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________________ अर्जुन का जीवन शिखर - युद्ध के ही माध्यम से 4 हूं और वह नहीं होने की इच्छा, जो कि मैं हूं – इन दोनों के बीच में ही नर्क उपस्थित हो जाता । सार्त्र भी कृष्ण से राजी होगा। अर्जुन ऐसे ही नर्क में खड़ा हो गया है। जो है, वह न होने की इच्छा पैदा हुई है उसे; जो नहीं है, वह होने की इच्छा पैदा हुई है। वह एक ऐसे असंभव तनाव में खड़ा हो गया है, जिसमें प्रवेश तो बहुत आसान, लेकिन लौटना बहुत मुश्किल है। जिंदगी में किसी भी चीज से लौटना बहुत मुश्किल है । जाना बहुत आसान है, लौटना सदा मुश्किल है। और स्वयं के धर्म से जाना बहुत आसान है, क्योंकि स्वधर्म से विपरीत जाना सदा उतार है। वहां हमें कुछ भी नहीं करना पड़ता, सिर्फ हम अपने को छोड़ दें, तो हम उतर जाते हैं। स्वधर्म को पाना चढ़ाव है । उतर जाना बहुत आसान है, चढ़ना बहुत कठिन हो जाता है। पश्चिम का इस समय का एक बहुत कीमती मनोवैज्ञानिक अभी-अभी गुजरा है। उसका नाम था अब्राहम मैसलो | अब्राहम मैसो के पूरे जीवन की खोज एक छोटे-से शब्द में समा जाती है। और वह शब्द है, पीक एक्सपीरिएंस । वह शब्द है, शिखर का अनुभव। अब्राहम मैसलो का कहना है कि व्यक्ति के जीवन में स्वर्ग का क्षण वही है, जो उसके व्यक्तित्व के शिखर का क्षण है। जिस क्षण कोई व्यक्ति जो हो सकता है, उसके होने के शिखर पर पहुंच जाता है, जिसके आगे कोई उपाय नहीं बचता, 1 जिसके आगे कोई मार्ग नहीं बचता, जिसके आगे कोई ऊंचाई नहीं बचती, जब भी कोई व्यक्ति अपने भीतर के पीक को छू लेता है, तभी समाधि, एक्सटैसी अनुभव करता है। निश्चित ही, जो पीक एक्सपीरिएंस अर्जुन के लिए होगा, वही पीक एक्सपीरिएंस बुद्ध के लिए नहीं हो सकता। जो पीक एक्सपीरिएंस, शिखर की अनुभूति बुद्ध की है, वही अनुभूति जीसस के लिए नहीं हो सकती। लेकिन एक बात ध्यान रख लें, जब हम कहते हैं कि वही अनुभूति नहीं हो सकती, तो हमारा प्रयोजन व्यक्ति से है। अर्जुन और मार्ग से उस अनुभूति पर पहुंचेगा; वह क्षत्रिय है, वह क्षत्रिय के मार्ग से पहुंचेगा। हो सकता है, जब दो तलवारें खिंच जाएंगी, और जीवन और मृत्यु साथ-साथ खड़े हो जाएंगे, श्वास ठहर जाएगी और पलभर के लिए सब रुक जाएगा जगत, और पलभर के लिए निर्णय न रह जाएगा कि जीवन में अब एक पल और है—उस तलवार की धार पर, उस चुनौती के क्षण में अर्जुन अपनी पीक पर होगा, वह अपने क्षत्रिय होने के आखिरी शिखर पर होगा। जहां जीवन और मृत्यु विकल्प होंगे, जहां क्षण में सब तय होता होगा — उस डिसीसिव मोमेंट में वह अपने पूरे शिखर पर पहुंच जाएगा। यह जो शिखर की अनुभूति है, बुद्ध को किसी और मार्ग से मिलेगी, महावीर को किसी और मार्ग से मिलेगी, मोहम्मद को किसी और मार्ग से मिलेगी । मार्ग भिन्न होंगे, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति जब अपने शिखर पर पहुंचता है, तो शिखर की जो भीतरी अनुभूति है, वह एक होगी। इसलिए कृष्ण अर्जुन को कह रहे हैं, एक अवसर मिला है और अवसर बार-बार नहीं मिलते। खोए अवसरों के लिए कभी-कभी जन्मों प्रतीक्षा करनी पड़ती है। मार्गन से किसी ने एक दिन पूछा - वह अमेरिका का बड़ा करोड़पति था, अरबपति था - उससे पूछा कि आपको जिंदगी में इतनी सफलता कैसे मिली? तो मार्गन ने कहा, मैंने कभी कोई अवसर नहीं खोया । जब भी अवसर आया, मैंने छलांग लगाई और उसे पकड़ा। अपने को खोने को मैं राजी रहा, लेकिन अवसर को खोने को राजी नहीं रहा । उस आदमी ने पूछा, तो हम कैसे पहचानेंगे कि अवसर आ गया ! और जब तक हम पहचानेंगे, तब तक कहीं ऐसा न हो कि अवसर निकल जाए! कहीं ऐसा न हो कि हम पहचानें और छलांग लगाएं, तब तक अवसर जा चुका हो ! क्योंकि क्षण तो क्षण नहीं रुकता। आया नहीं कि गया नहीं । पहचानते - पहचानते चला जाता है। तो आप कैसे पहचानते थे और छलांग लगाते थे ? मार्गन ने जो उत्तर दिया, 'वह बहुत हैरानी का है। मार्गन ने कहा कि मैं कभी रुका ही नहीं; मैं छलांग लगाता ही रहा । अवसर आ गया तो छलांग काम कर गई, अवसर नहीं आया तो भी मैं छलांग | लगाता रहा। क्योंकि इतना मौका नहीं था कि मैं प्रतीक्षा करूं, अवसर को पहचानूं, फिर छलांग लगाऊं । मैं छलांग लगाता ही रहा। अवसर का घोड़ा नीचे आ गया, तो हम सवार थे; लेकिन हमारी छलांग जारी थी, जब घोड़ा नहीं था, तब भी। कृष्ण के लिए जो बड़ी से बड़ी चिंता अर्जुन की तरफ से दिखाई पड़ती है, वह यही दिखाई पड़ती है, एक विराट अवसर... 1 अर्जुन को महाभारत जैसा अवसर न मिले, तो अर्जुन का फूल खिल नहीं सकता। कोई छोटी-मोटी लड़ाई में नहीं खिल सकता उसका फूल। जहां जीत सुनिश्चित हो, वहां अर्जुन का फूल नहीं खिल सकता। जहां जीत पक्की हो, वहां अर्जुन का फूल नहीं खिल सकता। जहां जीत निश्चित हो, वहां अर्जुन का फूल नहीं खिल सकता। जहां जीत 169
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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