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________________ STA गीता दर्शन भाग-1 AM ऐसा व्यक्ति गलत कर सकता है? | वह आपकी दुकान पर आए और हीरे-जवाहरात उठा ले; और कृष्ण का जोर व्यक्ति पर है, कृत्य पर नहीं। और व्यक्ति के पीछे अदृश्य है, पुलिस उसे पकड़ न पाए, समाज उसे अनैतिक कह न जो शर्त है, वह बहुत बड़ी है। वह शर्त यह है कि उसे द्वंद्व समान पाए। वह किसी के घर में रात घुस जाए; दिखाई न पड़े, अदृश्य हो दिखाई पड़ने लगे, उसे प्रकाश और अंधेरा समान दिखाई पड़ने सके। तो प्लेटो ने यह पूछा है कि क्या ऐसा नैतिक आदमी खोजना लगे। यह तो बड़ी ही गहरी समाधि की अवस्था में संभव है। संभव है, जिसके हाथ में अदृश्य होने का ताबीज हो और जो नैतिक ___ इसलिए ऊपर से तो वक्तव्य ऐसा दिखता है कि कृष्ण अर्जुन को | रह जाए? बड़ा कठिन मालूम पड़ता है ऐसा आदमी खोजना। बड़ी स्वच्छंद छूट दे रहे हैं; क्योंकि अब वह कुछ भी कर सकता __ आप भी अगर सोचें कि आपको ताबीज मिल गया, एक पांच है। ऊपर से ऐसा लगता है, इससे तो स्वच्छंदता फलित होगी, अब | मिनट के लिए सोचें कि हाथ में ताबीज है, अब क्या करिएगा! तुम कुछ भी कर सकते हो। लेकिन कृष्ण अर्जुन को गहरे से गहरे | | आपका मन फौरन रास्ते बताएगा कि यह-यह करो-पड़ोस वाले रूपांतरण और ट्रांसफार्मेशन में ले जा रहे हैं, स्वच्छंदता में नहीं। की पत्नी को ले भागो, फलां आदमी की कार ले भागो, फलां की __ असल में जिस व्यक्ति को जय और पराजय समान हैं, वह कभी दुकान में घुस जाओ-फौरन आपका मन आपको सब रास्ते बता भी स्वच्छंद नहीं हो सकता है। उपाय नहीं है, जरूरत नहीं है, | देगा। अभी मिला नहीं ताबीज आपको, लेकिन ताबीज मिल जाए, प्रयोजन नहीं है। लाभ के लिए ही आदमी पाप में प्रवत्त होता है। इसका खयाल भी आपको फौरन बता देगा कि आप क्या-क्या कर हानि से बचने के लिए ही आदमी पाप में प्रवृत्त होता है। | सकते हो-जो कि आप नहीं कर पा रहे हो, क्योंकि अनैतिक होने एक आदमी असत्य बोलता है। दनिया में कोई भी आदमी में हानि मालम पड रही है। और कोई कारण नहीं है। इस जगत में असत्य के लिए असत्य नहीं बोलता है, लाभ के लिए असत्य | जो हमें नैतिक और अनैतिक लोग दिखाई पड़ते हैं, उनके नैतिक बोलता है। अगर दुनिया में सत्य बोलने से लाभ होने लगे, तो और अनैनिक होने का निर्णायक सूत्र लाभ और हानि है। असत्य बोलने वाला मिलेगा ही नहीं। तब बड़ी मुश्किल से खोजना | - कृष्ण नीति को बड़े दूसरे तल पर ले जा रहे हैं, बिलकुल अलग पड़ेगा। कोई त्यागी, महात्यागी असत्य बोले, बात अलग। कोई | डायमेंशन में। वे यह कह रहे हैं, यह सवाल ही नहीं है। इसीलिए बड़ा संकल्पवान तय ही कर ले कि असत्य बोलूंगा, तो बात तो जो शक्तिशाली होता है, वह नीति-अनीति की फिक्र नहीं . लग। लेकिन अगर सत्य के साथ लाभ होता हो, तो असत्य करता। इसलिए अगर चाणक्य से पळे या मैक्यावेली से पछे, तो बोलने वाला नहीं मिलेगा। तब तो इसका मतलब यह हुआ कि | | वे कहेंगे, नीति का कोई मतलब नहीं होता, नीति सिर्फ कमजोरों का असत्य कोई नहीं बोलता, लाभ ही असत्य का मार्ग लेता है। हानि | | बचाव है। शक्तिशाली तो कोई नीति की फिक्र नहीं करता, क्योंकि से बचना ही असत्य का मार्ग लेता है। आदमी चोरी के लिए चोरी | | उसे अनीति से कोई हानि नहीं हो सकती। सिर्फ कमजोर नीति की नहीं करता. लाभ के लिए चोरी करता है। कोई दनिया में चोरी के | फिक्र करता है. क्योंकि अनीति से हानि हो सकती है। मैक्यावेली लिए चोरी नहीं करता। तो सुझाव देता है कि अगर तुम्हारे पास शक्ति है, तो शक्ति का आज तक दुनिया में किसी ने भी कोई पाप लाभ के अतिरिक्त | मतलब ही यह है कि तुम अनैतिक होने के लिए स्वतंत्र हो। अगर और किसी कारण से नहीं किया; या हानि से बचने के लिए किया, कमजोर हो, तो उसका मतलब इतना ही है कि तुम्हें नैतिक होने की दोनों एक ही बात है। पाप भी—और मजे की बात है, पुण्य | मजबूरी है। भी-पुण्य भी आदमी लाभ के लिए करता है या हानि से बचने के नीति और अनीति के गहरे में लाभ-हानि पकड़ में आती हैं। लिए करता है। दुनिया रोज अनैतिक होती जा रही है, ऐसा हमें लगता है। कुल प्लेटो ने एक छोटी-सी कहानी लिखी है। और कहानी है एक | कारण इतना है कि दुनिया में इतने लोग शक्तिशाली कभी नहीं थे, नैतिक प्रश्न उठाने के लिए। कहानी है कि एक आदमी को यदि कोई | जितने आज हैं। कुल कारण इतना है। दुनिया अनैतिक होती हुई ऐसी तरकीब मिल जाए, कोई ऐसा ताबीज मिल जाए, कि वह | दिखाई पड़ती है, क्योंकि दुनिया में इतना धन-इतने अधिक लोगों इनविजिबल हो सके, अदृश्य हो सके–जब चाहे तब अदृश्य हो | | के पास कभी भी नहीं था। जिनके पास था, वे सदा अनैतिक थे। सके तो प्लेटो पूछता है कि क्या ऐसा आदमी नैतिक हो सकेगा? | दुनिया अनैतिक होती मालूम पड़ती है, क्योंकि अतीत की दुनिया में IA
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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