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________________ IY विषाद की खाई से ब्राह्मी-स्थिति के शिखर तक + मौत तो कल आएगी, नींद तो आज ही आएगी। रात नींद को | आस-पास, उनके चेहरे के पास एक गोल घेरा बनाया है, यह देखते हुए सोएं। आज, कल, महीना, दो महीना, तीन महीना- | फोटोग्राफिक ट्रिक नहीं है। यह सिर्फ एक मिथ नहीं है। जागे हुए रोज सोते वक्त एक ही प्रार्थना मन में, एक ही भाव मन में आए कि | व्यक्ति के आस-पास प्रकाश का एक उज्ज्वल घेरा चलता है। उसे मैं देखू। जागे रहें, जागे रहें, जागे रहें। देखते रहें, देखते रहें। | और जो लोग भी अपने भीतर के प्रकाश को देखने में समर्थ होते आज चूकेंगे, कल चूकेंगे, परसों चकेंगे। महीना, दो महीना, तीन हैं, वे दूसरे के ऑरा को भी देखने में समर्थ हो जाते हैं। जिन लोगों महीना-अचानक किसी दिन आप पाएंगे कि नींद उतर रही है और | को भीतर अपने प्रकाश दिखाई पडने लगता है. वे उस आदमी के आप देख रहे हैं। और जिस दिन आप नींद को उतरते देख लेंगे, चेहरे के आस-पास प्रकाश के गोल घेरे को तत्काल देख लेते हैं। उस दिन कृष्ण का यह महावाक्य समझ में आएगा: उसके पहले | हां, आपको नहीं दिखता, क्योंकि आपको उस तरह के सूक्ष्म समझ में नहीं आ सकता है। यह इसका वास्तविक अर्थ है। प्रकाश का कोई भी अनुभव नहीं है। इसका जो मेटाफोरिकल अर्थ है, वह भी आपसे कहूं। वह भी | ___ तो जैसे महावीर और बुद्ध और कृष्ण के चेहरे के आस-पास है, लेकिन वह नंबर दो का मूल्य है उसका। नंबर एक का मूल्य एक गोल वर्तुल चलता है जागरण का, रोशनी का, ऐसे ही हम सब इसी का है। वह भी है। लेकिन वह तो और बहुत-सी बातों में भी | | सोए हुए आदमियों के आस-पास एक गोल वर्तुल चलता है कह दिया गया है। उसको कहने के लिए इस वाक्य को कहने की | | अंधकार का, निद्रा का। वह भी आपको दिखाई नहीं पड़ेगा। कोई भी जरूरत न थी। वह दूसरा जो मोह-निशा, उसकी तो बहुत | | क्योंकि उसका पता भी तब चलेगा, जब प्रकाश दिखाई पड़े। तब चर्चा हो गई। वह जो विषयों की नींद है, वह जो वासना की नींद | आपको पता चलेगा कि जिंदगीभर एक अंधेरे का गोल घेरा भी है, तो उसकी तो काफी चर्चा हो गई है। | आपके पास चलता था। पता तो पहले प्रकाश का चलेगा, तभी और कृष्ण जैसे लोग एक शब्द भी व्यर्थ नहीं बोलते हैं। एक शब्द अंधकार का बोध होगा। उसके साथ ही हम पैदा होते हैं। उससे पुनरुक्त नहीं करते हैं। अगर पुनरुक्ति दिखती हो, तो आपकी समझ | इतने निकट और परिचित होते हैं कि वह दिखाई नहीं पड़ता। में भूल और गलती होती है। कृष्ण जैसे लोग, देनेवर रिपीट। क्योंकि | लेकिन मैं देखता हूं कि रास्ते पर दो आदमी चल रहे हों, तो दोनों रिपीट का कोई सवाल नहीं है। दोहराने की कोई जरूरत नहीं है। । | के पास का चलने वाला घेरा अलग होता है। रंगों-रंगों के फर्क क्या आपको पता है कि कौन लोग दोहराते हैं! सिर्फ वे ही लोग | | होते हैं, शेड के फर्क होते हैं। अंधेरे और सफेदी के बीच में बहुत दोहराते हैं, जिनमें आत्मविश्वास की कमी होती है। दूसरा आदमी से ग्रे कलर होते हैं। नहीं दोहराता। जिसने एक बात पूरे विश्वास से कह दी पूरी तरह लेकिन साधारणतः सोए आदमी के पास, सौ में से निन्यानबे जानकर, बात खत्म हो गई। आदमियों के पास नींद का एक वर्तल चलता है. एक स्लीपी वर्तल . तो कृष्ण दोहरा नहीं सकते। इसलिए मैं कहता हूं कि जो आम | चलता है। वैसा आदमी जहां जाता है, उसके साथ उसकी नींद भी व्याख्या की गई है कि जहां कामी आदमी कामवासना में, जाती है। वह जो भी छता है, उसे नींद में छूता है। वह जो भी करता मोह-निद्रा में, विषयों की नींद में, अंधेरे में डूबा रहता है, वहां है, उसे नींद में करता है। वह जो भी बोलता है, नींद में बोलता है। संयमी आदमी जागा रहता है। इसको दोहराने के लिए इस वाक्य कभी आपने सोचा है कि आप अपने वक्तव्यों के लिए कितनी की बहुत जरूरत नहीं है। लेकिन वह अर्थ करें, तो बुरा नहीं है। | बार नहीं पछताए हैं! पछताए हैं। लेकिन कभी आपको पता है कि लेकिन पहला अर्थ पहले समझ लें। आपने ही बोला था-होश में! __ हां, दूसरा अर्थ है। एक तंद्रा का घेरा, कहना चाहिए एक | | पति घर आया है और एक शब्द पत्नी बोल गई है और कलह हिप्नोटिक ऑरा, हमारे व्यक्तित्व में अटका हुआ है। जब आप शुरू हो गई है। और वह जानती है कि यह शब्द रोका जा सकता चलते हैं, तो आपके चारों तरफ नींद का एक घेरा चलता है। जब था। क्योंकि यह शब्द पचीस दफे बोला जा चुका है और इस शब्द जागा हुआ पुरुष चलता है, तब उसके पास भी चारों तरफ एक के आस-पास इसी तरह की कलह पचीस बार हो चुकी है। फिर जागरण का एक घेरा चलता है। यह जो हमने फकीरों—नानक यह आज क्यों बोला गया? नींद में बोल गई, फिर बोल गई। कल और कबीर और राम और कृष्ण और बुद्ध और महावीर के फिर बोलेगी, परसों फिर बोलेगी। वह नींद चलेगी। वह रोज वही 293
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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