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________________ काम, द्वंद्व और शास्त्र से - निष्काम, निर्द्वद्व और स्वानुभव की ओर 4 पूरे मनोवैज्ञानिक एक स्वर से कहते हैं कि बिना कामना के कर्म नहीं सकता है। कृष्ण का मनोविज्ञान आधुनिक मनोविज्ञान से बिलकुल उलटी बात कह रहा है । वे यह कह रहे हैं कि कर्म जब तक कामना से बंधा है, तब तक सिवाय दुख और अंधकार के कहीं भी नहीं ले जाता है। जिस दिन कर्म कामना से मुक्त होता है – परलोक की कामना से भी, स्वर्ग की कामना से भी – जिस दिन कर्म शुद्ध होता है, प्योर एक्ट हो जाता है, जिसमें कोई चाह की जरा भी अशुद्धि नहीं होती, उस दिन ही कर्म निष्काम है और योग बन जाता है। और वैसा कर्म स्वयं में मुक्ति है। वैसे कर्म के लिए किसी मोक्ष की आगे कोई जरूरत नहीं है। वैसे कर्म का कोई मोक्ष भविष्य में नहीं है। वैसा कर्म अभी और यहीं, हियर एंड नाउ मुक्ति है । वैसा कर्म मुक्ति है। वैसे कर्म का मुक्ति फल नहीं है, वैसे कर्म की निजता ही मुक्ति है। इसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है, क्योंकि आगे बार-बार, उसके इर्द-गिर्द बात घूमेगी। और कृष्ण के संदेश की बुनियाद में वह बात छिषी है। क्या कर्म हो सकता है बिना कामना के ? क्या बिना चाह के हम कुछ कर सकते हैं? तो फिर प्रेरणा कहां से उपलब्ध होगी ? वह स्रोत कहां से आएगा, वह शक्ति कहां से आएगी, जो हमें खींचे और कर्म में संयुक्त करे ? - जिस जगत में हम जीते हैं और जिस कर्मों के जाल से हम अब तक परिचित रहे हैं, उसमें शायद ही एकाध ऐसा कर्म हो जो अनमोटिवेटेड हो – शायद ही। अगर कभी ऐसा कोई कर्म भी दिखाई पड़ता हो, जो अनमोटिवेटेड मालूम होता है, जिसमें आगे कोई मोटिव, जिसमें आगे कोई पाने की आकांक्षा होती, उसमें भी थोड़ा भीतर खोजेंगे, तो मिल जाएगी। रास्ते पर आप चल रहे हैं। आपके आगे कोई है, उसका छाता गिर गया। आप उठाकर दे देते हैं - अनमोटिवेटेड । उठाते वक्त आप यह भी नहीं. सोचते कि क्या फल, क्या उपलब्धि, क्या मिलेगा? नहीं, यह सोच नहीं होता। छाता गिरा, आपने उठाया, दे दिया । दिखाई पड़ता है, अनमोटिवेटेड है। क्योंकि न घर से सोचकर चले थे कि किसी का छाता गिरेगा, तो उठाएंगे। छाता गिरा, उसके एक क्षण पहले तक छाता उठाने की कोई भी योजना मन में न थी। छाता गिरने और छाता उठाने के बीच भी कोई चाह दिखाई नहीं पड़ती है। लेकिन फिर भी, मनोविज्ञान कहेगा, अनकांशस मोटिवेशन है। अगर छाता के बाद वह आदमी धन्यवाद न दे, तो दुख होगा। छाता दबा ले और चल पड़े, तो आप चौकन्ने से खड़े रह जाएंगे कि कैसा आदमी है, धन्यवाद भी नहीं ! अगर पीछे इतना भी स्मरण आता है कि कैसा आदमी है, धन्यवाद भी नहीं ! तो मोटिवेशन हो गया। सचेतन नहीं था, आपने सोचा नहीं था, लेकिन मन के किसी गहरे तल पर छिपा था। अब पीछे से हम कह सकते हैं कि धन्यवाद पाने के लिए छाता उठाया? आप कहेंगे, नहीं, धन्यवाद का तो कोई विचार ही न था; यह तो पीछे पता चला। लेकिन जो नहीं था, वह पीछे भी पता नहीं चल सकता है। जो बीज में न छिपा हो, वह प्रकट भी नहीं हो सकता है। जो अव्यक्त न रहा हो, वह व्यक्त भी नहीं हो सकता है। कहीं छिपा था, किसी अनकांशस, किसी अचेतन के तल पर दबा था, राह देखता था । नहीं, सचेतन कोई कामना नहीं थी, लेकिन अचेतन कामना थी। जीवन में ऐसे कुछ क्षण हमें मालूम पड़ते हैं, जहां लगता है, अनमोटिवेटेड, निष्काम कोई कृत्य घटित हो गया है। लेकिन उसे भी पीछे से लौटकर देखें, तो लगता है, कामना कहीं छिपी थी। इसलिए पश्चिम का मनोविज्ञान कहेगा कि चाहे दिखाई पड़े और चाहे न दिखाई पड़े, जहां भी कर्म है, वहां कामना है; इतना ही फर्क हो सकता है कि वह चेतन है या अचेतन है । लेकिन कृष्ण कहते हैं, ऐसा कर्म हो सकता है, जहां कामना नहीं हो। यह वक्तव्य बहुत महत्वपूर्ण है। इसे समझने के लिए दो-चार ओर से हम यात्रा करेंगे। एक छोटी-सी कहानी से आपको कहना चाहूंगा। क्योंकि जो हमारी जिंदगी में परिचित नहीं है, उसे हमें | किसी और की जिंदगी में झांकना पड़े। और हमारी जिंदगी ही इति | नहीं है। हमें किसी और जिंदगी में झांकना पड़े, देखना पड़े कि क्या यह संभव है ? इज़ इट पासिबल ? पहले तो यही देख लें कि क्या यह संभव है? अगर संभावना दिखाई पड़े, तो शायद कल सत्य भी हो सकती है। अकबर एक दिन तानसेन को कहा है, तुम्हारे संगीत को सुनता हूं, तो मन में ऐसा खयाल उठता है कि तुम जैसा बजाने वाला | शायद ही पृथ्वी पर हो ! आगे भी कभी होगा, यह भी भरोसा नहीं आता। क्योंकि इससे ऊंचाई और क्या हो सकेगी, इसकी धारणा भी नहीं बनती है। तुम शिखर हो । लेकिन कल रात जब तुम्हें विदा किया था, सोने गया था, तो मुझे खयाल आया, हो सकता है, तुमने भी किसी से सीखा हो, कोई तुम्हारा गुरु हो । तो मैं आज तुमसे | पूछता हूं कि तुम्हारा कोई गुरु है ? तुमने किसी से सीखा है ? 201
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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