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________________ Pm अर्जुन का जीवन शिखर-युद्ध के ही माध्यम से HAI उपद्रव की बात कह दिए। किसी तरह लोगों को समझाइए! बड़ा कोई अज्ञानी नहीं है। तो बर्नार्ड शा ने कहा कि नहीं! नहीं! मैं क्या कहना चाह रहा था और फिर भी मैं आपसे कहता हूं कि दोनों एक ही बात कहते और मुझसे बड़ी गलती हो गई। मैं कह रहा था कि जहां तक दिखाई हैं। फिर भी मैं आपसे कहता हूं कि वक्तव्य विरोधी हैं, अनुभूति पड़ता है, यहां उपस्थित पचास प्रतिशत लोग बहुत बुद्धिमान मालूम | विरोधी जरा भी नहीं है। फिर क्यों ऐसे वक्तव्य हैं? पड़ते हैं। और लोगों ने तालियां बजाईं कि यह बात ठीक कही गई शब्दों के अर्थ उस परम अनुभूति में बहुत निजी और प्राइवेट हो है। और बर्नार्ड शा ने झुककर अध्यक्ष से कहा कि कन्फर्म हो गया | जाते हैं। एक तो हमारी कामन मार्केट की, बाजार की भाषा है, जहां कि पचास परसेंट यहां बिलकुल गधे हैं। सब शब्द कामन हैं। अगर हम कहते हैं मकान, तो वही मतलब लेकिन इन दो वक्तव्यों में बड़ा फर्क मालूम पड़ता है। बात वही | होता है, जो आपका है। वैसे गहरे में फर्क होता है। लेकिन ऊपर है। शंकर और बुद्ध के बीच भी ऐसा ही मामला है। से काम चलने लायक बराबर होता है। जब मैं कहता हूं मकान, तो बुद्ध को नकारात्मक शब्द प्रिय है। उसके कारण हैं उनके | मुझे मेरा मकान खयाल में होता है और आपको अपना मकान व्यक्तित्व में, साइकोलाजिकल कारण हैं। बुद्ध आ रहे हैं समृद्ध घर खयाल में होता है। अगर हम दोनों मकान की तस्वीर खींचें, तो से, जहां सब पाजिटिव था। महल था, राज्य था, धन था, स्त्रियां फर्क पड़ जाएगा। थीं—सब था। इतना ज्यादा था सब कि बुद्ध के लिए पाजिटिव __ जब मैं कहता हूं कुत्ता, तो मेरा अपना अनुभव है कुत्तों का, वही शब्द में कोई रस नहीं रह गया। इतना सब भरा था कि अब बुद्ध के | | होता है उस शब्द में। आपका अपना अनुभव है, वही होता है। हो लिए रस खाली होने में है। सकता है, कुत्तों से मैंने जो जाना हो, वह प्रीतिपूर्ण हो; और आपने शंकर एक गरीब ब्राह्मण के लडके हैं. जहां कछ भी नहीं है। सिवाय कत्तों से बचपन से डर के अलावा कछ भी न जाना हो। जब एक भिखारी घर से आ रहे हैं. जहां कछ भी नहीं था। जहां झोपडा भी गली से निकले हों, तभी कत्ता भौंका हो। तो जब कत्ता शब्द था, जिसमें कुछ भी नहीं था। शंकर का रस नहीं में नहीं हो सकता, हम बोलते हैं, तो शब्द बिलकुल सामान्य होता है; लेकिन अगर नहीं तो बहुत देखी। शंकर का रस है में है, पाजिटिव में है। | भीतर हम खोजने जाएं, तो आपका कुत्ता और होगा, मेरा कुत्ता और तो शंकर के लिए ब्रह्म जब प्रकट होगा, तो वह होगा—सब है। होगा। लेकिन कामचलाऊ दुनिया है शब्दों की, वहां चल जाता है। और बुद्ध के लिए जब ब्रह्म प्रकट होगा, तो ऐसा होगा-सब वहां चल जाता है। खाली है। यह साइकोलाजिकल टाइप का फर्क है। इसमें अनुभूति ___ जैसे-जैसे गहरी अनुभूति में उतरते हैं जो कि बाजार में नहीं का जरा भी फर्क नहीं है। है, जो कि एकांत में है-वहां मुश्किल बढ़नी शुरू हो जाती है। शंकर और बुद्ध तो बहुत दूर हैं। बुद्ध के वक्त ही महावीर हैं। | जब महावीर कहते हैं आत्मा, तो उनका अपना निजी अर्थ है। यह एक ही साथ, एक ही इलाके में हैं। और कभी-कभी तो ऐसा हुआ | बिलकुल प्राइवेट लैंग्वेज है। महावीर का मतलब होता है आत्मा कि एक ही गांव में दोनों थे। तो बिलकुल कंटेंप्रेरी हैं। टाइप में भी से, जहां अहंकार नहीं है। अहंकार को छोड़कर जो भीतर शेष रह बहुत फर्क नहीं होना चाहिए, क्योंकि महावीर भी शाही घर से आते जाता है, वही आत्मा है। और तब वे कहते हैं कि आत्मा को जान हैं, बुद्ध भी शाही घर से आते हैं। दोनों साथ-साथ हैं। एक बार तो | लेना ज्ञान है। और आत्मा को जान लेने का मार्ग अहंकार का ऐसा हुआ कि एक गांव में आधी धर्मशाला में महावीर ठहरे थे, | | विसर्जन है। अगर हम अहंकार को शून्य कर दें स्वयं से, तो जो आधी में बुद्ध ठहरे थे। फिर भी बातचीत नहीं हो सकी; फिर भी बचता है, महावीर के लिए आत्मा है। मिलना नहीं हुआ। बुद्ध आत्मा से अहंकार का ही मतलब लेते हैं। वे कहते हैं, जहां और बातें बड़ी विपरीत हैं। क्योंकि महावीर कहते हैं, आत्मा को | | तक मैं का स्वर है, और आत्मा का मतलब है मैं, वहां तक अहंकार जान लेना ही ज्ञान है। और बुद्ध कहते हैं, जो आत्मा को मानता है, . | है। तो बुद्ध जहां-जहां आत्मा कहते हैं, वहां-वहां उनका मतलब उससे बड़ा अज्ञानी नहीं है। अब और क्या विरोध हो सकता है! ता है अहंकार। तलवारें सीधी खिंची हैं। महावीर कहते हैं, आत्मा को जान लेना ही बुद्ध ने जिस शब्द का उपयोग किया है आत्मा के लिए, वह है ज्ञान है। और बुद्ध कहते हैं, आत्मा? आत्मा को मानने वाले से अत्ता। अत्ता बहुत बढ़िया शब्द है। आत्मा में भी वह बात नहीं है, 173
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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