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________________ - गीता दर्शन भाग-1 AM चिंता हो, जहां जीत अनिर्णीत हो, जहां हार की उतनी ही संभावना मैं झांकता हूं, तो मुझे लगता है कि वह आदमी किसी भीतरी हो, जितनी जीत की है, तो ही उस चुनौती के दबाव में, उस चुनौती विश्वास से कह रहा है। और सप्ताह में एक दिन ऐसे आदमी की की पीड़ा में, उस चुनौती के प्रसव में अर्जुन का फूल खिल सकता आंख में झांक लेना उचित है, जिसे भीतरी कोई स्वर्ग का अनुभव है और अर्जुन अपने शिखर को छू सकता है। हो रहा है। वह जो कहता है, उसमें मुझे कोई भरोसा नहीं है कि वह __इसलिए कृष्ण इतना आग्रह कर रहे हैं कि सब खो देगा! स्वर्ग आदमी जो कह रहा है, वह ठीक हो सकता है। उसके सिद्धांतों को का क्षण तुझे उपलब्ध हुआ है, उसे तू खो देगा—इस जगत में भी, मैं तर्कयुक्त नहीं मानता। लेकिन फिर भी सप्ताह में मैं एक ऐसे उस जगत में भी। उस जगत का मतलब, मृत्यु के बाद नहीं-बाहर आदमी की आंख में झांक लेना चाहता हूं, जो भीतर आश्वस्त है। के जगत में भी, भीतर के भी जगत में। उसकी सुगंध! और ध्यान रहे, बाहर के जगत में तभी स्वर्ग मिलता है, जब यह बक ने एक दिन, चर्च में जो फकीर बोलता था, उससे पूछा भीतर के जगत में स्वर्ग मिलता है। यह असंभव है कि भीतर के कि मैं तुमसे पूछना चाहता हूं। उस दिन उसने बाइबिल के एक जगत में नर्क हो और बाहर के जगत में स्वर्ग मिल जाए। हां, यह वचन की व्याख्या करते हुए कहा कि भले लोग, जो परमात्मा में संभव है कि बाहर के जगत में नर्क हो, तो भी भीतर के जगत में | विश्वास करते हैं, वे स्वर्ग को उपलब्ध होते हैं। बक ने उससे पूछा स्वर्ग मिल जाए। और यह बड़े मजे की बात है कि अगर भीतर के | | कि आप कहते हैं, भले लोग, जो परमात्मा में विश्वास करते हैं, वे जगत में स्वर्ग मिल जाए, तो बाहर का नर्क भी नर्क नहीं मालूम | स्वर्ग को उपलब्ध होते हैं। तो मैं पूछना चाहता हूं कि बुरे लोग, जो पड़ता है। और बाहर के जगत में स्वर्ग मिल जाए और भीतर के | परमात्मा में विश्वास करते हैं, वे स्वर्ग को उपलब्ध होते हैं या नहीं? जगत में नर्क हो, तो बाहर का स्वर्ग भी स्वर्ग नहीं मालूम पड़ता है। और यह भी पूछना चाहता हूं कि भले लोग, जो परमात्मा में हम जीते हैं भीतर से, हमारे जीने के सारे गहरे आधार भीतर हैं। विश्वास नहीं करते हैं, वे स्वर्ग को उपलब्ध होते हैं या नहीं? इसलिए जो भीतर है, वही बाहर फैल जाता है। भीतर सदा ही बाहर · वह फकीर साधारण फकीर नहीं था, ईमानदार आदमी था। उसने को जीत लेता है, ओवरपावर कर लेता है। इसलिए जब आपको | | कहा, उत्तर देना मुश्किल है, जब तक कि मैं परमात्मा से न पूछ लूं। बाहर नर्क दिखाई पड़े, तो बहुत खोज करना। पाएंगे कि भीतर नर्क | क्योंकि इसका मुझे कुछ भी पता नहीं। रुको, सात दिन मैं प्रार्थना , है, बाहर सिर्फ रिफ्लेक्शन है, बाहर सिर्फ प्रतिफलन है। और जब | करूं, फिर उत्तर दे सकता हूं। क्योंकि तुमने मुझे मुश्किल में डाल बाहर स्वर्ग दिखाई पड़े, तब भी भीतर देखना। तो पाएंगे, भीतर | दिया। अगर मैं यह कहूं कि भले लोग, जो परमात्मा में विश्वास स्वर्ग है, बाहर सिर्फ प्रतिफलन है। | नहीं करते, नर्क जाते हैं, तो भलाई बेमानी हो जाती है, मीनिंगलेस इसलिए जो बुद्धिमान हैं, वे बाहर के नर्क को स्वर्ग बनाने में | | हो जाती है। और अगर मैं यह कहूं कि भले लोग, जो परमात्मा में जीवन नष्ट नहीं कर देते। वे भीतर के नर्क को स्वर्ग बनाने का श्रम | | विश्वास नहीं करते हैं, वे भी स्वर्ग को उपलब्ध हो जाते हैं, तो करते हैं। और एक बार भीतर का नर्क स्वर्ग बन जाए. तो बाहर | परमात्मा बेमानी हो जाता है। उसमें विश्वास का कोई अर्थ नहीं कोई नर्क होता ही नहीं। रहता। तो रुको। मैंने सना है कि बक, इंग्लैंड का एक बहत बडा विचारक था लेकिन वह फकीर सात दिन सो नहीं सका। सब तरह की वह ऐसे नास्तिक था, लेकिन चर्च जाता था। मित्रों ने कई बार उससे | प्रार्थनाएं की, लेकिन कोई उत्तर न मिला। कहा भी कि तुम चर्च किसलिए जाते हो? क्योंकि तुम नास्तिक हो! | सातवां दिन आ गया। सुबह ही आठ बजे बक मौजूद हो जाएगा ठीक ऐसी ही बात कभी डेविड ह्यूम से भी किसी ने पूछी थी। | और पूछेगा कि बोलो! तो वह पांच बजे ही चर्च में चला गया, हाथ डेविड ह्यूम भी एक नास्तिक था, बड़े से बड़ा इस जगत में जो हुआ, | | जोड़कर बैठकर प्रार्थना करता रहा। प्रार्थना करते-करते उसे नींद कीमती से कीमती। वह भी लेकिन रविवार को चर्च जरूर जाता था। | लग गई। उसने एक स्वप्न देखा। वही जो सात दिन से उसके प्राणों तो ह्यूम ने जो उत्तर दिया, वही बक ने भी उत्तर दिया था। में चल रहा था, वही स्वप्न बन गया। .. बक ने कहा कि चर्च में जो कहा जाता है, उसमें मेरा कोई उसने स्वप्न देखा कि वह ट्रेन में बैठा हुआ है, तेजी से ट्रेन जा विश्वास नहीं। लेकिन वह जो आदमी कहता है, उसकी आंखों में रही है। उसने लोगों से पूछा, यह ट्रेन कहां जा रही है? उन्होंने कहा,
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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