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________________ PM विषय-त्याग नहीं-रस-विसर्जन मार्ग है - नहीं, शरीर पर बुखार जब देखता है चिकित्सक, टेंपरेचर देखता | लेते हैं। दबाने से एक खतरा है। वह खतरा यह है कि समाधि तो है, तो यह जानने के लिए देखता है कि बीमारी कितनी है भीतर, | | भीतर फलित नहीं होती, दबे हुए क्रोध और भय के कारण हमें पता जिससे इतना उत्ताप बाहर है। उत्ताप सिर्फ लक्षण है। उत्ताप बीमारी भी नहीं चलता कि भीतर समाधि नहीं है। हम लक्षणों में धोखा दे नहीं है। शरीर कहीं भीतर गहन संघर्ष में पड़ा है, उस संघर्ष के लेते हैं। कारण उत्तप्त हो गया है। शरीर के सेल, शरीर के कोष्ठ कहीं लड़ __मैंने गुरजिएफ का नाम बीच में लिया था। और मैंने कहा कि रहे हैं भीतर दुश्मनों की तरह। कहीं भीतर कोई लड़ाई जारी है। कोई | | गुरजिएफ के कोई पास आता, तो वह शराब पिलाता। वह न केवल कीटाणु भीतर घुस गए हैं, जो शरीर के कीटाणुओं से लड़ रहे हैं। शराब पिलाता, बल्कि जब कोई आदमी साधना के लिए उसके पास शरीर के रक्षक और शरीर के शत्रुओं के बीच कहीं गहरा संघर्ष है। आता, तो वह अजीब-अजीब तरह के टेंपटेशन पैदा करता। वह उस संघर्ष की वजह से सारा शरीर उत्तप्त हो गया है। उत्तप्त होना अजीब सिचुएशंस, स्थितियां पैदा करता। वह एक आदमी को इस सिर्फ लक्षणा है, सिम्पटम है, बीमारी नहीं है। और अगर गरम होने हालत में ला देता कि उसको पता ही न चले कि उसको क्रोध को ही कोई बीमारी समझ ले, तो ठंडा करना इलाज है। तो पानी | दिलाया जा रहा है, उसका पूरा क्रोध जगवा देता। वह ऐसी हालत डालें। बुखार तो नहीं, बीमार चला जाएगा। | पैदा कर देता कि वह आदमी बिलकुल पागल होकर क्रुद्ध हो जाए। नहीं. इतना ही समझें कि बखार है. तो भीतर बीमारी है। अब और जब वह पूरे क्रोध में आ जाता, तब वह उस आदमी को कहता बीमारी को अलग करें। और बीमारी अलग हुई, यह तब ज़ानें, जब | कि जरा जागकर देख कि कितना क्रोध है तेरे भीतर! जब तू आया शरीर पर बुखार न रह जाए। तो चिकित्सक कहता है, जब शरीर | था तब इतना क्रोध नहीं था। लेकिन तू यह मत समझना कि यह पर गरमी नहीं है तब आदमी स्वस्थ है। लेकिन शरीर पर गरमी क्रोध अभी आ गया है। यह था तब भी, लेकिन भीतर दबा था, घंटाने का उपाय स्वास्थ्य की विधि नहीं है। अब प्रकट हुआ है। इसे पहचान ले, क्योंकि यही लक्षण है। कृष्ण जब कह रहे हैं कि भय नहीं रह जाता, क्रोध नहीं रह जाता, हमें पता ही नहीं चलता कि हमारे भीतर कितना दबा है। आमतौर तो समझना कि क्रोध और भय टेंपरेचर हैं। जो बीमार आदमी के, से हम समझते हैं कि कभी-कभी कोई हमें क्रोधित करवा देता है। डिजीज्ड माइंड के, भीतर जिसका मन आपस में लड़ रहा है, कलह यह बड़ी झूठी समझ है। कोई दुनिया में किसी को क्रोधित नहीं से भरा है-कलहग्रस्त मन में क्रोध का बुखार होता है। कलहग्रस्त करवा सकता, जब तक कि भीतर क्रोध मौजूद न हो। दूसरे लोग मन में कमजोरी आ जाती है। स्वयं से लड़कर आदमी टूट जाता है, | तो केवल निमित्त बन सकते हैं, खूटियां बन सकते हैं; कोट आपका अपनी शक्ति को खोता है और इसलिए भयभीत हो जाता है। क्रोध ही टंगता है, कोट खूटी का नहीं होता। आपके पास कोट होता है, और भय, स्वयं जब आदमी मन में संघर्ष में पड़ा होता है, तब | तो आप टांग देते हैं। आप यह नहीं कह सकते कि इस खूटी ने कोट लक्षणाएं हैं। वे खबर देती हैं कि आदमी भीतर बीमार है, चित्त रुग्ण | टंगवा लिया। कोट तो था ही-चाहे हाथ पर टांगते, चाहे सांकल है। बस, इतनी ही खबर। और जब क्रोध और भय नहीं होते, तब | पर टांगते, चाहे खीली पर टांगते, चाहे कंधे पर टांगते-कहीं न खबर मिलती है कि भीतर चित्त स्वस्थ है। चित्त का स्वास्थ्य समाधि कहीं टांगते। कोट तो था ही आपके पास; खूटी ने सिर्फ रास्ता है. अंतर-स्वास्थ्य समाधि है। दिया. आपका कोट टांग लिया। खंटी जिम्मेवार नहीं है. जिम्मेवार इस भेद को इसलिए आपसे कहना चाहा कि आप क्रोध और आप ही हैं। खूटी सिर्फ निमित्त है। भय से मत लड़ने लग जाना। क्रोध और भय को देखना, जानना, एक आदमी मुझे गाली देता है। आग भड़क उठती है, क्रोध आ पहचानना। उनकी पहचान से पता चलेगा कि भीतर समाधि नहीं | जाता है। तो मैं कहता हूं, इस आदमी ने क्रोध पैदा करवा दिया। है। फिर समाधि लाने के उपाय अलग ही हैं। समाधि लाने के उपाय | यह आदमी क्रोध पैदा करवा सकता है? तो मैं आदमी हूं कि मशीन करना। समाधि आ जाएगी. तो क्रोध और भय चले जाएंगे। हं. कि इसने बटन दबाई और क्रोध पैदा हो गया। टेंपरेचर कहेगा कि नहीं, थर्मामीटर बताएगा कि नहीं। जब क्रोध नहीं, क्रोध मेरे भीतर उबल रहा है; यह आदमी सिर्फ निमित्त है। और भय मालूम न पड़ें, तब समझना कि समाधि फलित हुई है। और ऐसा मत कहिए कि यह आदमी मुझको खोज रहा है। लेकिन हम इससे उलटा कर लेते हैं, क्रोध और भय को दबा | असलियत तो यह है कि मैं इस आदमी को खोज रहा हूं। अगर यह 251|
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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