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________________ m+ गीता दर्शन भाग-1 AM भीतर शराब छोड़ देते हैं। जब आप क्रोध में होते हैं, तो आपके | बननी शुरू हो जाती है। तब उसके व्यक्तित्व में रूपांतरण, शरीर में...बहुत से मादक रस इकट्ठे हैं आपके शरीर में। अगर वे ट्रांसफार्मेशन के नए द्वार खुलते हैं। तब वह सामान्य मनुष्य से ग्लैंड्स काट दी जाएं, फिर आप क्रोध करके बताएं तो समझा जाए! | ऊपर उठना शुरू होता है। सुपरमैन उसके भीतर पैदा होना शुरू पावलव ने बहुत प्रयोग किए हैं रूस में कुत्तों की उन ग्लैंड्स को होता है, वह अतिमानव होना शुरू हो जाता है। काटकर, जिनकी वजह से कुत्ते भौंकते हैं और भौंकते ही रहते हैं। मनुष्य के लिए क्या स्वाभाविक है, यह इस पर निर्भर करता है और लड़ते ही रहते हैं। बड़ा जानदार कुत्ता है, तीर है बिलकुल, | | कि उसकी चेतना का तल क्या है। प्रत्येक तल पर स्वभाव जरा-सी बात और जूझ जाएगा। उसकी भी ग्लैंड काट देने के बाद, | भिन्न-भिन्न होगा। एक बच्चे के लिए जो स्वाभाविक है, जवान के उसको कितना ही उकसाओ, वह कुछ भी नहीं करता। फिर वह | लिए स्वाभाविक नहीं रह जाता। और एक जवान के लिए जो बैठा रह जाएगा। स्वाभाविक है, बूढ़े के लिए स्वाभाविक नहीं रह जाता। बीमार खतरा भी है इस प्रयोग में। क्योंकि आज नहीं कल, कोई हुकूमत | आदमी के लिए जो स्वाभाविक है. वह स्वस्थ के लिए स्वाभाविक आदमियों के ग्लैंड्स भी काटेगी। जिस हुकूमत को भी विद्रोह और नहीं रह जाता। क्रांति से बचना है, आज नहीं कल, बायोलाजिस्ट की सहायता वह तो स्वभाव कोई फिक्स्ड एनटाइटी नहीं है। स्वभाव कोई ऐसी लेगी। कोई कठिनाई नहीं है। रूस जैसे मुल्क में, जहां हर बच्चे को | | बात नहीं है कि कोई थिर चीज है। यही खूबी है मनुष्य की। एक नर्सरी में पैदा होना है, वहां पैदा होने के साथ ही ग्लैंड्स समाप्त की | पत्थर का स्वभाव थिर है, पत्थर का स्वभाव बिलकुल थिर है। जा सकती हैं। या उन ग्लैंड्स के एंटीडोट्स का इंजेक्शन दिया जा | | पानी का स्वभाव बिलकुल थिर है। इसलिए हम विज्ञान की सकता है। | किताब में लिख सकते हैं कि पानी का यह स्वभाव है, अग्नि का तब आपको पता चलेगा कि स्वाभाविक बिलकुल नहीं है। यह स्वभाव है। स्वाभाविक इसलिए है कि शरीर के साथ अनंत यात्रा में जरूरी रहा मनष्य की खबी ही यही है कि उसका स्वभाव उस पर ही निर्भर है। और शरीर के साथ बहुत-सी चीजें जो कल जरूरी थीं, अब है। और वह अपने स्वभाव को हजार आयाम दे सकता है और जरूरी नहीं रह गई हैं, लेकिन खिंच रही हैं। | विकास कर सकता है। हां, एक स्वभाव जन्म के साथ सबको ' जिस स्थिति में मनुष्य है, अगर हम उसको परम स्थिति मान | | मिलता है। कुछ लोग उसी पर रुक जाते हैं, उसी को स्वभाव का लें, तब तो बिलकुल स्वाभाविक है। लेकिन वह परम स्थिति नहीं | | अंत मान लेते हैं, तब दूसरी बात है। है; उसमें बदलाहट हो सकती है। उसमें बदलाहट दो तरह से हो ___ कभी आपने शायद खयाल न किया हो; अगर एक हीरे को रख सकती है। दें और पास में कोयले के टुकड़े को रख दें, तो आपको कभी शरीर के द्वारा भी बदलाहट हो सकती है। लेकिन शरीर के द्वारा | खयाल न आएगा कि हीरा कोयला ही है। हीरे और कोयले में जो बदलाहट होगी, वह मनुष्य की आत्मा का विकास नहीं, पतन | | बुनियादी तत्व के आधार पर कोई भी भेद नहीं है। असल में कोयला बनेगी। क्योंकि जो आदमी क्रोध कर नहीं सकेगा, इसलिए नहीं ही हजारों-लाखों वर्ष जमीन में दबा रहकर हीरा बन जाता है। करता है, वह आदमी इंपोटेंट हो जाएगा। उस आदमी का कोई लेकिन हीरे और कोयले का स्वभाव एक है? जरा भी एक नहीं है। गौरव नहीं होगा। उसके व्यक्तित्व में चमक नहीं आएगी। उसकी | | कहां कोयला, कहां हीरा! लेकिन बनता है हीरा कोयले से ही; वह आंखों में शान नहीं आएगी। अक्रोध की शांति भी नहीं आएगी, | कोयले की ही आखिरी यात्रा है।। क्योंकि क्रोध कर ही नहीं सकता। जो आदमी बुरा हो ही नहीं तो जहां मनुष्य अपने को पाता है, कोयले जैसा है। और जहां सकता, उसके भले होने का कोई भी अर्थ नहीं होता। वह सिर्फ बुद्ध जैसे, महावीर जैसे, कृष्ण जैसे व्यक्ति अपने को पहुंचाते हैं, असमर्थ होता है, दीन होता है। | हीरे जैसे हैं। फर्क स्वभाव का नहीं है, फर्क विकास का है। लेकिन जो आदमी क्रोध कर सकता है और नहीं करता है, | प्राथमिक स्वभाव हम सबको एक जैसा मिला है-क्रोध है, उसकी चेतना रूपांतरित हो जाती है। क्रोध कर सकता है और नहीं काम है, लोभ है। लेकिन यह अंत नहीं है, प्रारंभ है। और इस करता है, तो वह जो क्रोध की शक्ति है, वह अक्रोध की शक्ति प्रारंभ को ही अगर हम अंत समझ लें, तो यात्रा बंद हो जाती है।
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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