SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ymm मोह-मुक्ति, आत्म-तृप्ति और प्रज्ञा की थिरता - भाग गया; संन्यासी वह है, जिसके भीतर घर को बनाने वाला आदमी था, जिसका कोई हिसाब नहीं। और एक दिन तो खुश्चेव बिखर गया। जिसके भीतर से वह निर्माण करने वाली मोह की जो | | से उसने कहा कि अब तक तो मैं दूसरों से डरता था, अब तो मैं तंद्रा थी, वह खो गई है। अपने से भी डरने लगा हूं। डर भारी था। इसे कृष्ण कहते हैं, इस मोह की निशा को जो छोड़ देता है और | स्टैलिन कभी भी भोजन नहीं कर सकता था सीधा, जब तक कि जिसकी बुद्धि वैराग्य को उपलब्ध हो जाती है, उसके जीवन में, | दो-चार को खिलाकर न देख ले। अपनी लड़की पर भी भरोसा नहीं उसके जीवन में फलित होता है-कहें उसे मोक्ष, कहें उसे ज्ञान, | था, कि जो खाना बना है, उसमें जहर तो नहीं है! खुश्चेव ने लिखा कहें उसे आनंद, कहें उसे परमात्मा, कहें उसे ब्रह्म, इससे कोई फर्क | है, हम सब को उसका भोजन पहले चखना पड़ता था। हम भी नहीं पड़ता। वे सिर्फ नामों के भेद हैं। कंपते हुए चखते थे कि जिससे स्टैलिन घबड़ा रहा है, लौहपुरुष, वह हमको चखना पड़ रहा है! लेकिन मजबूरी थी। पहले चार को भोजन करवा लेता सामने बिठाकर। जब देख लेता कि चारों जिंदा श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला। हैं, तब भोजन करता। भोजन करना भी निश्चितता न रही। समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि।। ५३ ।। घर से बाहर नहीं जाता था। समझा तो यह जाता है कि उसने एक और जब तेरी अनेक प्रकार के सिद्धांतों को सुनने से | डबल आदमी रख छोड़ा था, अपनी शकल का एक आदमी और विचलित हुई बुद्धि परमात्मा के स्वरूप में अचल और स्थिर | | रख छोड़ा था, जो सामूहिक जलसों में सम्मिलित होता था। हिटलर ___ठहर जाएगी, तब तू समत्वरूप योग को प्राप्त होगा। । | ने भी एक डबल रख छोड़ा था। सामूहिक जलसे में कहां-कब | गोली लग जाएगी! सब इंतजाम है, फिर भी डर है। इंतजाम भारी था। स्टैलिन और हिटलर के पास जैसा इंतजाम था, ऐसा पृथ्वी पर + सी बुद्धि है, निश्चल नहीं है। जैसी बुद्धि है, दृढ़ नहीं | | किसी आदमी के पास कभी नहीं रहा। एक-एक आदमी की तलाशी - है। जैसी बुद्धि है, वेवरिंग, कंपित, कंपती हुई, | | ले ली जाती थी। हजारों सैनिकों के बीच में थे। सब तरह का लहराती हुई है। जैसी बुद्धि है वह ऐसी है, जैसे तूफान | | इंतजाम था। लेकिन फिर भी आखिरी इंतजाम यह था कि जो आदमी. और आंधी में दीए की ज्योति होती है। एक क्षण भी एक जगह नहीं; | सलामी ले रहा है जनता की, वह असली स्टैलिन नहीं है। वह एक एक क्षण में भी अनेक जगह। क्षण के शुरू में कहीं होती है, तो | | नकली अभिनेता है, जो स्टैलिन का काम कर रहा है। स्टैलिन तो क्षण के अंत में कहीं। एक क्षण को भी आश्वस्त नहीं कि बचेगी, | | अपने घर में बैठा हुआ देख रहा है, खबर सुन रहा है कि क्या हो बुझती-जलती मालूम पड़ती है। झोंके हवा के-और ज्योति अब | रहा है। गई, अब गई, ऐसी ही होती रहती है। कैसी विडंबना है कि स्टैलिन और हिटलर जैसे आदमी इसी यश कीर्कगार्ड ने मनुष्य को कहा है, ए ट्रेंबलिंग, एक कंपन। पूरे | को पाने के लिए इतना श्रम करते हैं! और फिर कोई अभिनेता समय-जन्म से लेकर मृत्यु तक-एक कंपन, जहां सब कंप रहा नमस्कार लेता है जाकर। पत्नी को भी कमरे में सला नहीं सकते। है, जहां सब भूकंप है। जहां भीतर कोई थिरता नहीं, कोई दृढ़ता | क्योंकि रात कब गरदन दबा देगी, कुछ पता नहीं। नहीं। जो हम बाहर से चेहरे बनाए हुए हैं, वे झूठे हैं। हमारे बाहर खूब स्टील के आदमी हैं! तो घास-फूस का आदमी कैसा होता के चेहरे ऐसे लगते हैं, बड़े अकंप हैं। सचाई वैसी नहीं है; भीतर | | है? भूसे से भरा आदमी कैसा होता है? और अगर स्टैलिन इतने सब कंपता हुआ है। बहादुर से बहादुर आदमी भीतर भय से कंप भूसे से भरे हैं, तो हमारी क्या हालत होगी? हम तो स्टैलिन नहीं रहा है। बहादुर से बहादुर आदमी भीतर भय से कंप रहा है। | हैं, हम तो स्टील के आदमी नहीं हैं। स्टील के आदमी की यह स्टैलिन था। नाम ही उसको स्टैलिन इसलिए दिया-मैन आफ | | हालत हो, तो हमारी क्या हालत होगी? स्टील, लौहपुरुष। नाम नहीं है उसका असली वह, दिया हुआ नाम | | नहीं, एक चेहरा, एक मास्क, एक मुखौटा है, जो ऊपर से है-लौहपुरुष, स्टैलिन, स्टील का आदमी। लेकिन खुश्चेव ने बिलकुल थिर है। भीतर असली चेहरा पूरे वक्त कंप रहा है। वहां अभी संस्मरण लिखे हैं। तो उसमें लिखा है कि वह इतना भयभीत | | कंपन ही चल रहा है। वहां बहादुर से बहादुर आदमी भीतर भयभीत 2351
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy