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________________ 90 अर्जुन का जीवन शिखर-युद्ध के ही माध्यम से राजाओं-महाराजाओं के हाथ में ताकत थी। नई दुनिया लोकतंत्र है,। । यह पुण्य और पाप का बहुत ही नया आयाम है। कृत्य से नहीं, वहां एक-एक व्यक्ति के पास शक्ति वितरित कर दी गई है। अब व्यक्ति के अंतस्तल में हुई क्रांति से संबंधित है। प्रत्येक व्यक्ति शक्ति के मामले में ज्यादा समर्थ है, जितना कभी | भी नहीं था। दुनिया अनैतिक होती मालूम पड़ती है, क्योंकि इतने | अधिक लोग शिक्षित कभी नहीं थे और शिक्षा एक शक्ति है। जो | । प्रश्नः भगवान श्री, कुछ मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि लोग शिक्षित थे, उनके नैतिक होने का कभी भरोसा नहीं था। । जैसे भूख, निद्रा, काम आदि स्वाभाविक वृत्तियां हैं, जितनी शिक्षा बढ़ेगी, उतनी अनीति बढ़ जाएगी; जितनी समृद्धि | वैसे ही क्रोध करना भी मानव की स्वाभाविक वृत्ति बढ़ेगी, उतनी अनीति बढ़ जाएगी; जितनी शक्ति बढ़ेगी, उतनी है। यदि ऐसा है, तो जगत में युद्ध भी स्वाभाविक ही अनीति बढ़ जाएगी। मजा यह है कि नीति और अनीति के बहुत | है। जब तक जगत, तब तक युद्ध। क्या युद्ध कभी गहरे में लाभ-हानि ही बैठी है। अटक भी सकती है? इसलिए कृष्ण का यह वचन बड़े गहरे इंप्लिकेशंस का है। वे अर्जन से कहते हैं कि जब तक तो लाभ और हानि में भेद है. तब | तक तू जो भी करेगा, वह पाप है। और जिस दिन तुझे लाभ-हानि वाभाविक किसी बात को कह देना, उसके होने की में कोई भेद नहीं है, उस दिन तू निश्चित हो। फिर तू जो भी करेगा, । अनिवार्यता को सिद्ध कर देना नहीं है। जो भी हमें वह पाप नहीं है। स्वाभाविक मालूम पड़ता है, वह सभी एक तल पर इसलिए सवाल नहीं है यह कि हम चुने कि क्या करणीय है और | स्वाभाविक है, लेकिन तल के परिवर्तन के साथ बदल जाता है। क्या करणीय नहीं है। असली सवाल और गहरे में है और वह यह जैसा मनुष्य है, वैसे मनुष्य के लिए क्रोध बिलकुल स्वाभाविक है। है कि क्या मेरे चित्त में लाभ और हानि का प्रभाव पड़ता है? अगर | लेकिन मनुष्य बुद्ध जैसा मनुष्य भी हो जाता है, और तब क्रोध पड़ता है, तो मैं मंदिर भी बनाऊं तो पाप होगा, उसके बहुत गहरे में | बिलकुल अस्वाभाविक हो जाता है। स्वाभाविक और अस्वाभाविक लाभ-हानि ही होगी। अगर मैं पुण्य भी करूं, तो सिर्फ दिखाई | | व्यक्ति की चेतना के प्रत्येक तल पर बदलते जाते हैं। पड़ेगा, पुण्य हो रहा है; पीछे पाप ही होगा। और सब पुण्य करने ___ एक आदमी शराब पीकर रास्ते पर चल रहा है, तो नाली में गिर के लिए पहले पाप करना जरूरी होता है। मंदिर भी बनाना हो, तो | जाना बिलकुल स्वाभाविक है। लेकिन एक आदमी बिना शराब भी मंदिर बनाने के लायक तो धन इकट्ठा करना ही होता है। | पीए सड़क पर चल रहा है, उसका नाली में गिर जाना बिलकुल सब पुण्यों के लिए पाप करना जरूरी होता है, क्योंकि कोई पुण्य अस्वाभाविक है। लेकिन शराब पीए आदमी में और गैर शराब पीए बिना लाभ के नहीं हो सकते। दान के पहले भी चोरी करनी पड़ती आदमी में आदमियत का कोई भी फर्क नहीं है। फर्क है चेतना का। है। असल में जितना बड़ा चोर, उतना बड़ा दानी हो सकता है। आदमियत का कोई भी फर्क नहीं है। शराब पीया आदमी भी वैसा असल में बड़ा दानी सिर्फ अतीत का चोर है। आज का चोर कल | ही आदमी है, जैसा नहीं शराब पीया हुआ आदमी आदमी है। का दानी हो सकता है। क्योंकि चोरी करके भी करिएगा क्या? एक | | अंतर कहां है? अंतर चेतना का है। शराब पीए हए आदमी के सीमा आ जाती है सेच्युरेशन की, जहां चोरी से फिर कोई लाभ नहीं | | पास उतनी चेतना नहीं है, जो नाली में गिरने से बचा सके। गैर मिलता। फिर उसके बाद दान करने से लाभ मिलना शुरू होता है। | शराब पीए आदमी के पास उतनी चेतना है, जो नाली में गिरने से कृष्ण का वक्तव्य बहुत अदभुत है। वे यह कहते हैं कि तू लाभ | बचाती है। अगर हम क्रोध में गिर जाते हैं, तो वह भी हमारी मूर्छा और हानि का जब तक भेद कर पा रहा है, तब तक तू कितने ही के कारण। और बुद्ध अगर क्रोध में नहीं गिरते, तो वह भी उनकी पुण्य की बातें कर, लेकिन तू जो भी करेगा वह पाप है। और अगर | अमूर्छा के कारण। वह भी फर्क चेतना का ही है। उस फर्क में भी तू यह समझ ले कि लाभ-हानि में कोई फर्क नहीं, जय-पराजय में | | वही फर्क काम कर रहा है, जो शराबी के साथ कर रहा है। हां, कोई फर्क नहीं, जीवन-मृत्यु में कोई फर्क नहीं, तो फिर तू जो भी | | फर्क भीतरी है, इसलिए एकदम से दिखाई नहीं पड़ता। करे, वह पुण्य है। जब आप क्रोध में होते हैं, तब आपके एड्रिनल ग्लैंड्स आपके
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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