएं पूरी गीता पर भक्ति को थोप देती हैं । ज्ञानियों ने ज्ञान निकाल लिया और पूरी गीता पर ज्ञान थोपने की कोशिश की— शंकर । कर्मियों ने कर्म निकाल लिया – तिलक— और पूरी गीता पर कर्म को थोपने की कोशिश की। - लेकिन कोई भी इस सत्य को ठीक से नहीं समझ पाया कि गीता समस्त मार्गों का विचार है। और जब एक मार्ग की कृष्ण बात करते हैं, तो उस मार्ग से वे इतने लीन और एक हो जाते हैं कि वे कहते हैं, परम है, यही परम है। जब अर्जुन पर वह व्यर्थ हो जाता है, तब वे दूसरे मार्ग की बात करते हैं। तब वे अर्जुन से फिर कहते हैं, यही परम है, दिस इज़ दि अल्टिमेट, यही सत्य है पूर्ण । क्योंकि अर्जुन को वे फिर चाहते हैं कि इसे चुन ले। और अर्जुन वैसे ही अनिश्चयमना है, अगर कृष्ण भी स्यातवाद में बोलें कि शायद यह ठीक है, शायद वह ठीक है, तो अर्जुन के लिए चुनाव असंभव है। अगर कृष्ण यह कहें कि वह भी ठीक है, यह भी ठीक है; किसी के लिए वह ठीक है, किसी के लिए यह ठीक है; कभी वह ठीक है, कभी यह ठीक है। तो अर्जुन, जो इनडिसीजन में पड़ा है, जो अनिर्णय में पड़ा है, जो चिंता में पड़ा है, जिसे मार्ग नहीं सूझता, | उसके लिए कृष्ण मार्ग नहीं बना सकेंगे, मार्ग नहीं दे सकेंगे।
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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