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________________ - मरणधर्मा शरीर और अमृत, अरूप आत्मा HAR मैं एक छोटी-सी घटना से समझाने की कोशिश करूं। ने कहा, मुझे याद ही न रहा, क्योंकि जब से यह दिखाई पड़ने लगा कबीर के घर बहत भक्त आते हैं। गीत. भजन...। और जब | कि सभी एक हैं, तब से कुछ अपना न रहा, कुछ पराया न रहा। जाने लगते हैं, तो कबीर कहते हैं, भोजन करते जाएं। फिर कबीर | वह दूसरे का है, तब चोरी पाप है। लेकिन वह याद ही न रहा, तूने का बेटा और पत्नी परेशान हो गए। बेटे ने एक दिन कहा कि अब | ठीक याद दिला दिया। लेकिन तूने पहले याद क्यों न दिलाया! बरदाश्त के बाहर है। हम कब तक कर्ज लेते जाएं! यह हम कहां कबीर कह रहे हैं, वह दूसरे का है, तब तक तो चोरी पाप है। से लोगों को खिलाएं! अब आप कहना बंद करें। लेकिन अगर दूसरे की कोई चीज नहीं रह गई, अगर सभी एक का कबीर ने कहा कि मुझे याद ही नहीं रहती; जब घर कोई मेहमान ही है; और उस तरफ जो श्वास चलती है, वह भी मेरी है; और इस आता है, तो मुझे खयाल ही नहीं रहता कि घर में कुछ नहीं है। और तरफ जो श्वास चलती है, वह भी मेरी है तो इस तल पर चोरी घर कोई आया हो तो कैसे खयाल रखा जाए कि घर में कुछ नहीं | | के पाप होने का कोई अर्थ नहीं रह जाता। लेकिन यह अस्तित्व के है! तो मैं कहे ही जाता हूं कि भोजन करते जाएं। फिर तो बेटे ने तल की बात हुई। यह ब्रह्मज्ञान में प्रविष्ट व्यक्ति की बात हुई। कहा, तो क्या हम चोरी करने लगें? व्यंग्य में कहा, क्रोध में कहा तो कबीर ने कहा, अगर न जगा सकता हो तो वापस लौटा दे। कि क्या हम चोरी करने लगें! कबीर ने कहा कि अरे, तुझे यह पहले क्योंकि अपने को ही अगर हम खबर करने में डरते हैं, तो चीज फिर खयाल क्यों न आया! वह बेटा तो हैरान हुआ, क्योंकि उसे आशा | | अपनी नहीं है। तो फिर वापस लौटा दे। किससे बचकर ले जाना है? न थी कि कबीर और ऐसा कहेंगे। तो उसने कहा. तो फिर आज मैं | अब यह बहुत दो तलों की बात हो गई, यह दो एक्झिस्टेंस की चोरी करने जाऊं? वह बेटा भी साधारण नहीं था; कबीर का ही | बात हो गई। इसे ठीक से खयाल में ले लें। एक तो अस्तित्व का बेटा था। मैं आज चोरी करने जाऊं? कबीर ने कहा, बिलकुल। तो जगत है, जहां सभी कुछ परमात्मा का है, वहां चोरी नहीं हो बेटे ने और परीक्षा लेने के लिए कहा, आप भी चलिएगा? कबीर सकती। कबीर उसी जगत में जी रहे हैं। एक मनोभावों का जगत ने कहा, चला चलूंगा। | है, जहां दूसरा दुसरा है, में में है; मेरी चीज मेरी है. दसरे की चीज रात हो गई, बेटे ने कहा, चलें। बेटा भी आखिरी तर्क की सीमा | दूसरे की है। वहां चोरी होती है, हो रही है, हो सकती है। तक देखना चाहता था कि बात क्या है, क्या कबीर चोरी करने को ___ जब तक दूसरे की चीज दूसरे की है, तब तक चोरी पाप है। चोरी राजी हैं? कबीर-और चोरी करने को राजी! बेटे की समझ के घटित होती नहीं, सिर्फ चीजें यहां से वहां रखी जाती हैं। चोरी की बिलकुल बाहर है। अर्जुन की समझ के भी बाहर है कि कृष्ण हिंसा क्या घटना घट सकती है इस जमीन पर! कल न मैं रहूंगा, न आप करने को राजी हैं। | रहेंगे। मेरी चीजें भी मेरी नहीं रह जाएंगी, आपकी चीजें भी आपकी ले गया कबीर का बेटा कमाल कबीर को। फिर जाकर दीवार | | नहीं रह जाएंगी। चीजें यहां पड़ी हैं-इस घर में या उस घर में, क्या तोड़ी। दीवार तोड़कर बीच-बीच में देखता भी रहा। कबीर उससे | फर्क पड़ेगा! कहते हैं, इतना घबड़ाता क्यों है? इतना कंपता क्यों है? उसने __ अस्तित्व के तल पर चोरी नहीं घटती, भाव के तल पर चोरी दीवार भी तोड़ ली। फिर उसने कहा, मैं भीतर जाऊं? कबीर ने कहा | घटती है। अगर हिटलर यह कह सके कि मरने में हिंसा होती ही कि जरूर जा। वह भीतर भी गया। वह एक गेहूं का बोरा घसीटकर | | नहीं, तो हिटलर को फिर अपने आस-पास संतरी खड़े करने की भी लाया। उसने सोचा, अब रोकेंगे, अब रोकेंगे। अब तो बहुत हो | जरूरत नहीं। फिर वह आउश्वित्ज में मारे लोगों को, तो हमें कोई गया, हद्द हो गई। कबीर ने बोरा भी बाहर निकलवा लिया। फिर | | एतराज न होगा। लेकिन खुद को बचाने के लिए जो तत्पर है, दूसरे बेटे से कहा, भीतर जाकर, घर में लोग सोए होंगे, उनको कह | को मारने को जो आतुर है, वह जानता है, मानता है कि हिंसा होती आओ कि तुम्हारे घर चोरी हो गई है, हम एक बोरा ले जा रहे हैं। है। खुद को जो बचा रहा है। तो उस बेटे ने कहा, यह किस प्रकार की चोरी है? चोरी कहीं बताई ___ अगर कृष्ण अर्जुन से यह कहें कि ये कोई मरने वाले नहीं हैं, जाती है? तो कबीर ने कहा कि जो चोरी बताई नहीं जा सकती, वह | | बेफिक्री से मार, लेकिन तू मरने वाला है, जरा अपने को सम्हालना, फिर पाप हो गई। खबर करो! तो बेटे ने कहा कि मैं इतनी देर से बचाना। तब फिर बेईमानी हो जाएगी। लेकिन कृष्ण उससे कहते हैं परेशान ही था कि यह किस तरह आप चोरी करवा रहे हैं! कबीर कि न कोई मरता है, न कोई मारा जाता है। अगर ये भी तुझे मार 121
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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