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________________ - फलाकांक्षारहित कर्म, जीवंत समता और परम पद - ले आए हो, वह पांचों भाई बांट लो। लेकिन इतनी सरल घटना हो | | तरफ जो स्त्री खड़ी है हंसने वाली, वह कोई साधारण स्त्री नहीं है। नहीं सकती। क्योंकि जब बाद में मां को भी तो पता चला होगा कि | उसका भी अपना संकल्प है, अपना विल है। उसकी भी अपनी यह मामला वस्तु का नहीं, स्त्री का है। यह कैसे बांटी जा सकती सामर्थ्य है; उसकी भी अपनी श्रद्धा है; उसका भी अपना होना है। है! तो कौन-सी कठिनाई थी कि कुंती कह देती कि भूल हुई। मुझे उसकी उस श्रद्धा में, वह जो कथा है, वह कथा तो काव्य है कि क्या पता कि तुम पत्नी ले आए हो! कृष्ण उसकी साड़ी को बढ़ाए चले जाते हैं। लेकिन मतलब सिर्फ नहीं, लेकिन मैं जानता हूं कि जो संघर्ष दुर्योधन और अर्जुन के | इतना है कि जिसके पास अपना संकल्प है, उसे परमात्मा का सारा बीच होता, वह संघर्ष पांच भाइयों के बीच भी हो सकता था। द्रौपदी | | संकल्प तत्काल उपलब्ध हो जाता है। तो अगर परमात्मा के हाथ ऐसी थी; वे पांच भाई भी कट-मर सकते थे उसके लिए। उसे बांट उसे मिल जाते हैं, तो कोई आश्चर्य नहीं। देना ही सुगमतम राजनीति थी। वह घर भी कट सकता था। वह तो मैंने कहा, और मैं फिर से कहता हूं, द्रौपदी नग्न की गई, महायुद्ध, जो पीछे कौरवों-पांडवों में हुआ, वह पांडवों-पांडवों में लेकिन हुई नहीं। नग्न करना बहुत आसान है, उसका हो जाना बहुत भी हो सकता था। और बात है। बीच में अज्ञात विधि आ गई, बीच में अज्ञात कारण इसलिए कहानी मेरे लिए उतनी सरल नहीं है। कहानी बहुत आ गए। दुर्योधन ने जो चाहा, वह हुआ नहीं। कर्म का अधिकार प्रतीकात्मक है और गहरी है। वह यह खबर देती है कि स्त्री वह | था, फल का अधिकार नहीं था। ऐसी थी कि पांच भाई भी लड़ जाते। इतनी गुणी थी, साधारण नहीं यह द्रौपदी बहुत अनूठी है। यह पूरा युद्ध हो गया। भीष्म पड़े हैं थी, असाधारण थी। उसको नग्न करना आसान बात नहीं थी, आग शय्या पर-बाणों की शय्या पर और कृष्ण कहते हैं पांडवों को से खेलना था। तो अकेला दुर्योधन नहीं है कि नग्न कर ले। द्रौपदी | कि पूछ लो धर्म का राज! और वह द्रौपदी हंसती है। उसकी हंसी भी है। पूरे महाभारत पर छाई है। वह हंसती है कि इनसे पूछते हैं धर्म का - और ध्यान रहे, बहत बातें हैं इसमें, जो खयाल में ले लेने जैसी रहस्य! जब मैं नग्न की जा रही थी, तब ये सिर झुकाए बैठे थे। हैं। जब तक कोई स्त्री स्वयं नग्न न होना चाहे, तब तक इस जगत | उसका व्यंग्य गहरा है। वह स्त्री बहुत असाधारण है। में कोई पुरुष किसी स्त्री को नग्न नहीं कर सकता है, नहीं कर पाता काश! हिंदुस्तान की स्त्रियों ने सीता को आदर्श न बनाकर द्रौपदी है। वस्त्र उतार भी ले, तो भी नग्न नहीं कर सकता है। नग्न होना | को आदर्श बनाया होता, तो हिंदुस्तान की स्त्री की शान और होती। बड़ी घटना है वस्त्र उतरने से, निर्वस्त्र होने से नग्न होना बहुत भिन्न लेकिन नहीं, द्रौपदी खो गई है। उसका कोई पता नहीं है। खो घटना है। निर्वस्त्र करना बहुत कठिन बात नहीं है, कोई भी कर गई। एक तो पांच पतियों की पत्नी है, इसलिए मन को पीड़ा होती सकता है, लेकिन नग्न करना बहुत दूसरी बात है। नग्न तो कोई है। लेकिन एक पति की पत्नी होना भी कितना मुश्किल है, उसका स्त्री तभी होती है, जब वह किसी के प्रति खुलती है स्वयं। अन्यथा | | पता नहीं है। और जो पांच पतियों को निभा सकी है, वह साधारण नहीं होती; वह ढंकी ही रह जाती है। उसके वस्त्र छीने जा सकते | स्त्री नहीं है, असाधारण है, सुपर ह्यूमन है। सीता भी अतिमानवीय हैं, लेकिन वस्त्र छीनना स्त्री को नग्न करना नहीं है। यह भी। है, लेकिन टू ह्यूमन के अर्थों में। और द्रौपदी भी अतिमानवीय है, और यह भी कि द्रौपदी जैसी स्त्री को नहीं पा सका दुर्योधन।। लेकिन सुपर ह्यूमन के अर्थों में। उसके व्यंग्य तीखे पड़ गए उसके मन पर। बड़ा हारा हुआ है। हारे | पूरे भारत के इतिहास में द्रौपदी को सिर्फ एक आदमी ने प्रशंसा हुए व्यक्ति-जैसे कि क्रोध में आई हुई बिल्लियां खंभे नोचने | | दी है। और एक ऐसे आदमी ने जो बिलकुल अनपेक्षित है। पूरे लगती हैं-वैसा करने लगते हैं। और स्त्री के सामने जब भी पुरुष भारत के इतिहास में डाक्टर राम मनोहर लोहिया को छोड़कर किसी हारता है और इससे बड़ी हार पुरुष को कभी नहीं होती। पुरुष | आदमी ने द्रौपदी को सम्मान नहीं दिया है, हैरानी की बात है। मेरा पुरुष से लड़ ले, हार-जीत होती है। लेकिन पुरुष जब स्त्री से हारता | तो लोहिया से प्रेम इस बात से हो गया कि पांच हजार साल के है किसी भी क्षण में, तो इससे बड़ी कोई हार नहीं होती। इतिहास में एक आदमी, जो द्रौपदी को सीता के ऊपर रखने को तो दुर्योधन उस दिन उसे नग्न करने का जितना आयोजन करके | तैयार है। बैठा है, वह सारा आयोजन भी हारे हुए पुरुष-मन का है। और उस | यह जो मैंने कहा, आदमी करता है कर्म फल की अति आकांक्षा 217]
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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