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________________ Sam गीता दर्शन भाग-1 अपने अंतर-जीवन के स्रोतों से संबंध टूट जाएगा और वह समाप्त | ___ कृष्ण ने बड़ी ही अंतर्दृष्टि का प्रमाण दिया है। क्योंकि बात वह हो जाएगा। | ब्राह्मण जैसी कर रहा है, इसलिए ब्राह्मण की जो चरम उत्कृष्ट इसलिए यह जो विभाजन है, सैद्धांतिक है। व्यक्ति-व्यक्ति में | | संभावना है—सांख्य-कृष्ण ने सबसे पहले वही कह दी। उन्होंने मात्राओं के फर्क होते हैं। नब्बे प्रतिशत कोई व्यक्ति बहिर्मुखी हो | कहा कि अगर तू सच में ही ब्राह्मण की स्थिति में आ गया है, तो सकता है, दस प्रतिशत अंतर्मुखी हो सकता है। सांख्य की बात पर्याप्त होगी, ज्ञान पर्याप्त होगा। अर्जुन जो है, एक्सट्रोवर्ट है। अर्जुन जो है, बहिर्मुखी व्यक्ति है। उससे कुछ हल नहीं हुआ। अर्जुन वहीं का वहीं रहा, जैसे घड़े इसलिए सांख्य की बात उसकी समझ में पड़नी असंभव है; या पर पानी गिरा और बह गया। दूसरा अध्याय व्यर्थ गया है अर्जुन इतनी थोड़ी-सी पड़ सकती है कि उससे वह नए सवाल उठा सकता पर। अर्जुन पर अगर सार्थक हो जाता, तो गीता वहीं बंद हो जाती, है। लेकिन उससे उसके जीवन का समाधान नहीं हो सकता। क्यों? आगे गीता के चलने का उपाय न था। अर्जुन बहिर्मुखी क्यों है? __ अब कृष्ण को एक-एक कदम नीचे उतरना पड़ेगा। वे एक-एक अर्जन का सारा जीवन क्षत्रिय के शिक्षण का जीवन है। सारा कदम नीचे उतरकर अर्जुन से बात करेंगे। शायद एक सीढ़ी नीचे जीवन कुछ करने और करने में कुशलता पाने में बीता है। सारा | की बात अर्जुन की समझ में आ जाए। इतना तय हो गया कि ब्राह्मण जीवन दूसरे को ध्यान में रखकर बीता है-प्रतियोगिता में, | | वह नहीं है। वह उसका स्वधर्म नहीं है, वह उसका व्यक्तित्व नहीं प्रतिस्पर्धा में, संघर्ष में, युद्ध में। क्षत्रिय, इंट्रोवर्ट आदमी क्षत्रिय | है। सांख्य बेकार गया-सांख्य बेकार है, इसलिए नहीं। अर्जुन पर नहीं हो सकता है। और अगर अंतर्मुखी आदमी क्षत्रिय के घर में भी | बेकार गया, अर्जुन के लिए बेकार है। पैदा हो जाए, तो भी क्षत्रिय नहीं रह सकता। लेकिन कृष्ण के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण था, इसलिए सबसे जैनों के चौबीस तीर्थंकर क्षत्रियों के घर में पैदा हुए, लेकिन क्षत्रिय पहले सांख्य की बात कर ली। नहीं रह सके। वे सब इंट्रोवर्ट हैं। महावीर अंतर्मुखी व्यक्ति हैं। बाहर के जगत में उन्हें कोई अर्थ मालूम नहीं होता है। बुद्ध क्षत्रिय घर में पैदा हुए, लेकिन क्षत्रिय नहीं रह सके। बाहर का वह विस्तार, कर्मों | प्रश्नः भगवान श्री, एक बहुत ही छोटा-सा प्रश्न है, का वह जाल, उन्हें बेमानी मालूम पड़ा, छोड़कर हट गए। आपने अभी-अभी कहा कि व्यक्ति कुछ अंतर्मुखी है अगर ब्राह्मण के घर में भी बहिर्मुखी व्यक्ति पैदा हो जाए-जैसे | | और कुछ बहिर्मुखी है। इसका अर्थ क्या यह है कि परशुराम-तो ब्राह्मण नहीं रह सकता, क्षत्रिय हो जाएगा। क्षत्रिय | व्यक्ति को सांख्य और योग दोनों की साधना अनिवार्यरूपेण बहिर्मुखी होता है। अगर क्षत्रिय होने में उसे सफल | साथ-साथ करनी पड़ेगी? होना है। अर्जुन, कहना चाहिए, क्षत्रिय होने का आदर्श है। क्षत्रिय जैसा हो सकता है, वैसा व्यक्तित्व है। कृष्ण ने उसे सांख्य की निष्ठा कही साधना साथ-साथ नहीं की जा सकती सबसे पहले, क्योंकि अर्जुन बातें ब्राह्मणों जैसी कर रहा है। अर्जुन OI है। दो रास्तों पर कभी भी एक साथ नहीं चला जा आदमी क्षत्रिय जैसा, सवाल ब्राह्मणों जैसे उठा रहा है। युद्ध के सकता है। और जो दो रास्तों पर एक साथ चलेगा, मैदान पर खड़ा है, लेकिन प्रश्न जो पूछ रहा है, वे गुरुकुलों में पूछने वह कहीं भी नहीं पहुंचेगा। चल ही नहीं सकेगा। न दो नावों पर . जैसे हैं। प्रश्न जो पूछा रहा है, वे किसी बुद्ध से, किसी बोधिवृक्ष | | एक साथ सवार हुआ जा सकता है। और जो दो नावों पर एक साथ के नीचे बैठकर, वन के एकांत में पूछने जैसे हैं। लेकिन प्रश्न जो | | सवार होगा, वह सिर्फ डूबेगा; वह कहीं पहुंच नहीं सकता है। पूछ रहा है, वह पूछ रहा है युद्ध के समारंभ के शुरुआत में, जब | जब मैंने कहा कि व्यक्ति में मात्राएं हैं, तो जिस व्यक्ति में जिस कि शंखनाद हो चुका है और योद्धा आमने-सामने आ गए हैं और तत्व की ज्यादा मात्रा है, उसे उसी मार्ग पर जाना होगा। मार्ग तो एक जब अब घड़ीभर की देर नहीं है कि लहू की धारें बह जाएंगी-ऐसे | | ही चुनना होगा। अगर वह बहिर्मुखी है अधिक मात्रा में, तो योग क्षण में वह जिज्ञासाएं जो कर रहा है. वे ब्राह्मण जैसी हैं। | मार्ग है; अगर अंतर्मुखी है अधिक मात्रा में, तो सांख्य मार्ग है। मार्ग 304
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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