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________________ m+ गीता दर्शन भाग-1 AM डोलता है मन, तो हाथ भी डोलता है। कंपता है, डोलता है चित्त, | | ठीक है, तो बाहर सब ठीक हो जाता है। इसे कृष्ण ने योग की तो कर्म भी डोलता है। सब विकत हो जाता है। क्योंकि भीतर ही! | कशलता कहा है। सब डोल रहा है, भीतर ही कुछ थिर नहीं है। शराबी के पैर जैसे | और यह पृथ्वी तब तक दीनता, दुख और पीड़ा से भरी रहेगी, कंप रहे, ऐसा भीतर सब कंप रहा है। बाहर भी सब कंप जाता है। | जब तक अयोगी कुशलता की कोशिश कर रहे हैं कर्म की; और कंप जाता है, अकुशल हो जाता है। | योगी पलायन की कोशिश कर रहे हैं। जब तक योगी भागेंगे और भीतर जब सब शांत है, सब मौन है, तो अकुशलता आएगी कहां | | अयोगी जमकर खड़े रहेंगे, तब तक यह दुनिया उपद्रव बनी रहे, तो से? अकुशलता आती है-भीतर की अशांति, भीतर के तनाव, आश्चर्य नहीं है। इससे उलटा हो, तो ज्यादा स्वागत योग्य है। टेंशन, एंग्जाइटी, भीतर की चिंता, भीतर के विषाद, भीतर गड़े हैं जो | अयोगी भागें तो भाग जाएं, योगी टिकें और खड़े हों और जीवन कांटे दुख के, पीड़ा के, चिंता के–वे सब कंपा डालते हैं। उनसे जो | | के युद्ध को स्वीकार करें। आह उठती है, वह बाहर सब अकुशल कर जाती है। लेकिन भीतर जीवन के युद्ध में नहीं है प्रश्न। युद्ध भीतर है, वह है कष्ट। द्वंद्व अगर वीणा बजने लगे मौन की, समता की, तो अकुशलता के आने | भीतर है, वह है कष्ट। वहां निद्वता, वहां मौन, वहां शांति, तो का उपाय कहां है? बाहर सब कुशल हो जाता है। फिर तब ऐसा बाहर सब कुशल हो जाता है। आदमी जो भी करता है, वह मिडास जैसा हो जाता है। एक श्लोक और। कहानी है यूनान में कि मिडास जो भी छूता, वह सोने का हो जाता। जो भी छू लेता, वह सोने का हो जाता। मिडास तो बड़ी मुश्किल में पड़ा इससे, क्योंकि सोना पास में न हो तो ही ठीक। थोड़ा कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः । हो, तो भी चल जाए। मिडास जैसा हो जाए, तो मुश्किल हो गई। जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्य नामयम् । । ५१।। क्योंकि सोना न तो खाया जा सकता, न पीया जा सकता। पानी छुए क्योंकि बुद्धियोगयुक्त ज्ञानीजन कमों से उत्पन्न होने वाले मिडास, तो सोना हो जाए; खाना छुए, तो सोना हो जाए। पत्नी उससे फल को त्यागकर, जन्मरूप बंधन से छूटे हुए निर्दोष, दर भागे. बच्चे उससे दर बचें। सभी सोने वालों की पत्नियां और __ अर्थात अमृतमय परमपद को प्राप्त होते हैं। बच्चे दूर भागते हैं। छुएं, तो सोना हो जाएं। मिडास का टच-पत्नी को अगर गले लगा ले प्रेम से, तो वह मरी, सोना हो गई। • तो जहां भी सोने का संस्पर्श है, वहां प्रेम मर जाता है; सब सोना भी ऐसे ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है, जो भी ऐसी हो जाता है, सब पैसा हो जाता है। मिडास तो बड़ी मुश्किल में UII निष्ठा को, ऐसी श्रद्धा को, ऐसे अनुभव को उपलब्ध पड़ा। क्योंकि वह जो छूता था, वह जीवित भी हो, तो मुर्दा सोना हो जाता है जहां द्वंद्व नहीं है, वैसा व्यक्ति जन्म के, हो जाए। मृत्यु के घेरे से मुक्त होकर परमपद को पा लेता है। लेकिन मैं यह कह रहा हूं कि कृष्ण एक और तरह की कीमिया, इसे थोड़ा-सा खोलना पड़ेगा। और तरह की अल्केमी बता रहे हैं। वे यह बता रहे हैं कि भीतर | एक तो, जन्म-मृत्यु से मुक्त हो जाता है, इसका ऐसा मतलब अगर समता है, और भीतर अगर सांख्य है, और भीतर अगर सब नहीं है कि अभी जन्म-मत्य में है। है तो अभी भी नहीं: ऐसा प्रतीत मौन और शांत हो गया है, तो हाथ जो भी छूते हैं, वह कुशल हो | करता है कि है। जन्म-मृत्यु से मुक्त हो जाता है, इसका मतलब जाता है; जो भी करते हैं, वह कुशल हो जाता है। फिर जो होता है, | यह नहीं कि पहले बंधा था और अब मुक्त हो जाता है। नहीं, ऐसा वह सभी सफल है। सफल ही नहीं, कहना चाहिए, सुफल भी है। बंधा तो पहले भी नहीं था, लेकिन मानता था कि बंधा हूं। और अब सुफल और बात है। सफल तो चोर भी होता है, लेकिन सुफल जानता है कि नहीं बंधा हूं। पहला तो यह खयाल ले लेना जरूरी नहीं होता। सफल का तो इतना ही मतलब है कि काम करते हैं, | है। जो घटना घटती है जन्म और मृत्यु से मुक्ति की, वह वास्तविक फल लग जाता है। लेकिन कड़वा लगता है, जहरीला भी लगता | नहीं है, क्योंकि जन्म और मृत्यु ही वास्तविक नहीं हैं। जो घटना है। सुफल का मतलब है, अमृत का फल लगता है। भीतर जब सब | | घटती है, वह एक असत्य का, एक अज्ञान का निराकरण है। 226
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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