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________________ फलाकांक्षारहित कर्म, जीवंत समता और परम पद 4 वह बुद्धि है। स्वयं का द्वार बुद्धि है। और स्वयं के इस द्वार : में से प्रवेश किए बिना कोई भी न आत्मवान होता है, न ज्ञानवान होता है। यह बुद्धि का द्वार है। लेकिन बुद्धि के द्वार पर हमारी दृष्टि नहीं जाती, क्योंकि बुद्धि से हमेशा हम कर्मों के चुनाव का काम करते रहते हैं। बुद्ध के दो उपयोग हो सकते हैं । सब दरवाजों के दो उपयोग होते हैं। प्रत्येक दरवाजे के दो उपयोग हैं। होंगे ही। सब दरवाजे इसीलिए बनाए जाते हैं; उनसे बाहर भी जाया जा सकता है, उनसे भीतर भी जाया जा सकता है। दरवाजे का मतलब ही यह होता है। है ? जो कि उससे बाहर भी जाया जा सकता है, उससे भीतर भी जाया जा सकता है। जिससे भी बाहर जा सकते हैं, उससे ही भीतर भी जा सकते हैं। लेकिन हमने अब तक बुद्धि के दरवाजे का एक ही उपयोग किया है— बाहर जाने का। हमने अब तक उसका एक्जिट का उपयोग किया है, एंट्रेंस का उपयोग नहीं किया। जिस दिन आदमी बुद्धि का एंट्रेंस की तरह, प्रवेश की तरह उपयोग करता है, उसी दिन उसी दिन - जीवन में क्रांति फलित हो जाती है। अर्जुन भी बुद्धि का उपयोग कर रहा है। ऐसा नहीं कि नहीं कर रहा है; कहना चाहिए, जरूरत से ज्यादा ही कर रहा है। इतना ज्यादा कर रहा है कि कृष्ण को भी उसने दिक्कत में डाला हुआ है। बुद्धि का भलीभांति उपयोग कर रहा है। निर्बुद्धि है, बुद्धि काफी है। वह काफी बुद्धि ही उसे कठिनाई में डाले हुए है। निर्बुद्धि वहां और भी बहुत हैं, वे परेशान नहीं हैं। लेकिन बुद्धि का वह एक ही उपयोग जानता है । वह बुद्धि का उपयोग कर रहा है कि यह करूं तो ठीक, कि वह करूं तो ठीक ? ऐसा होगा, तो क्या होगा ? वैसा होगा, तो क्या होगा ? वह बुद्धि का उपयोग कर रहा है बहिर्जगत के संबंध में; वह बुद्धि का उपयोग कर रहा है फलों के लिए; वह बुद्धि का उपयोग कर रहा है कि कल क्या होगा? परसों क्या होगा ? संतति कैसी होगी ? कुल नाश होगा ? क्या होगा ? क्या नहीं होगा? वह बुद्धि का सारा उपयोग कर रहा हैं। सिर्फ एक उपयोग नहीं कर रहा है- भीतर प्रवेश का । कृष्ण उससे कहते हैं, धनंजय, कर्म के संबंध में ही सोचते रहना बड़ी निकृष्ट उपयोगिता है बुद्धि की। उसके संबंध में भी सोचो, जो कर्म के संबंध में सोच रहा है। कर्म को ही देखते रहना, बाहर ही देखते रहना, बुद्धि का अत्यल्प उपयोग है - निकृष्टतम ! अगर इसे ऐसा कहें कि व्यवहार के लिए ही बुद्धि का उपयोग करना – क्या करना, क्या नहीं करना - बुद्धि की क्षमता का | न्यूनतम उपयोग है । और इसलिए हमारी बुद्धि पूरी काम में नहीं आती, क्योंकि उतनी बुद्धि की जरूरत नहीं है। जहां सुई से काम चल जाता है, वहां तलवार की जरूरत ही नहीं पड़ती। अगर वैज्ञानिक से पूछें, तो वह कहता है कि श्रेष्ठतम मनुष्य भी अपनी बुद्धि के पंद्रह प्रतिशत से ज्यादा का उपयोग नहीं करते हैं; कुल पंद्रह प्रतिशत, वह भी श्रेष्ठतम ! श्रेष्ठतम यानी कोई आइंस्टीन या कोई बट्रेंड रसेल । तो जो दुकान पर बैठा है, वह आदमी कितनी करता है? जो दफ्तर में काम कर रहा है, वह आदमी कितनी करता 221 स्कूल में पढ़ा रहा है, वह आदमी कितना काम करता है बुद्धि से ? दो-ढाई परसेंट, इससे ज्यादा नहीं । दो-ढाई परसेंट भी पूरी जिंदगी नहीं करता आदमी उपयोग, केवल अठारह साल की उम्र तक । अठारह साल की उम्र के बाद तो मुश्किल से ही कोई उपयोग करता है। क्योंकि कई बातें बुद्धि सीख लेती है, कामचलाऊ सब बातें बुद्धि सीख लेती है, फिर उन्हीं से काम चलाती रहती है जिंदगीभर । अठारह साल के बाद मुश्किल से आदमी मिलेगा, जिसकी बुद्धि बढ़ती है। आप कहेंगे, गलत । सत्तर साल के आदमी के पास अठारह साल के आदमी से ज्यादा अनुभव होता है। अनुभव ज्यादा होता है, बुद्धि ज्यादा नहीं होती; अठारह साल की ही बुद्धि होती है । उसी बुद्धि से वह उसी चम्मच से वह अनुभव को इकट्ठा करता चला जाता है। चम्मच बड़ी नहीं करता; चम्मच वही रहती है; बस उससे अनुभव को इकट्ठा करता चला जाता है। अनुभव का ढेर बढ़ जाता है उसके पास बाकी चम्मच जो उसकी बुद्धि की होती है,. वह अठारह साल वाली ही होती है। दूसरे महायुद्ध में तो बड़ी कठिनाई हुई । कठिनाई यह हुई कि दूसरे महायुद्ध में अमेरिका को जांच-पड़ताल करनी पड़ी कि जिन सैनिकों को भेजते हैं, उनका आई. क्यू. कितना है, उनका | बुद्धि-माप कितना है। युद्ध में भेज रहे हैं, तो उनकी बुद्धि की जांच भी तो होनी चाहिए ! शरीर की जांच तो हो जाती है कि यह आदमी ताकतवर है, लड़ सकता है, सब ठीक। लेकिन अब युद्ध जो है, वह शरीर से नहीं चल रहा है, मस्कुलर नहीं रह गया है। अब युद्ध बहुत कुछ मानसिक हो गया है। बुद्धि कितनी है ? तो बड़ी हैरानी हुई। युद्ध के मैदान के लिए जो सैनिक भर्ती हो रहे थे, उनकी जांच करने से पता चला कि उन सभी सैनिकों की जो | औसत बुद्धि की उम्र है, वह तेरह साल से ज्यादा की नहीं है। तेरह साल ! उसमें युनिवर्सिटी के ग्रेजुएट हैं, उसमें मैट्रिक से कम
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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