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________________ ymm मन के अधोगमन और ऊर्ध्वगमन की सीढ़ियां - और आखिर जब बीच मझधार में पहुंच गया, तो उसने उस पहले अतीत नष्ट हो जाएगा, फिर वर्तमान, फिर भविष्य। पहले मल्लाह से कहा कि क्या एक मरते हुए आदमी की आखिरी इच्छा इतिहास विकृत हो जाएगा, फिर जीवन, और फिर संभावना। पूरी न करोगे? उसने कहा, क्या मतलब? कैसी आखिरी इच्छा? तो कृष्ण एक-एक कदम, ठीक वैज्ञानिक कदम की बात कर रहे हैं, उसने कहा कि अगर तुम वह अशर्फी न मांगो, तो मैं शांति से मर | स्मृति नष्ट हो जाती है अर्जुन, फिर बुद्धि का नाश हो जाता है। . जाऊं। पर एक मरते हुए आदमी की आखिरी इच्छा! इतनी दुष्टता | बुद्धि क्या है? और कृष्ण जिन अर्थों में बुद्धि का उपयोग करते करोगे कि एक मरते हुए आदमी की आखिरी इच्छा पूरी न करो? | | हैं, वह क्या है? कृष्ण इंटलेक्ट के अर्थों में बुद्धि का उपयोग नहीं गरीब मल्लाह उस मरते हुए आदमी की आखिरी इच्छा पूरी करते। इंटेलिजेंस के अर्थों में बुद्धि का उपयोग करते हैं। इसमें किया। वह धनपति शांति से कूद गया। ऐसे ही हम सब कूद जाते | | आपको...भाषाकोश में तो दोनों शब्दों का एक ही मतलब है। हैं, अपने-अपने मोह से भरी हुई मृत्यु में। मोह स्मृति को नष्ट कर | | आप कहेंगे, बुद्धि, इंटलेक्ट और इंटेलिजेंस में क्या फर्क है? । देता है, विचार को छुड़ा देता है। बुद्धि का वह रूप जो एक्चुअलाइज हो गया है, इंटलेक्ट है। जहां स्मृति नष्ट होती है, कृष्ण कहते हैं, वहां बुद्धि भी नष्ट हो | | बुद्धि का वह रूप जो वास्तविक हो गया है, जिसका आप प्रयोग जाती है। कर चुके, जो सक्रिय हो गया है, वह इंटलेक्ट है। कहें, बुद्धिमानी स्मृति और बुद्धि में फर्क है। स्मृति बुद्धि नहीं है, स्मृति बुद्धि की है। जो बुद्धि का रूप अभी भी निष्क्रिय पड़ा है, जो अभी सक्रिय एक फैकल्टी है। स्मृति केवल बुद्धि का, कहना चाहिए, कोषागार नहीं हुआ, जो अभी पोटेंशियल में पड़ा है, बीज में पड़ा है, अभी है। स्मृति, कहना चाहिए, बुद्धि का संग्रहालय है, रिजर्वायर है। रूपाकृत नहीं हुआ, रूपायित नहीं हुआ, जो अभी साकार नहीं कहना चाहिए, स्मृति बुद्धि का अतीत है। बुद्धि ने जो-जो जाना है, | | हुआ, जो अभी वास्तविक नहीं हुआ-केवल संभावना है-बुद्धि वह स्मृति में संगृहीत कर दिया है। बुद्धि का अतीत है स्मृति, बुद्धि | । में, इंटेलिजेंस में वह भी सम्मिलित है। दि एक्चुअलाइज्ड नहीं। स्मृति का अर्थ ही है, दि पास्ट, बीता हुआ। | इंटेलिजेंस इज़ इंटलेक्ट। जो वास्तविक बन गई है बुद्धि, वह लेकिन पहले अतीत भ्रष्ट होता है. तब वर्तमान भ्रष्ट होता है. बद्धिमानी है। और जो अभी वास्तविक नहीं बनी. वह भी बद्धि के तब भविष्य भ्रष्ट होता है। पहले उसका बोध क्षीण होता है, जो था। हिस्से में है। फिर उसका बोध क्षीण होता है, जो है। फिर उसका बोध क्षीण हो तो आपकी बुद्धिमानी ही आपकी बुद्धि नहीं है, आपकी बुद्धि जाता है, जो होगा। स्वाभाविक। क्योंकि अतीत सबसे ज्यादा स्पष्ट | आपकी बुद्धिमानी से बड़ी चीज है। अगर आपकी बुद्धिमानी ही है। जो हो चुका है, वह सबसे ज्यादा स्पष्ट है। जो हो रहा है, अभी | आपकी बुद्धि है, तो फिर आपमें विकास का कोई उपाय न बचेगा। धूमिल है। जो नहीं हुआ, अनिश्चित है। बुद्धि की पकड़ सबसे बात खतम हो गई। बुद्धि का वर्तुल बड़ा है। बुद्धिमानी का वर्तुल ज्यादा अतीत पर साफ होती है। बुद्धि के बड़े वर्तुल में छोटा है। वह बुद्धिमानी का वर्तुल बड़ा होता ___ जो हो चुका, वह साफ होगा ही। सब रेखाएं पूरी हो गईं। | जाए, बड़ा होता जाए और किसी दिन बुद्धि के पूरे वर्तुल को छू ले, घटनाएं घट चुकीं। जो होना था, उसने पूरा रूप ले लिया; वह | | तो आदमी स्थितप्रज्ञ हो जाता है। आकृति बन गया। जो हो रहा है, अभी निराकार से आकार में आ __ कृष्ण कहते हैं, बुद्धि विकृत हो जाती है। रहा है। जो होगा, वह अभी निराकार है। जो भविष्य है, वह बुद्धिमानी तो विकृत हो जाती है स्मृति के साथ ही। क्योंकि अव्यक्त है। जो वर्तमान है, वह व्यक्त होने की प्रक्रिया में है। जो | बुद्धिमानी यानी स्मृति; नालेज यानी मेमोरी। नोइंग यानी बुद्धि, अतीत है, वह व्यक्त हो गया है। जानने की क्षमता यानी बुद्धि। जानने की क्षमता जितनी सक्रिय हो इसलिए जब पहला हमला होगा, तो स्मृति पर होगा। क्योंकि | गई, यानी बुद्धिमानी। जो जान लिया, वह बुद्धिमानी; और जो वही सबसे स्पष्ट है। सबसे पहले स्पष्ट डांवाडोल हो जाएगा। और जानने की शक्ति है भीतर, वह बुद्धि। बुद्धि सदा जानने की शक्ति जब स्पष्ट ही डांवाडोल हो जाएगा, तो अस्पष्ट के डांवाडोल होने | | से बड़ी है। जानने की वास्तविकता से बड़ी क्षमता है। में कितनी देर लगेगी! और जब अस्पष्ट ही डांवाडोल हो जाएगा, स्मृति पहले विकृत हो जाती है। स्मृति अर्थात इंटलेक्ट विकृत तो जो अभी निराकार है, उस पर तो सारी ही समझ छूट जाएगी। हो गई। और फिर, कृष्ण कहते हैं, वह जो अव्यक्त में पड़ी बुद्धि 277
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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