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m+ गीता दर्शन भाग-1 AAK
से, कर्म भी नहीं हो पाता और फल की अति आकांक्षा से दुराशा इसे चुन लो, जिसे चुनते हो, उससे विपरीत को छोड़ दो। कृष्ण कहते और निराशा ही हाथ लगती है। कृष्ण ने यह बहुत बहुमूल्य सूत्र | | हैं, चुनो ही मत। दोनों समान हैं, ऐसा जानो। और जब दोनों समान कहा है। इसे हृदय के बहुत कोने में सम्हालकर रख लेने जैसा है। | हैं, तो चुनेंगे कैसे? चुनाव तभी तक हो सकता है, जब असमान हों।
करें कर्म, वह हाथ में है; अभी है, यहीं है। फल को छोड़ें। फल | | एक हो श्रेष्ठ, एक हो अश्रेष्ठ; एक में दिखती हो सिद्धि, एक में को छोड़ने का साहस दिखलाएं। कर्म को करने का संकल्प, फल | | दिखती हो असिद्धि; एक में दिखता हो शुभ, एक में दिखता हो को छोड़ने का साहस, फिर कर्म निश्चित ही फल ले आता है।। | अशुभ। कहीं न कहीं कोई तुलना का उपाय हो, कंपेरिजन हो, तभी लेकिन आप उस फल को मत लाएं, वह तो कर्म के पीछे छाया की | | चुनाव है। अगर दोनों ही समान हैं, तो चुनाव कहां? तरह चला आता है। और जिसने छोड़ा भरोसे से, उसके छोड़ने में ___ चौराहे पर खड़े हैं। अगर सभी रास्ते समान हैं, तो जाना कहाँ ? ही, उसके भरोसे में ही, जगत की सारी ऊर्जा सहयोगी हो जाती है। | जाएंगे कैसे? चुनेंगे कैसे? खड़े हो जाएंगे। लेकिन अगर एक
जैसे ही हम मांग करते हैं, ऐसा हो, वैसे ही हम जगत-ऊर्जा के | | रास्ता ठीक है और एक गलत, तो जाएंगे, गति होगी। जहां भी विपरीत खड़े हो जाते हैं और शत्रु हो जाते हैं। जैसे ही हम कहते हैं, | असमान दिखा, तत्काल चित्त यात्रा पर निकल जाता है-दि वेरी जो तेरी मर्जी; जो हमें करना था, वह हमने कर लिया, अब तेरी मोमेंट। यहां पता चला कि वह ठीक, पता नहीं चला कि चित्त गया। मर्जी परी हो: हम जगत-ऊर्जा के प्रति मैत्री से भर जाते हैं। और
| पता चला कि वह गलत, पता नहीं चला कि चित्त लौटा। पता लगा जगत और हमारे बीच, जीवन-ऊर्जा और हमारे बीच, परमात्मा | प्रीतिकर, पता लगा अप्रीतिकर; पता लगा श्रेयस, पता लगा और हमारे बीच एक हार्मनी, एक संगीत फलित हो जाता है। जैसे | अश्रेयस-यहां पता लगा मन को, कि मन गया। पता लगना ही ही हमने कहा कि नहीं, किया भी मेंने, जो चाहता है वह हो भी. मन के लिए तत्काल रूपांतरण हो जाता है। और समता उसे वैसे ही हम जगत के विपरीत खड़े हो गए हैं। और जगत के विपरीत उपलब्ध होती है, जो बीच में खड़ा हो जाता है। खड़े होकर सिवाय निराशा के, असफलता के कभी कुछ हाथ नहीं | कभी रस्सी पर चलते हुए नट को देखा? नट चुन सकता है, लगता है। इसलिए कर्मयोगी के लिए कर्म ही अधिकार है। फल! | किसी भी ओर गिर सकता है। गिर जाए, झंझट के बाहर हो जाए। फल परमात्मा का प्रसाद है।
लेकिन दोनों गिराव के बीच में सम्हालता है। अगर वह झुकता भी. | दिखाई पड़ता है आपको, तो सिर्फ अपने को सम्हालने के लिए,
झुकने के लिए नहीं। और आप अगर सम्हले भी दिखते हैं, तो सिर्फ योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय । झुकने के लिए। आप अगर एक क्षण चौरस्ते पर खड़े भी होते हैं, सिध्यसिख्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते । । ४८।। तो चुनने के लिए, कि कौन-से रास्ते से जाऊ! अगर एक क्षण हे धनंजय, आसक्ति को त्यागकर, सिद्धि और असिद्धि में | विचार भी करते हैं, तो चुनाव के लिए, कि क्या ठीक है! क्या करूं, समान बद्धि वाला होकर, योग में स्थित हआ कमों को कर। | क्या न करूं! क्या अच्छा है, क्या बरा है। किससे सफलता यह समत्वभाव ही योग नाम से कहा जाता है। | मिलेगी, किससे असफलता मिलेगी! क्या होगा लाभ, क्या होगी
हानि! अगर चिंतन भी करते हैं कभी, तो चुनाव के लिए।
नट को देखा है रस्सी पर! झुकता भी दिखता है, लेकिन झुकने 1 मता ही योग है—इक्विलिब्रियम, संतुलन, संगीत। के लिए नहीं। जब वह बाएं झुकता है, तब आपने कभी खयाल रा दो के बीच चुनाव नहीं, दो के बीच समभाव; विरोधों | | किया है, कि बाएं वह तभी झुकता है, जब दाएं गिरने का डर पैदा
के बीच चुनाव नहीं, अविरोध; दो अतियों के बीच, होता है। दाएं तब झुकता है, जब बाएं गिरने का डर पैदा होता है। दो पोलेरिटीज के बीच, दो ध्रुवों के बीच पसंद-नापसंद नहीं, | वह दाएं गिरने के डर को बाएं झुककर बैलेंस करता है। बाएं और राग-द्वेष नहीं, साक्षीभाव। समता का अर्थ ठीक से समझ लेना | दाएं के बीच, राइट और लेफ्ट के बीच वह पूरे वक्त अपने को सम जरूरी है, क्योंकि कृष्ण कहते हैं, वही योग है।
कर रहा है। समत्व कठिन है बहुत। चुनाव सदा आसान है। मन कहता है, | निश्चित ही, यह समता जड़ नहीं है, जैसा कि पत्थर पड़ा हो।
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