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→ अर्जुन का जीवन शिखर - युद्ध के ही माध्यम से 4.
और हुई है
जैसा कि आपने पूछा है, मनोवैज्ञानिक कहते हैं, यह तो स्वभाव है। लेकिन यह कहकर वे कुछ इस तरह की बात दुनिया में पैदा करवाते हैं कि जैसे यह अंत है। इसलिए पश्चिम में मनोविज्ञान के कुछ परिणाम हुए हैं। हिंदुस्तान में मनोविज्ञान ने एक लाभ लिया और मनुष्य को विकास दिया। और पश्चिम के सौ डेढ़ सौ वर्ष के मनोविज्ञान ने मनुष्य को पतन दिया, विकास नहीं दिया। क्योंकि मनोवैज्ञानिक ने कहा, यह तो स्वभाव है। आदमी क्रोध तो करेगा ही, क्रोध तो स्वभाव है। आदमी कामुक तो होगा ही, कामुकता तो स्वभाव है।
इसका परिणाम क्या हुआ ? इसका परिणाम यह हुआ कि जो प्रारंभ बिंदु था, वह अंतिम मंजिल बन गया । और तब प्रत्येक आदमी ने कहा, क्रोध तो मैं करूंगा ही, यह मेरा स्वभाव है। आदमी क्रोध करेगा ही। निश्चित ही, इसके फल हुए हैं। वे फल पश्चिम में दिखाई पड़ रहे हैं। वे फल ये हुए कि आज कोई भी व्यक्ति अपने को किसी भी कृत्य के लिए जिम्मेवार, रिस्पांसिबल नहीं मानता। क्योंकि वह कहता है, यह स्वभाव है।
एक आदमी गालियां बक रहा है सड़क पर, तो आप उससे यह नहीं कह सकते कि तुम यह क्या कर रहे हो ? वह कहता है, यह स्वभाव है। एक आदमी चोरी कर रहा है, आप उससे यह नहीं कह सकते कि तुम गलत कर रहे हो। वह कहता है, मैं क्या कर सकता हूं, यह स्वभाव है। पश्चिम के मनोविज्ञान ने अगर बड़े से बड़ा खतरा लाया है, तो आदमी को रिस्पांसिबिलिटी से मुक्त कर दिया। दायित्व कुछ उसका है नहीं। वह कहता है, यह स्वभाव है। और जो भी हो रहा है...।
तो पश्चिम में मार्क्स और फ्रायड, इन दो के तालमेल से एक अदभुत स्थिति पैदा हो गई है। मार्क्स ने कह दिया कि जो भी हो रहा है, उसके लिए जिम्मेवार समाज है। और फ्रायड ने कह दिया कि जो भी हो रहा है, उसके लिए जिम्मेवार प्रकृति है। आदमी बाहर हो गया। अगर एक आदमी चोरी कर रहा है, तो जिम्मेवार समाज है। अगर एक आदमी हत्या कर रहा है, जिम्मेवार समाज है। ऐसा मार्क्स ने कह दिया, व्यक्ति के ऊपर कोई जिम्मेवारी नहीं है, सोशल रिस्पांसिबिलिटी है। इसलिए अगर व्यक्ति को बदलना है, तो समाज को बदलो । और जब तक समाज नहीं बदलता, तब तक व्यक्ति जैसा है वैसा रहेगा। इसकी हम उसे लाइसेंस देते हैं।
व्यक्ति बड़ा प्रफुल्लित हुआ। हजारों साल की जो चिंता थी,
उसके दिमाग से गिर गई। ये कृष्ण ने, महावीर ने, बुद्ध ने आदमी को बड़ी भारी चिंता, बड़ी एंग्जाइटी दे दी थी— दे दी थी कि तुम जिम्मेवार हो । चिंता गिर गई । व्यक्ति बड़ा निश्चित हुआ। लेकिन उस निश्चितता में व्यक्ति सिर्फ वही रह गया, जो कोयला था । उससे बाहर की यात्रा बंद हो गई। निश्चित ही, कोयले को हीरा बनना हो, तो चिंता से गुजरना पड़ेगा। लाखों साल की लंबी यात्रा है!
फिर फ्रायड ने लोगों को कह दिया कि समाज भी बदल डालो, तो भी कुछ होने वाला नहीं है। क्योंकि रूस में क्रोध कम हो गया ? कि रूस में अहंकार कम हो गया ? कि रूस का नागरिक किसी भी तरह से आदमियत के तल पर बदल गया है ? कुछ भी नहीं बदला। फ्रायड ने कहा, समाज वगैरह के बदलने का सवाल नहीं है। जिम्मेवार स्वभाव है, नेचर है। जब तक नेचर को न बदल डालो, तब तक कुछ भी नहीं हो सकता।
पर नेचर को कैसे बदलोगे ? स्वभाव को कैसे बदलोगे ? इसलिए आदमी जैसा है वैसा रहेगा। निश्चित मन से उसे जैसा है. वैसा रहना चाहिए ! यह बदलाहट, यह क्रांति, यह भीतरी रूपांतरण, यह धर्म, यह योग, यह समाधि, ये सब बकवास हैं। फ्रायड ने कहा, आदमी जैसा है वैसा ही रहेगा। नाहक की चिंता में | आदमी को डालकर परेशान किया हुआ है। वह जैसा है, है ।
फ्रायड के इस कहने का परिणाम पश्चिम में एक्सप्लोसिव हुआ। आज हिप्पी हैं, बीटनिक हैं, प्रवोस हैं, और दूसरे तरह के सारे लोग हैं, वे यही कह रहे हैं कि यह स्वभाव है। और फ्रायड ने गारंटी दी है कि यह स्वभाव है, और आदमी वही रहेगा जो है । आदमी एक पशु है। थोड़ी-सी बुद्धि है उसके पास, इसलिए बुद्धि से अपने को परेशानी में डाल लेता है । बुद्धि को भी छोड़ दे, तो कोई परेशानी नहीं है।
आदमी फ्रायड ने - अगर फ्रायड को समझें, तो वह यह कहता है, तुम्हारी बुद्धि ही तुम्हारी परेशानी है। उसी की वजह से | तुम झंझट में पड़ जाते हो। जो है, वह है । यह बुद्धि उस पर सोच-विचार करके कहने लगती है, ऐसा नहीं होना चाहिए, वैसा | नहीं होना चाहिए। इससे तुम चिंता पैदा करते हो, पागल हुए जाते हो । छोड़ो यह चिंता ! जो हो, उसके लिए राजी हो जाओ।
ठीक है, निश्चितता आ जाएगी, लेकिन कोयले की निश्चितता होगी। पशु निश्चित है। अगर फ्रायड को मानकर पूरा का पूरा चला जाए, तो आदमी पशु की तरफ गिरता जाएगा — गिरा है। फ्रायड जो कहता है, वह सच है, लेकिन अधूरा सच है। और अधूरे सच
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