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________________ mm गीता दर्शन भाग-1 44 तो लोग मर रहे हैं.माना, लेकिन मैं मरना नहीं चाहता! यह तुम भी | । फिर लोगों ने कहा, लेकिन तुम मर जाओगे, तो यह धन पड़ा जानो। और लोग मर रहे हैं, तो दूसरे पैदा हो जाएंगे। लेकिन जो रह जाएगा। इतने दिन बचाया है, फिर इसका क्या होगा? उसने धन मैंने इकट्ठा किया है, वह दूसरा कहां से आ सकता है? लोग कहा कि क्या तुम सोचते हो, मैं धन को पड़ा रहने दूंगा! मैं साथ बड़े चकित हुए। कभी न सोचा था! ले जाऊंगा। लोगों ने कहा, अब तक सुना नहीं कि कोई धन को लेकिन उन्हें पता नहीं कि लोग उस आदमी के लिए छायाओं की | साथ ले गया हो! उसने कहा, सुन लेना, जब मैं ले जाऊंगा, तब तरह झूठे हैं; धन आत्मा की तरह सच्चा है। लोग हैं ही नहीं उसकी | तुम्हें पता चल जाएगा। जीवन-परिधि में। उसके मन के घेरे में लोगों का कोई अस्तित्व नहीं मोहग्रस्त मन की स्मृति खो जाती है; सोच-विचार खो जाता है; है। वे प्रतिबिंब हैं। आते हैं, जाते हैं। धन बहुत वास्तविक है। | सहज विवेक खो जाता है। वह कह रहा है, मैं धन को भी साथ ले फिर उसकी पत्नी भी बीमार पड़ गई। गांवभर में लोग मर रहे हैं, जाऊंगा! मोहग्रस्त आदमी कहता है, छोडूंगा ही नहीं, प्राण में समा बीमारियां फैल गईं। उसकी पत्नी बीमार पड़ गई, तो लोगों ने कहा, लूंगा। अपना-अपना मोह! कम से कम अपनी पत्नी को दिखाने के लिए वैद्य को बुला लो! एक मुख्यमंत्री को मैं जानता हूं एक प्रदेश के। जो मरने के एक उसने कहा, पत्नी फिर भी मिल सकती है। लेकिन धन फिर भी | साल पहले मुझसे ही कहे कि अब एक ही इच्छा है कि मुख्यमंत्री मिलेगा, इसका आश्वासन है? रहते हुए मरूं। मौत करीब दिखने लगी थी। बहुत बीमार थे। कहा जिसके मन में धन का मोह है, हम नहीं समझ पाते उसकी भाषा। | कि बस अब एक ही इच्छा है कि मुख्यमंत्री रहते हुए मरूं। मैंने जैसे अर्जुन पूछ रहा है कि स्थितधी कैसी भाषा बोलता है? ऐसे ही | | कहा, मरने का उतना भय नहीं, जितना मुख्यमंत्री पद के छूटने का मोहग्रस्त कैसी भाषा बोलता है, वह भी हम नहीं समझ सकते। भय है। मरते हुए भी कम से कम मुख्यमंत्री पद तो साथ चला जाए। मोहग्रस्त कैसे उठता, कैसे बैठता, हमारी पकड़ में नहीं आता। हां, मरे तो मख्यमंत्री थे: साथ ले गए। अपने-अपने मोह को देखेंगे, तो पकड़ में आ सकता है। सबके उस आदमी ने कहा, ले जाऊंगा साथ। और सच में एक रात मोह हैं। दूसरे का मोह हमारी समझ में नहीं आता, हमारा मोह ही उसने कोशिश की। मोहग्रस्त आदमी कोई भी कोशिश कर सकता हमारी समझ में आता है। | है। उसकी स्मृति खो जाती है, उसका विवेक खो जाता है। रात उसने कहा, पत्नी दूसरी मिल जाएगी। पत्नी मर गई। फिर तो उसने देखा कि शायद सुबह नहीं होगी। तो आधी रात वह उठा। वह खुद भी मरने के करीब आ गया। बीमारियां उसे भी पकड़ लीं। | उसने अपने सारे हीरे-जवाहरात, जो भी कीमती था, वह एक बोरी लोगों ने कहा, अब तो कम से कम अपने पर कृपा करो। अब तो में बंद किया। लेकर नदी के किनारे पहुंचा। उसने सोचा कि अपने तुम्हीं मरने के करीब हो। उसने कहा, धन न बचे और मैं बच जाऊं, | बोरे को कमर से बांधकर नदी में कूद जाऊं। आखिरी चेष्टा कि ऐसे बचने से तो मर जाना ही बेहतर है। वह तो बड़ा दुखद है, वह | साथ ले जाऊं! लेकिन नदी गहरी है और अगर किनारे कूद पड़े, तो तो बड़ा भयप्रद है कि धन न बचे और मैं बच जाऊं। कल्पना ही | लाश तो किनारे लगी रह जाएगी। वह हीरे-जवाहरातों से भरा हुआ नहीं कर सकता धन के बिना मेरे होने की। हां, मेरे न होने की बोरा किनारे रह जाएगा। न मालूम कोई उसे उठा ले! कल्पना कर सकता हूं। लेकिन धन के बिना मेरे होने की कल्पना तो उसने नाविकों को जगाया। कहता हूं नाविकों को, एक नहीं कर सकता। नाविक के जगाने से काम चल जाता। पर नाविकों को जगाया, मोहग्रस्त आदमी ऐसी ही भाषा बोलता है। वह कहता है, यह क्योंकि वह आदमी ठहराए बिना नहीं कर सकता था काम; उसे स्त्री मुझे न मिली, तो मैं मर जाऊंगा। इस स्त्री के बिना होने की मैं | जाना था बीच नदी में। उसने मांझियों को जगाया और कहा कि कल्पना नहीं कर सकता। हां, अपने न होने की कल्पना कर सकता सबसे कम में कौन ले जा सकता है? सबसे कम में! और वह हूं। वही मोह, वह कहता है, ऐसा नहीं होगा...अगर मंत्री पद नहीं आदमी मरने जा रहा है। यह सब धन लेकर डूब जाने वाला है। तो मिला, तो मर जाऊंगा। मंत्री पद के बिना अपने होने की कल्पना सबसे कम में कौन ले जा सकता है! ठहराया उसने। सबसे कम, नहीं कर सकता। हां, अपने न होने की कल्पना कर सकता है। छोटी से छोटी अशर्फी में जो राजी था, उस मल्लाह के साथ वह मोहग्रस्त की यही भाषा है। नदी में उतरा। 276
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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