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________________ मन के अधोगमन और ऊर्ध्वगमन की सीढ़ियां -AAR मोह और मोह को प्रेम कहते रहे हैं। प्रोजेक्टर आपने देखा होगा। सिनेमागृह में परदा होता है। परदे प्रेम तो बुद्ध और कृष्ण जैसे लोगों के जीवन में होता है। हमारे पर चित्र होते हैं। लेकिन आपकी पीठ के पीछे दीवाल के उस पार जीवन में प्रेम होता ही नहीं है। जिनके जीवन में मोह है, उनके जीवन छिपा हुआ प्रोजेक्टर होता है, मशीन होती है, जो चित्रों को परदे पर में प्रेम नहीं हो सकता। क्योंकि मोह मांगता है, प्रेम देता है। | फेंकती है। चित्र उस मशीन में छिपे होते हैं, परदे पर नहीं होते हैं। बिलकुल अलग अवस्थाएं हैं। उनकी हम आगे थोड़ी बात कर परदे पर चित्रों का सिर्फ भ्रम पैदा होता है। चित्र होते हैं मशीन में सकेंगे। लेकिन मोह को समझने के लिए उपयोगी है। | छिपे. प्रोजेक्टर में फेंकने वाले में। और वहां से चित्र फेंके जाते प्रेम उस चित्त में फलित होता है, जिसमें कोई काम नहीं रह हैं, लेकिन दिखाई पड़ते हैं परदे पर। होते हैं प्रोजेक्टर में, दिखाई जाता, जिसमें कोई वासना नहीं रह जाती। क्योंकि दे वही सकता पड़ते हैं परदे पर। है, जो मांगता नहीं। वासना मांगती है। वासना कहती है, मिलना मोह प्रोजेक्टर है। होता है हमारे भीतर, दिखाई पड़ता है परदे चाहिए, यह मिलना चाहिए, यह मिलना चाहिए। प्रेम कहता है, | पर। जब मैं किसी स्त्री के प्रेम में पड़ जाता हूं, तो जो चेहरा मुझे अब कोई मांग न रही, हम कोई भिखारी नहीं हैं। वासना भिखारी | | दिखाई पड़ता है, वह उस स्त्री का नहीं होता, वह मेरे प्रोजेक्टर का है, प्रेम सम्राट है। प्रेम कहता है, जो हमारे पास है, ले जाओ। जो | होता है। वह होता है मेरे भीतर, दिखाई पड़ता है वहां। स्त्री सिर्फ हमारे पास है, ले जाओ; अब हमें तो कोई जरूरत न रही, अब परदा होती है। क्योंकि जिनको उस स्त्री से मोह नहीं है, उनको वहां हमारी कोई मांग न रही। अब तुम्हें जो भी लेना है, ले जाओ। प्रेम | वैसा चेहरा नहीं दिखाई पड़ता, जैसा मुझे दिखाई पड़ता है। मुझे दान है। वासना भिक्षावृत्ति है, मांग है। उसके पसीने में भी सुगंध आने लगती है; उसके पसीने में भी ___ इसलिए वासना में कलह है; प्रेम में कोई कलह नहीं है। ले गुलाब खिलने लगते हैं। किसी को नहीं खिलते। कुछ दिन बाद मुझे जाओ तो ठीक, म ले जाओ तो ठीक। लेकिन मांगने वाला यह नहीं भी नहीं खिलेंगे-जब मोह गिरेगा और प्रोजेक्टर बंद हो जाएगा कह सकता कि दे दो तो ठीक, न दो तो ठीक। देने वाला कह सकता और परदा दिखाई पड़ेगा। तब मैं कहूंगा, अरे! क्या हुआ? गुलाब है कि ले जाओ तो ठीक, न ले जाओ तो ठीक। क्योंकि देने में कोई के फूल कहां गए? वे गुलाब के फूल विदा हो जाएंगे। वे गुलाब अंतर ही नहीं पड़ता, नहीं ले जाते, तो मत ले जाओ। मांग में अंतर के फूल वहां थे ही नहीं। वे गुलाब के फूल मैंने आरोपित किए थे, पड़ता है। नहीं दोगे, तो प्राण छटपटाते हैं। क्योंकि फिर अधूरा रह प्रोजेक्ट किए थे; वह मेरा प्रक्षेप था। जाएगा भीतर कुछ, पूरा नहीं हो पाएगा। धन में धन के पागल को जो दिखाई पड़ता है, वह धन में होता मोह पैदा होता है वासना की अंतिम कड़ी में, और प्रेम पैदा होता नहीं, प्रोजेक्टेड होता है। धन में क्या होगा! लेकिन धन के पागल है निर्वासना की अंतिम कड़ी में। कहना चाहिए, जिस तरह मोह से को देखा है आपने। वह रुपए को किस मोह से पकड़ता है, जैसे स्मृति नष्ट होती है, उसी तरह से प्रेम से स्मृति पुष्ट होती है। पर | किसी जीवंत चीज को पकड़ रहा हो! वह रुपए को किस प्रेम से उसकी अलग बात करेंगे। अभी उससे कोई लेना-देना नहीं है। । | सम्हालता है, जैसे उसका हृदय हो! वह तिजोरी को कैसे आहिस्ता मोह सीढ़ियों का नीचे उतरा हुआ सोपान है, पायदान है, जहां से खोलता है! वह तिजोरी को कैसे देखता है, जैसे उसकी आत्मा आदमी पागल होने के करीब पहुंचता है। प्रेम सीढ़ियों का ऊपरी वहां बंद है! वह रात सोता भी है, तो तिजोरी का ही चिंतन घूमता पायदान है, जहां आदमी विमुक्त होने के करीब पहुंचता है। है। रात सपने भी आते हैं, तो रुपयों के ही ढेर बढ़ते चले जाते हैं। और विमक्त होने के करीब। मोह के बाद वह जिस जगत में जी रहा है, उसका हमें कछ भी पता नहीं है कि विक्षिप्तता है, प्रेम के बाद विमुक्ति है। | उसका प्रोजेक्शन क्या हो रहा है! वह क्या प्रोजेक्ट कर रहा है! यह जो मोह पैदा हुआ, यह स्मृति को नष्ट कर देता है। क्यों? | ___ मैंने सुना है, एक आदमी एक गांव में बहुत धनपति है। फिर क्योंकि स्मृति अब रिकार्ड नहीं कर पाती कि क्या है। स्मृति का काम | | गांव में लोग मरने लगे, अकाल पड़ा। तो लोगों ने उससे कहा, सिर्फ रिकार्डिंग का है कि वह वही रिकार्ड कर ले, जो है; तथ्य को | | इतना धन है तुम्हारे पास, इतना धान्य है तुम्हारे पास, लोग मर रहे अंकित कर ले। लेकिन मोह के कारण तथ्य दिखाई नहीं पड़ता। हैं, ऐसे क्षण पर रोको मत-बांटो। तो उस आदमी ने कहा, जिसे मोह के कारण हम एक जाल अपनी तरफ से प्रोजेक्ट करते हैं। तुम बांटने के लिए कह रहे हो, वह अगर बंट जाए तो मैं मर जाऊं।' 275
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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