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________________ Sam गीता दर्शन भाग-1 m फिर वे एक ही बगीचे से होकर लौटें और गांव में आकर अगर | | आ जाती है तो चलते नहीं, जमीन गीली हो तो पैर नहीं उठाते, कि हम उनसे पूछे कि क्या देखा? तो बगीचा एक था, जहां वे गए थे, | कहीं कोई कीड़ा न दब जाए। और कहां नाचते हुए पैर मीरा के! लेकिन अभिव्यक्ति भिन्न होगी। अभिव्यक्ति में चुनाव होगा। जो बड़ा विपरीत है। महावीर कहेंगे, बहुत हिंसा हुई जा रही है। मीरा जिसने देखा होगा या जो जिसको पकड़ा होगा या जो जिसको प्रकट कहेगी, नाच ही नहीं रहे, तो कहां जाना उसको! क्योंकि उसे कर सकता होगा, वह वैसे ही प्रकट करेगा। जानकर जो नहीं नाचा, तो जाना ही कहां! मीरा भी उस जगत में गई है उस अनुभूति के, लेकिन लौटकर फिर शंकर जैसा व्यक्ति है, वह भी जानकर आता है वहां से। नाचने लगी। महावीर की नाचने की कल्पना भी नहीं कर सकते। | तो वह कहता है कि एक ब्रह्म ही सत्य है, बाकी सब माया है। बुद्ध, सोच भी नहीं सकते, कि महावीर और नाचें। उनके व्यक्तित्व में | | जैसा व्यक्ति है, जो कहता है, कोई ब्रह्म-ब्रह्म नहीं है; कुछ नहीं है, नाचने की कोई जगह ही नहीं है। महावीर भी उस जगत से लौटे हैं, | शून्य है सब। बड़ी उलटी बातें कहते हैं, तो विवाद दिखाई पड़ता पर वे नाचते नहीं। उस जगत की जो खबर वे लाए हैं, वह खबर है, बड़ा विरोध दिखाई पड़ता है। अपने ही ढंग से प्रकट करेंगे। उनकी खबर उनकी अहिंसा से प्रकट शंकर और बुद्ध से ज्यादा विरोधी आदमी खोजना मुश्किल है। होनी शुरू होती है। उनके शील से, उनके चरित्र से, उनके | क्योंकि एक कहता है, पाजिटिव है सब, विधायक है सब; और उठने-बैठने से-छोटी-छोटी चीज से प्रकट होती है कि वे अद्वैत | | एक कहता है, निगेटिव है सब, नकारात्मक है सब। लेकिन वह भी को जानकर लौटे हैं। | व्यक्तित्व की एंफेसिस है, वह भी व्यक्तित्व का ही प्रभाव है। जो रात महावीर एक ही करवट सोते हैं, करवट नहीं बदलते। कोई | जानकर वे लौटे हैं, वह करीब-करीब ऐसा है जैसे कि कोई गिलास पूछता है महावीर से कि आप रातभर एक ही करवट क्यों सोते हैं? | | आधा भरा रखा हो और दो आदमी उसे देखकर आए हों। और एक तो वे कहते हैं कि कहीं करवट बदलूं और कोई कीड़ा-मकोड़ा आदमी आकर कहे कि गिलास आधा खाली है, और एक आदमी दबकर दुख पाए। इसलिए एक ही करवट, दि लीस्ट जो पासिबल कहे कि झूठ, गिलास आधा भरा है। एक खाली पर जोर दे और है, बिलकुल कम से कम जो संभव है, वह यह। एक करवट तो | एक भरे पर जोर दे। और विवाद निश्चित हो जाने वाला है, क्योंकि सोना ही पड़ेगा, तो एक करवट ही सोए रहते हैं। रातभर पैर भी भरा और खाली बड़े विपरीत शब्द हैं। बिलकुल हो जाने वाला है। नहीं हिलाते कि रात के अंधेरे में कोई दब जाए, कोई दुख पाए। बर्नार्ड शा के संबंध में मैंने सुना है कि वह अमेरिका गया अब इस व्यक्ति की अद्वैत की जो अनुभूति है, वह अहिंसा से बहुत-बहुत निमंत्रणों के बाद। तब वह कहता रहा कि अमेरिका प्रकट हो रही है। यह यही कह रहा है कि एक ही है। क्योंकि जब बड़ा नासमझ, ईडियाटिक मुल्क है; मैं जाता ही नहीं, ऐसे मूढ़ों के तक कीड़ा-मकोड़ा मैं ही नहीं हूं, तब तक उसके लिए इतनी चिंता | बीच जाकर मैं क्या करूंगा। इधर वह गाली देता रहा, उधर पैदा नहीं होती। लेकिन यह महावीर का अपना ढंग है, यह उनके अमेरिका में आकर्षण बढ़ता गया। जो गाली देता है, उसके प्रति व्यक्तित्व से आ रहा है। आकर्षण तो बढ़ ही जाता है। बहुत निमंत्रण थे, तो बर्नार्ड शा गया। - मीरा नाच रही है। उसने जो जाना है, वह उसके भीतर नाच की | जिस जगह उसे उतारा गया, वहां इतना भीड़-भड़क्का हो गया और तरह अभिव्यक्त हो रहा है। वह नाच ही सकती है। वह जो खुशी, | | इतना खतरा था कि कोई झगड़ा न हो जाए, तो उसे चोरी से पहले वह जो आनंद उसके भीतर भर गया है, अब कोई शब्द उसे प्रकट ही दूसरी जगह उतारकर ले जाया गया। नहीं कर सकते। वह तो उसके घंघरुओं से प्रकट होगा। वह उसी और पहली ही सभा में वह बोला, तो उसने उपद्रव शरू किया। अद्वैत को, पद-धुंघरू-बांध खबर लाएगी। वह पहली ही सभा में बोला, तो उसने कहा कि जहां तक मैं देख अब अगर हम महावीर और मीरा को आमने-सामने करें, तो | पा रहा हूं, यहां मौजूद कम से कम पचास प्रतिशत आदमी हम कहेंगे, इनकी अनुभूतियां अलग होनी चाहिए। कहां बजता | | बिलकुल महामूर्ख हैं-सभा में उसने कहा-यहां मैं देख रहा हूं, हआ घंघर, कहां रात भी करवट न लेता हआ आदमी। कहां नाचती तो कम से कम फिफ्टी परसेंट आदमी बिलकल महामढ हैं। जो हुई मीरा के न मालूम कितने पैर पृथ्वी पर पड़े और कहां महावीर अध्यक्ष था, वह घबड़ा गया और लोग चिल्लाने लगे कि शर्म! कि एक-एक पैर को सम्हालकर रखते हैं, फूंककर रखते हैं। वर्षा शर्म! वापस लो अपने शब्द! अध्यक्ष ने कहा कि आप शुरू से ही
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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