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________________ mm गीता दर्शन भाग-1 4m तो तानसेन ने कहा, मैं कुछ भी नहीं हूं गुरु के सामने; जिससे | सदा अधूरा हूं, अंश हूं। अगर बिना बजाए भी मुझे वह मिल जाए सीखा है, उसके चरणों की धूल भी नहीं हूं। इसलिए वह खयाल | जो बजाने से मिलता है, तो बजाने को फेंककर उसे पा लूंगा। मन से छोड़ दें। शिखर! भूमि पर भी नहीं हूं। लेकिन आपने मुझे | बजाना मेरे लिए साधन है, साध्य नहीं है। साध्य कहीं और ही जाना है, इसलिए आपको शिखर मालूम पड़ता हूं। ऊंट जब | है-भविष्य में, धन में, यश में, प्रतिष्ठा में—साध्य कहीं और है, पहाड़ के करीब आता है, तब उसे पता चलता है, अन्यथा वह | | संगीत सिर्फ साधन है। साधन कभी आत्मा नहीं बन पाती; साध्य पहाड़ होता ही है। पर, तानसेन ने कहा कि मैं गुरु के चरणों में बैठा | | में ही आत्मा अटकी होती है। अगर साध्य बिना साधन के मिल हूं; मैं कुछ भी नहीं हूं। कभी उनके चरणों में बैठने की योग्यता भी | | जाए, तो साधन को छोड़ दूं अभी। लेकिन नहीं मिलता साधन के हो जाए, तो समझूगा बहुत कुछ पा लिया। बिना, इसलिए साधन को खींचता हूं। लेकिन दृष्टि और प्राण और तो अकबर ने कहा, तुम्हारे गुरु जीवित हों तो तत्क्षण, अभी और | | आकांक्षा और सब घूमता है साध्य के निकट। लेकिन जिनको आप आज उन्हें ले आओ, मैं सुनना चाहूंगा। पर तानसेन ने कहा, यही सुनकर आ रहे हैं, संगीत उनके लिए कुछ पाने का साधन नहीं है। कठिनाई है। जीवित वे हैं, लेकिन उन्हें लाया नहीं जा सकता। आगे कुछ भी नहीं है, जिसे पाने को वे बजा रहे हैं। बल्कि पीछे __ अकबर ने कहा, जो भी भेंट करनी हो, तैयारी है। जो भी! जो | | कुछ है, जिससे उनका संगीत फूट रहा है और बज रहा है। कुछ पा भी इच्छा हो, देंगे। तुम जो कहो, वही देंगे। तानसेन ने कहा, वही | | लिया है, कुछ भर गया है, वह बह रहा है। कोई अनुभूति, कोई कठिनाई है, क्योंकि उन्हें कुछ लेने को राजी नहीं किया जा सकता। सत्य, कोई परमात्मा प्राणों में भर गया है। अब वह बह रहा है, क्योंकि वह कुछ लेने का प्रश्न ही नहीं है। अकबर ने कहा, कुछ ओवर फ्लोइंग है। लेने का प्रश्न नहीं है! तो क्या उपाय किया जाए? तानसेन ने कहा, अकबर बार-बार पूछने लगा, किसलिए? किसलिए? । कोई उपाय नहीं, आपको ही चलना पड़े। तो उन्होंने कहा, मैं अभी स्वभावतः, हम भी पूछते हैं, किसलिए? पर तानसेन ने कहा, चलने को तैयार हूं। तानसेन ने कहा, अभी चलने से तो कोई सार | नदियां किसलिए बह रही हैं? फूल किसलिए खिल रहे हैं? सूर्य नहीं है। क्योंकि कहने से वे बजाएंगे, ऐसा नहीं है। जब वे बजाते किसलिए निकल रहा है? हैं, तब कोई सुन ले, बात और है। तो मैं पता लगाता हूं कि वे कब किसलिए, मनुष्य की बुद्धि ने पैदा किया है। सारा जगत ओवर बजाते हैं। तब हम चलेंगे। फ्लोइंग है, आदमी को छोड़कर। सारा जगत आगे के लिए नहीं जी पता चला–हरिदास फकीर उसके गुरु थे, यमुना के किनारे रहा है, सारा जगत भीतर से जी रहा है। फूल खिल रहा है, खिलने रहते थे—पता चला, रात तीन बजे उठकर वे बजाते हैं, नाचते हैं। में ही आनंद है। सूर्य निकल रहा है, निकलने में ही आनंद है। हवाएं तो शायद ही दुनिया के किसी अकबर की हैसियत के सम्राट ने तीन बह रही हैं, बहने में ही आनंद है। आकाश है, होने में ही आनंद बजे रात चोरी से किसी संगीतज्ञ को सुना हो। अकबर और तानसेन | है। आनंद आगे नहीं, अभी है, यहीं है। चोरी से झोपडी के बाहर ठंडी रात में छिपकर बैठे रहे। परे समय और जो हो रहा है, वह भीतर की ऊर्जा से अकारण बहाव अकबर की आंखों से आंसू बहते रहे। एक शब्द बोला नहीं। | है-अनमोटिवेटेड एक्ट। जिस पर कि कृष्ण का सारा कर्मयोग संगीत बंद हआ। वापस होने लगे। सुबह फूटने लगी। राह में खड़ा होगा। वह जीवन को भविष्य की तरफ से पकड़ना नहीं, वह भी तानसेन से अकबर बोला नहीं। महल के द्वार पर तानसेन से जीवन को आकांक्षा की तरफ से खींचना नहीं, वरन व्यक्ति के इतना ही कहा, अब तक सोचता था कि तुम जैसा कोई भी नहीं बजा | भीतर छिपा जो अव्यक्त है, उसकी ओवर फ्लोइंग, उसका ऊपर सकता। अब सोचता हूं कि तुम हो कहां! लेकिन क्या बात है? तुम | से बह जाना है। कृत्य, जिस दिन आपके जीवन-ऊर्जा की ओवर अपने गुरु जैसा क्यों नहीं बजा सकते हो? फ्लोइंग है, ऊपर से बह जाना है, उस दिन निष्काम है। और जब तानसेन ने कहा, बात तो बहुत साफ है। मैं कुछ पाने के लिए तक भविष्य के लिए किसी कारण से बहना है, तब तक सकाम है। बजाता हूं, और मेरे गुरु ने कुछ पा लिया है, इसलिए बजाते हैं। मेरे | सकाम कर्म योग नहीं है, निष्काम कर्म योग है। बजाने के आगे कुछ लक्ष्य है, जो मुझे मिले, उसमें मेरे प्राण हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वह कामना भविष्य की, स्वर्ग इसलिए बजाने में मेरे प्राण पूरे कभी नहीं हो सकते। बजाने में मैं | की, मोक्ष की, परमात्मा की—इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर 202
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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