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गीता दर्शन भाग-1 AM
है। वहां तथाकथित ज्ञानी से ज्ञानी, भीतर गहरे में अज्ञान से कंप | कि लेनिन की इस महत्वाकांक्षा में उसके पैरों का छोटा होना ही रहा है। यहां वह कह रहा है कि मुझे पता है, ब्रह्म है। और वहां | कारण था, वह हीनता ही उसको पीड़ित कर रही थी। पैर बहुत छोटे 'भीतर वह जान रहा है, मुझे कुछ भी पता नहीं। यह भी पता नहीं है | थे, साधारण कुर्सी पर भी लटक जाते थे, जमीन पर नहीं पहुंचते थे। कि मैं भी हूं। बाहर वह दिखला रहा है अधिकार, कि मुझे मालूम | बर्नार्ड शा ने मजाक में कहा है कि छोटे पैर से क्या फर्क! छोटा है। भीतर उसे कुछ भी मालूम नहीं है। भीतर अज्ञान खाए जा रहा | हो पैर कि बड़ा हो, जमीन पर आदमी खड़ा हो, तो सभी के पैर है। बाहर से वह कह रहा है, आत्मा अमर है। और भीतर मौत मुंह | जमीन पर पहुंच जाते हैं। क्या फर्क पड़ता है छोटे-बड़े पैर से? बाए मालूम पड़ती है।
जमीन पर खड़ा हो, तो सभी के पैर जमीन पर पहुंच जाते हैं। ऐसी जो हमारी बुद्धि है, जो दृढ़ नहीं है। लेकिन दृढ़ का क्या | __ वह तो ठीक है। लेकिन छोटे पैर से फर्क पड़ता है; आदमी कुर्सी मतलब है? फिर वही कठिनाई है शब्दों की। दृढ़ का क्या मतलब पर पहुंच जाता है। क्योंकि जब तक कुर्सी पर नहीं पहुंच जाता, तब है? जिसको हम दृढ़ आदमी कहते हैं, क्या उसके भीतर कंपन नहीं | तक उसके प्राण पीड़ित होते रहते हैं कि पैर छोटे हैं, पैर छोटे हैं, होता? असल में जितनी दृढ़ता आदमी बाहर से दिखाता है, उतना | पैर छोटे हैं। वही पीड़ा उसको विपरीत यात्रा पर ले जाती है। ही भीतर कंपित होता है। असल में दृढ़ता जो है, वह सेफ्टी मेजर तो एडलर से अगर पूछे कि दृढ़ता का क्या मतलब है? तो है, वह भीतर के कंपन को झुठलाने के लिए आयोजन है। | एडलर और कृष्ण के मतलब में फर्क है; वह मैं समझाना चाहता
एडलर ने इस संबंध में बड़ी मेहनत की है। शायद मनुष्य जाति हूं। एडलर कहेगा, दृढ़ता का मतलब कि आदमी वीकलिंग है, के इतिहास में इस दिशा में एडलर की खोज सर्वाधिक कीमती है। | भीतर कमजोर है। आदमी भीतर कमजोर है, इसलिए. बाहर से एडलर कहता है कि एक बड़ी अजीब घटना आदमी के साथ घटती दृढ़ता आरोपित कर रहा है। आदमी भीतर घास-फूस का है, है कि आदमी जो भीतर होता है, उससे ठीक उलटा बाहर आयोजन इसलिए बाहर से स्टैलिन है। आदमी भीतर से कुछ नहीं है, इसलिए करता है, दि एग्जेक्ट कानट्रेरी, ठीक उलटा आयोजन करता है। बाहर से सब कुछ बनने की कोशिश में लगा है। क्या कृष्ण भी इसी जितना मनुष्य भीतर हीनता से पीड़ित होता है, उतना बाहर श्रेष्ठता | दृढ़ता की बात कर रहे हैं? अगर इसी दृढ़ता की बात कर रहे हैं, का आयोजन करता है।
तो दो कौड़ी की है। सभी राजनीतिज्ञ इनफीरिअरिटी कांप्लेक्स से पीड़ित होते हैं। नहीं, इस दृढ़ता की वे बात नहीं कर रहे हैं। एक और दृढ़ता है, होंगे ही. अन्यथा राजनीतिज्ञ होना मश्किल है। राजनीतिज्ञ होने के जो भीतर की कमजोरी को दबाने से उपलब्ध नहीं होती, जो भीतर लिए जरूरी है कि भीतर हीनता का भाव हो कि मैं कुछ भी नहीं हूं। के चित्त के विपरीत आयोजन करने से उपलब्ध नहीं होती, बल्कि तभी आदमी दौड़कर सिद्ध करता है कि देखो, मैं कुछ हूं। यह भीतर के कंपित चित्त के विदा हो जाने से उपलब्ध होती है। आपको कम सिद्ध करता है, अपने को ज्यादा सिद्ध करता दो तरह की दृढ़ताएं हैं। एक दृढ़ता वह है, जिसमें मेरे भीतर है-अपने सामने कि नहीं, गलत थी वह बात कि मैं कुछ नहीं कमजोरी तो मौजूद रहती है, और उसकी छाती पर सवार होकर मैं हूं। देखो, मैं कुछ हूं।
दृढ़ हो जाता हूं। और एक ऐसी दृढ़ता है, जो मेरी कमजोरी बिखर एडलर का कहना है कि बड़े से बड़े जो संगीतज्ञ हुए हैं जगत में, | | जाती है, विलीन हो जाती है, उसके अभाव में जो मेरे भीतर छूट वे वे ही लोग हैं, जिनके बचपन में कान कमजोर होते हैं। कमजोर जाती है। लेकिन उसे हम क्या कहें? उसे दृढ़ता कहना ठीक नहीं कान का आदमी संगीतज्ञ हो जाता है। कमजोर आंख के आदमी
इता पहले वाली ही है। वह एडलर चित्रकार हो जाते हैं।
| ठीक कहता है। उसे हम क्या कहें, जो कमजोरी के विसर्जन पर लेनिन कुर्सी पर बैठता था, तो उसके पैर जमीन नहीं छूते थे। पैर बचती है? बहुत छोटे थे, ऊपर का हिस्सा बहुत बड़ा था। लेकिन बड़ी से बड़ी । एक तो स्वास्थ्य वह है, जो भीतर बीमारी को दबाकर प्रकट होता कुर्सी पर वह आदमी बैठ सका। उसने सिद्ध करके बता दिया कि है। और एक स्वास्थ्य वह है, जो बीमारी के अभाव पर, एब्सेंस में तुम्हारे पैर अगर जमीन को छूते हैं, तो कोई बात नहीं, कोई फिक्र प्रकट होता है। लेकिन जो बीमारी के अभाव में प्रकट होता है, उस नहीं, हम कुर्सी को आसमान से छूकर बताए देते हैं। एडलर कहेगा स्वास्थ्य को हम क्या कहें? क्योंकि हम एक ही तरह के स्वास्थ्य
है. क्योंकि
के सच तो यह
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