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im गीता दर्शन भाग-1 -
शक्तियां दौड़ पड़ती हैं।
छोड़ा था। उनकी तरफ से कोई कोर-कसर न थी। लेकिन हम सभी और जब आप फलाकांक्षा करते हैं, तब आपको पता है, आप | | कर्म करने वालों को, अज्ञात भी बीच में उतर आता है, इसका कभी अश्रद्धा कर रहे हैं। शायद इसको कभी सोचा न हो कि फलाकांक्षा कोई पता नहीं है। वह जो कष्ण की कथा है. वह अज्ञात के उतरने अश्रद्धा, गहरी से गहरी अनास्था, और गहरी से गहरी नास्तिकता की कथा है। अज्ञात के भी हाथ हैं, जो हमें दिखाई नहीं पड़ते। है। जब आप कहते हैं, फल भी मिले, तो आप यह कह रहे हैं कि । हम ही नहीं हैं इस पृथ्वी पर। मैं अकेला नहीं हूं। मेरी अकेली अकेले कर्म से निश्चय नहीं है फल का; मुझे फल की आकांक्षा भी | आकांक्षा नहीं है, अनंत आकांक्षाएं हैं। और अनंत की भी आकांक्षा करनी पड़ेगी। आप कहते हैं, दो और दो चार जोड़ता तो हूं, जुड़कर | है। और उन सब के गणित पर अंततः तय होगा कि क्या हुआ। चार हों भी। इसका मतलब यह है कि दो और दो जुड़कर चार होते | अकेला दुर्योधन ही नहीं है नग्न करने में, द्रौपदी भी तो है जो नग्न हैं, ऐसे नियम की कोई भी श्रद्धा नहीं है। हों भी, न भी हों! की जा रही है। द्रौपदी की भी तो चेतना है, द्रौपदी का भी तो
जितना अश्रद्धालु चित्त है, उतना फलातुर होता है। जितना श्रद्धा अस्तित्व है। और अन्याय होगा यह कि द्रौपदी वस्तु की तरह प्रयोग से परिपर्ण चित्त है, उतना फल को फेंक देता है जाने समष्टि की जाए। उसके पास भी चेतना है और व्यक्ति है: उसके पास भी जाने जगत, जाने विश्व की चेतना। मेरा काम पूरा हुआ, अब शेष | संकल्प है। साधारण स्त्री नहीं है द्रौपदी। काम उसका है।
सच तो यह है कि द्रौपदी के मुकाबले की स्त्री पूरे विश्व के फल की आकांक्षा वही छोड़ सकता है, जो इतना स्वयं पर, स्वयं | इतिहास में दूसरी नहीं है। कठिन लगेगी बात। क्योंकि याद आती के कर्म पर श्रद्धा से भरा है। और स्वभावतः जो इतनी श्रद्धा से भरा | है सीता की, याद आती है सावित्री की। और भी बहुत यादें हैं। फिर है, उसका कर्म पूर्ण हो जाता है, टोटल हो जाता है-टोटल एक्ट। | भी मैं कहता हूं, द्रौपदी का कोई मुकाबला ही नहीं है। द्रौपदी बहुत
और जब कर्म पूर्ण होता है, तो फल सुनिश्चित है। लेकिन जब चित्त | ही अद्वितीय है। उसमें सीता की मिठास तो है ही, उसमें क्लियोपेट्रा बंटा होता है फल के लिए और कर्म के लिए, तब जिस मात्रा में | का नमक भी है। उसमें क्लियोपेट्रा का सौंदर्य तो है ही, उसमें गार्गी फल की आकांक्षा ज्यादा है, कर्म का फल उतना ही अनिश्चित है। | का तर्क भी है। असल में पूरे.महाभारत की धुरी द्रौपदी है। वह सारा
सुबह एक मित्र आए। उन्होंने एक बहुत बढ़िया सवाल उठाया। युद्ध उसके आस-पास हुआ है। मैं तो चला गया। शायद परसों मैंने कहीं कहा कि एक छोटे-से | । लेकिन चूंकि पुरुष कथाएं लिखते हैं, इसलिए कथाओं में मजाक से महाभारत पैदा हुआ। एक छोटे-से व्यंग्य से द्रौपदी के, पुरुष-पात्र बहुत उभरकर दिखाई पड़ते हैं। असल में दुनिया की महाभारत पैदा हुआ। छोटा-सा व्यंग्य द्रौपदी का ही, दुर्योधन के | कोई महाकथा स्त्री की धुरी के बिना नहीं चलती। सब महाकथाएं मन में तीर की तरह चुभ गया और द्रौपदी नग्न की गई, ऐसा मैंने | | स्त्री की धुरी पर घटित होती हैं। वह बड़ी रामायण सीता की धुरी कहा। मैं तो चला गया। उन मित्र के मन में बहुत तूफान आ गया | | पर घटित हुई है; उसमें केंद्र में सीता है। राम और रावण तो ट्राएंगल होगा। हमारे मन भी तो बहुत छोटे-छोटे प्यालियों जैसे हैं, जिनमें के दो छोर हैं; धुरी पर सीता है। बहत छोटे-से हवा के झोंके से तफान आ जाता है-चाय की ये कौरव और पांडव और यह सारा परा महाभारत और यह सारा प्याली से ज्यादा नहीं! तूफान आ गया होगा। मैं तो चला गया, मंच युद्ध द्रौपदी की धुरी पर घटा है। उस युग की और सारे युगों की पर वे चढ़ आए होंगे। उन्होंने कहा, तद्दन खोटी बात छे, बिलकुल | | सुंदरतम स्त्री है वह। नहीं, आश्चर्य नहीं है कि दुर्योधन ने भी उसे झूठी बात है; द्रौपदी कभी नग्न नहीं की गई।
| चाहा हो। असल में, उस युग में कौन पुरुष होगा जिसने उसे न द्रौपदी नग्न की गई; हुई नहीं—यह दूसरी बात है। द्रौपदी पूरी | | चाहा हो! उसका अस्तित्व उसके प्रति चाह पैदा करने वाला था। तरह नग्न की गई; हुई नहीं—यह बिलकुल दूसरी बात है। करने | दुर्योधन ने भी उसे चाहा है और फिर वह चली गई अर्जुन के हाथ। वालों ने कोई कोर-कसर न छोड़ी थी। करने वालों ने सारी ताकत __ और यह भी बड़े मजे की बात है कि द्रौपदी को पांच भाइयों में लगा दी थी। लेकिन फल आया नहीं, किए हुए के अनुकूल नहीं बांटना पड़ा। कहानी बड़ी सरल है, उतनी सरल घटना नहीं हो आया फल—यह दूसरी बात है।
सकती। कहानी तो इतनी ही सरल है कि अर्जुन ने आकर बाहर से असल में, जो द्रौपदी को नग्न करना चाहते थे, उन्होंने क्या रख कहा कि मां देखो, हम क्या ले आए हैं! और मां ने कहा, जो भी
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