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________________ IIT गीता दर्शन भाग-1 - पढ़ा-लिखा तो कोई भी नहीं है। कहना चाहिए, पढ़े-लिखे से | बंद हो गए हैं। या यह हो सकता है कि आगे संभावना है कि आदमी पढ़ा-लिखा वर्ग है। उसकी उम्र भी उतनी ही है जितनी तेरह साल के मस्तिष्क में और बहुत कुछ पोटेंशियल है, बीजरूप है, जो के बच्चे की होनी चाहिए-बुद्धि की। बड़ी चौंकाने वाली, बड़ी सक्रिय हो और काम करे। घबराने वाली बात है। मगर कारण है। और कारण यह है कि बाहर | - दोनों ही बातें थोड़ी दूर तक सच हैं। ऐसे लोग पृथ्वी पर हो चुके की दुनिया में जरूरत ही नहीं है बुद्धि की इतनी। | हैं, बुद्ध या कृष्ण या कपिल या कणाद, जिन्होंने पूरी-पूरी बुद्धि का इसलिए जब कृष्ण कहते हैं तो बहुत मनोवैज्ञानिक सत्य कह रहे | उपयोग किया। ऐसे लोग भविष्य में भी होंगे, जो इसका पूरा-पूरा हैं वह कि निकृष्टतम उपयोग है कर्म के लिए बुद्धि का। | उपयोग करें। लेकिन बाहर के काम के लिए थोड़ी-सी ही बुद्धि से निकृष्टतम! बुद्धि के योग्य ही नहीं है वह। वह बिना बुद्धि के भी | काम चल जाता है। वह न्यूनतम उपयोग है—निकृष्टतम। हो सकता है। मशीनें आदमी से अच्छा काम कर लेती हैं। __ अर्जुन को कृष्ण कहते हैं, धनंजय, तू बुद्धियोग को उपलब्ध हो। सच तो यह है कि आदमी रोज मशीनों से हारता जा रहा है, और | तू बुद्धि का भीतर जाने के लिए, स्वयं को जानने के लिए, उसे धीरे-धीरे आदमियों को कारखाने, दफ्तर के बाहर होना पड़ेगा। | जानने के लिए जो सब चुनावों के बीच में चुनने वाला है, जो सब की जगह लेती चली जाएंगी। क्योंकि आदमी उतना करने के बीच में करने वाला है. जो सब घटनाओं के बीच में साक्षी अच्छा काम नहीं कर पाता, जितना ज्यादा अच्छा मशीनें कर लेती | है, जो सब घटनाओं के पीछे खड़ा है दूर, देखने वाला द्रष्टा है, हैं। उसका कारण सिर्फ एक ही है कि मशीनों के पास बिलकुल | उसे तू खोज। और जैसे ही उसे तू खोज लेगा, तू समता को उपलब्ध बुद्धि नहीं है। भूल-चूक के लिए भी बुद्धि होनी जरूरी है। गलती | हो जाएगा। फिर ये बाहर की चिंताएं-ऐसा ठीक, वैसा करने के लिए भी बुद्धि होनी जरूरी है। मशीनें गलती करती ही | गलत-तुझे पीड़ित और परेशान नहीं करेंगी। तब तू निश्चित भाव नहीं। करती चली जाती हैं, जो कर रही हैं। से जी सकता है। और वह निश्चितता तेरी समता से आएगी, तेरी हम भी सत्रह-अठारह साल की उम्र होते-होते तक मेकेनिकल | बेहोशी से नहीं। हो जाते हैं। दिमाग सीख जाता है क्या करना है, फिर उसको करता चला जाता है। एक और बुद्धि का महत उपयोग है-बुद्धियोग-बुद्धिमानी बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते। नहीं, बुद्धिमत्ता नहीं, इंटलेक्चुअलिज्म नहीं, सिर्फ बौद्धिकता नहीं। तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् । । ५० ।। बुद्धियोग का क्या मतलब है कृष्ण का? बुद्धियोग का मतलब है, बुद्धियुक्त पुरुष पुण्य-पाप दोनों को इस लोक में ही त्याग जिस दिन हम बुद्धि के द्वार का बाहर के जगत के लिए नहीं, बल्कि | देता है अर्थात उनसे लिपायमान नहीं होता। इससे बुद्धियोग स्वयं को जानने की यात्रा के लिए प्रयोग करते हैं। तब सौ प्रतिशत के लिए ही चेष्टा कर। यह बुद्धिरूप योग ही कर्मों में बुद्धि की जरूरत पड़ती है। तब स्वयं-प्रवेश के लिए समस्त कुशलता है अर्थात कर्म बंधन से छूटने का उपाय है। बुद्धिमत्ता पुकारी जाती है। अगर बायोलाजिस्ट से पड़े तो वह कहता है. आदमी की आधी खोपड़ी बिलकुल बेकाम पड़ी है; आधी खोपड़ी का कोई भी हिस्सा ख्यबुद्धि को उपलब्ध व्यक्ति पाप-पुण्य से निवृत्त हो काम नहीं कर रहा है। बड़ी चिंता की बात है जीव-शास्त्र के लिए II जाता है। सांख्यबुद्धि को उपलब्ध व्यक्ति कर्म की कि बात क्या है? इसकी शरीर में जरूरत क्या है ? यह जो सिर का कुशलता को उपलब्ध हो जाता है। और कर्म की बड़ा हिस्सा बेकार पड़ा है, कुछ करता ही नहीं; इसको काट भी दें कुशलता ही, कृष्ण कहते हैं, योग है। तो चल सकता है; आदमी में कोई फर्क नहीं पड़ेगा; पर यह है | इसमें बहुत-सी बातें हैं। एक तो, सांख्यबुद्धि। इसके पहले सूत्र क्यों? क्योंकि प्रकृति कुछ भी व्यर्थ तो बनाती नहीं। या तो यह हो | में मैंने कहा कि बुद्धि का प्रयोग प्रवेश के लिए, बहिर्यात्रा के लिए सकता है कि पहले कभी आदमी पूरी खोपड़ी का उपयोग करता रहा नहीं, अंतर्यात्रा के लिए है। जिस दिन कोई व्यक्ति अपने विचार का हो, फिर भूल-चूक हो गई हो कुछ, आधी खोपड़ी के द्वार-दरवाजे | | उपयोग अंतर्यात्रा के लिए करता है, उस दिन सांख्य को उपलब्ध
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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