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________________ गीता दर्शन भाग-1 AM दुख कनवर्टिबल हैं, एक-दूसरे में बदल सकते हैं। इसलिए बहुत थोड़ी-बहुत तो बची ही होगी; राख के नीचे दबी होगी। साधु ने गहरे में दोनों एक ही हैं, दो नहीं हैं। क्योंकि बदलाहट उन्हीं में हो कहा, आदमी कैसे हो? मैं कहता हूं, नहीं है आग। उस आदमी ने सकती है, जो एक ही हों। सिर्फ हमारे मनोभाव में फर्क पड़ता है, कहा, जरा कुरेदकर तो देखें, शायद कहीं कोई चिनगारी पड़ी ही हो! चीज वही है, उसमें कोई अंतर नहीं पड़ता है। साधु का हाथ अपने चिमटे पर चला गया। उसने कहा, तू आदमी इसलिए कृष्ण ने दो सूत्र कहे। पहला कि दुख में जो उद्विग्न न है कि जानवर? मैं कहता हूं, नहीं है कोई आग। उस आदमी ने हो, दुख में जो अनुद्विग्नमना हो; दूसरा-सुख की जिसे स्पृहा न कहा, बाबा जी, अब तो चिनगारी ही नहीं, लपट बन गई है। हो, जो सुख की आकांक्षा और मांग किए न बैठा हो। तीसरी वह जिस आग की बात कर रहा है, वह क्रोध है। वह जिस राख बात-क्रोध, भय जिसमें न हों। की बात कर रहा है, वह ऊपर का दमन है। एक छोटी-सी चर्चा, यहां एक बात बहत ठीक से ध्यान में ले लें. क्योंकि उसके ध्यान पता नहीं उस राख में आग थी या नहीं. लेकिन साध में काफी आग में न होने से सारे मुल्क में बड़ी नासमझी है। कृष्ण कह रहे हैं कि थी, वह निकल आई। जरा-सी चोट और वह निकल आई। उस जिसमें क्रोध और भय न हों, वह समाधिस्थ है। वे यह नहीं कह | आदमी ने कहा, मैंने भी यही सुना था कि राख ही राख बची है, रहे हैं कि जो क्रोध और भय को छोड़ दे, वह समाधिस्थ हो जाता | आग नहीं बची है। यही देखने आया था। लेकिन आग काफी बची है-वे यह नहीं कह रहे हैं। वे यह कह रहे हैं, जो समाधिस्थ है,। | है। राख ऊपर का ही धोखा है, भीतर आग है। उसमें क्रोध और भय नहीं पाए जाते हैं। इन दोनों बातों में गहरा फर्क क्रोध से जो लड़ेगा, वह ज्यादा से ज्यादा क्रोध को भीतर दबाने है। क्रोध और भय जो छोड़ दे, वह समाधिस्थ हो जाता है—ऐसा में समर्थ हो सकता है। भय से जो लड़ेगा, वह ज्यादा.से ज्यादा वे नहीं कह रहे हैं। जो समाधिस्थ हो जाता है, उसका क्रोध और निर्भय होने में समर्थ हो सकता है, अभय होने में नहीं। निर्भय का भय छूट जाता है—ऐसा वे कह रहे हैं। | इतना ही मतलब है कि भय को भीतर दबा दिया है। भय आता भी आप कहेंगे. इसमें क्या फर्क पडता है? ये दोनों एक ही बात हैं। है तो कोई फिक्र नहीं हम डटे ही रहते हैं। अभय का मतलब बहत ये दोनों एक बात नहीं हैं। ये बहुत फासले पर हैं, विपरीत बातें और है। अभय का मतलब है, भय का अभाव। निर्भय का अर्थ, हैं। जिस आदमी ने सोचा कि क्रोध और भय छोड़ने से समाधि मिल | भय के बावजूद भी डटे रहने की हिम्मत। अभय का मतलब, जाती है, वह क्रोध और भय को छोड़ने में ही लगा रहेगा, समाधि | फियरलेसनेस। निर्भय का मतलब, ब्रेवरी। बड़े से बड़ा बहादुर को कभी नहीं पा सकता। और जिस आदमी ने सोचा कि क्रोध और | आदमी भी भयभीत होता है, अभय नहीं होता। अभय होने का भय को छोड़ने से समाधि मिल जाती है, वह क्रोध और भय से | मतलब, भय है ही नहीं; निर्भय होने का भी उपाय नहीं है। भय बचा लड़ेगा। और क्रोध से लड़कर आदमी क्रोध के बाहर नहीं होता। ही नहीं है। भय से लड़कर आदमी भय के बाहर नहीं होता। भय से लड़कर जो आदमी लक्षण को...लक्षण हैं ये। ये कृष्ण लक्षण गिना रहे आदमी और सूक्ष्म भयों में उतर जाता है। क्रोध से लड़कर आदमी हैं; काजेज नहीं, कांसिक्वेंसेज गिना रहे हैं। ये कारण नहीं गिना रहे और सूक्ष्म तलों पर क्रोधी हो जाता है। हैं, लक्षण गिना रहे हैं कि अगर क्रोध न हो, अगर भय न हो, तो मैंने एक कहानी सुनी है। मैंने सुना है कि एक आदमी की ख्याति ऐसा आदमी स्थितधी है। हो गई कि उसने क्रोध पर विजय पा ली है। उसका एक मित्र उसके लेकिन हम आमतौर से उलटा कर लेते हैं। हम कह सकते हैं कि परीक्षण के लिए गया। सुबह थी, सर्दी थी अभी, लेकिन सूरज उग | | एक आदमी का शरीर अगर गरम न हो, तो उस आदमी को बुखार आया था। शायद साधु चार बजे रात से उठ आया होगा। आग | नहीं है। ठीक, इसमें कोई अड़चन नहीं मालूम पड़ती है। एक जलाकर आग तापता था। फिर आग भी बुझ गई थी, फिर राख ही | आदमी का शरीर गरम न हो, तो उसे बुखार नहीं है। लेकिन एक रह गई थी। अब भी साधु बैठा था। मित्र आया, उसने पास आकर | | आदमी का शरीर गरम हो, तो उसके शरीर को ठंडा करने से बुखार नमस्कार किया और कहा कि थोड़ी-बहुत आग बची या नहीं? | | नहीं जाता; पानी डालने से बुखार नहीं जाता। बुखार अगर पानी कहा, नहीं; देखते नहीं, अंधे हो? कोई आग नहीं है, राख डालकर मिटाने की कोशिश की, तो बीमारी के जाने की उम्मीद ही राख है। वह आदमी हंसा। उसने कहा कि नहीं बाबा जी. | | कम, बीमार के जाने की उम्मीद ज्यादा है। 250/
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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