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- गीता दर्शन भाग-1
उनको पृथ्वी गोल नहीं है, ऐसा पता रहा हो, नहीं कहा जा सकता। सकती है। लेकिन हमारे पास ऐसी कोई प्रयोगशाला थी, इसकी नहीं तो भूगोल शब्द कैसे गढ़ेंगे! लेकिन आदमी के पास जमीन खबर नहीं मिलती। यह सर्पगंधा की खबर, आमंत्रित आत्माओं से गोल है-इसको जानने के साधन बहुत मुश्किल मालूम पड़ते हैं। | मिली हुई खबर है। और बहुत देर नहीं है कि हमें आमंत्रित सिवाय इसके कि यह संदेश कहीं से उपलब्ध हुआ हो। | आत्माओं के उपयोग फिर खोजने पड़ेंगे।। __ आदमी के ज्ञान में बहुत-सी बातें हैं, जिनकी कि प्रयोगशालाएं इसलिए आज जब आप वेद को पढ़ें, तो कपोल-कल्पना हो नहीं थीं, जिनका कि कोई उपाय नहीं था। जैसे कि लुकमान के | जाती है, झूठ मालूम पड़ता है कि क्या बातचीत कर रहे हैं ये-इंद्र संबंध में कथा है। और अब तो वैज्ञानिक को भी संदेह होने लगा | आओ, वरुण आओ, फलां आओ, ढिका आओ। और इस तरह है कि कथा ठीक होनी चाहिए।
| | बात कर रहे हैं कि जैसे सच में आ रहे हों। और फिर इंद्र को भेंट लुकमान के संबंध में कथा है कि उसने पौधों से जाकर पूछा कि | भी कर रहे हैं, इंद्र से प्रार्थना भी कर रहे हैं। और इतने बड़े वेद में बता दो, तुम किस बीमारी में काम आ सकते हो? पौधे बताते हुए | कहीं भी एक जगह कोई ऐसी बात नहीं मालूम पड़ती कि कोई एक मालूम नहीं पड़ते। लेकिन दूसरी बात भी मुश्किल मालूम पड़ती है भी आदमी शक कर रहा हो कि क्या पागलपन की बात कर रहे हो! कि लाखों पौधों के संबंध में लुकमान ने जो खबर दी है, वह इतनी | | किससे बात कर रहे हो! देवता, वेद के समय में बिलकुल जमीन सही है, कि या तो लुकमान की उम्र लाखों साल रही हो और पर चलते हुए मालूम पड़ते हैं। लुकमान के पास आज से भी ज्यादा विकसित फार्मेसी की निमंत्रण की विधि थी। सब हवन, यज्ञ बहुत गहरे में निमंत्रण की प्रयोगशालाएं रही हों, तब वह जांच कर पाए कि कौन-सा पौधा विधियां हैं, इनविटेशंस हैं, इनवोकेशंस हैं। उसकी बात तो कहीं किस बीमारी में काम आता है। लेकिन लुकमान की उम्र लाखों आगे होगी, तो बात कर लेंगे। साल नहीं है। और लुकमान के पास कोई प्रयोगशाला की खबर लेकिन यह जो आपने पूछा, तो सूक्ष्म शरीर ही स्थूल शरीर से नहीं है। लुकमान तो अपना झोला लिए जंगलों में घूम रहा है और मुक्त रहकर प्रेत और देव दिखाई पड़ता है। पौधों से पूछ रहा है। पौधे बता सकेंगे?
मेरी अपनी समझ और है। पौधे तो नहीं बता सकते, लेकिन शुभ आत्माएं पौधों के संबंध में खबर दे सकती हैं। बीच में मीडिएटर अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्। कोई आत्मा काम कर रही है, जो पौधों की बाबत खबर दे सकती तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि । । २६ ।। है कि यह पौधा इस काम में आ जाएगा।
और यदि तू इसको सदा जन्मने और सदा मरने वाला माने, अब यह बड़े मजे की बात है, जैसे कि हमारे मुल्क में आयुर्वेद तो भी हे अर्जुन, इस प्रकार शोक करना योग्य नहीं है। की सारी खोज बहुत गहरे में प्रयोगात्मक नहीं है, बहुत गहरे में देवताओं के द्वारा दी गई सूचनाओं पर निर्भर है। इसलिए आयुर्वेद की कोई दवा आज भी प्रयोगशाला में सिद्ध होती है कि ठीक है। कष्ण का यह वचन बहुत अदभुत है। यह कृष्ण अपनी लेकिन हमारे पास कभी कोई बड़ी प्रयोगशाला नहीं थी, जिसमें पृ० तरफ से नहीं बोलते, यह अर्जुन की मजबूरी देखकर हमने उसको सिद्ध किया हो।
८ कहते हैं। कृष्ण कहते हैं, लेकिन तुम कैसे समझ जैसे सर्पगंधा है। अब आज हमको पता चला कि वह सच में | | पाओगे कि आत्मा अमर है? तुम कैसे जान पाओगे इस क्षण में कि ही, सुश्रुत से लेकर अब तक सर्पगंधा के लिए जो खयाल था, वह | आत्मा अमर है? छोड़ो, तुम यही मान लो, जैसा कि तुम्हें मानना ठीक साबित हुआ। लेकिन अब पश्चिम में सर्पेटीना-सर्पगंधा | सुगम होगा कि आत्मा मर जाती है, सब समाप्त हो जाता है। लेकिन का रूप है वह–अब वह भारी उपयोग की चीज हो गई है। पागलों | | महाबाहो! कृष्ण कहते हैं अर्जुन से, अगर ऐसा ही तुम मानते हो, के इलाज के लिए अनिवार्य चीज हो गई है। लेकिन यह सर्पगंधा तब भी मृत्यु के लिए सोच करना व्यर्थ हो जाता है। जो मिट ही जाता का पता कैसे चला होगा? क्योंकि आज तो पश्चिम के पास | है, उसको मिटाने में इतनी चिंता क्या है? जो मिट ही जाएगा-तुम प्रयोगशाला है, जिसमें सर्पगंधा की केमिकल एनालिसिस हो नहीं मिटाओगे तो भी मिट जाएगा-उसको मिटाने में इतने परेशान
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