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mगीता दर्शन भाग-1 AM
डालें, तो भी कुछ मरता नहीं। अगर तू भी इन्हें मार डाले, तो भी | | हो जाता है, कृष्ण को ही खींचकर हम अपने तल पर ले आते हैं। कुछ मरता नहीं। वे बहुत अस्तित्व की गहरी बात कह रहे हैं। इतना | तब हम ऐट ईज़, सुविधा में हो जाते हैं। तब हम कह पाते हैं, सब स्मरण रखना जरूरी है।
| माया है; सब माया है; बेईमानी कर पाते हैं, कह पाते हैं, माया है। हिरोशिमा में हिंसा हुई, क्योंकि जिन्होंने बम पटका, वे मारने के | अब बड़े मजे की बात है कि जिस आदमी को माया दिखाई पड़ रही लिए पटके थे। हिटलर ने हिंसा की, क्योंकि वह मानकर चल रहा | | है, वह आदमी बेईमानी करने में इतना रसलिप्त हो सकता है? है कि दूसरे को मार रहे हैं। मरता है, नहीं मरता है, यह बहुत दूसरी एक मित्र आए। कहने लगे, जब से ध्यान करने लगा हूं, तो मन बात है। इससे हिटलर का कोई लेना-देना नहीं है। जब तक मैं सरल हो गया है। एक आदमी धोखा देकर मेरा झोला ले गया। ऐसे अपने को बचाने को उत्सुक हूं, तब तक मैं दूसरे को मारने को | | तो सब माया है-उन्होंने कहा-ऐसे तो सब माया है, लेकिन वह सिद्धांत नहीं बना सकता। जब तक मैं कहता हूं, यह मेरी चीज है,। धोखा दे गया, झोला ले गया। अब आगे ध्यान करूं कि न करूं? कोई चोरी न कर ले जाए, तब तक मैं दूसरे के घर चोरी करने जाऊं, | | ऐसे तो सब माया है-इसे वे बार-बार कहते हैं। मैंने कहा, ऐसे तो वह चोरी कबीर की चोरी नहीं हो सकती। कबीर की चोरी चोरी | तो सब माया है, तो इतना झोले से क्यों परेशान हो रहे हैं? और ही नहीं है। कृष्ण की हिंसा हिंसा ही नहीं है।
ऐसे सब माया है, तो वह आदमी क्या धोखा दे गया? और ऐसे इसलिए सवाल उचित है। कृष्ण की गीता और कृष्ण का संदेश सब माया है, तो किसका झोला कौन ले गया है? समझकर कोई अगर ऐसा समझ ले कि दूसरे को मारना मारना ही | नहीं, उन्होंने कहा, ऐसे तो सब माया है, लेकिन पूछने मैं यह नहीं है, बिलकुल झूठ है, समझे; लेकिन खुद का मारा जाना भी | आया हूं कि अगर ऐसा ध्यान में सरल होता जाऊं, और हर कोई मारा जाना नहीं है, इस शर्त को ध्यान में रखकर; तब कोई हर्ज नहीं | | धोखा देने लगे! है। लेकिन अपने को बचाए और दूसरे को मारे-और मजा यह है अब ये दो तलों की बातें हैं। उनके खयाल में नहीं पड़तीं, कि कि हम अपने को बचाने के लिए ही दूसरे को मारते हैं-तब फिर वह ऐसे तो सब माया है, कृष्ण से सुन लिया, और वह जो झोला कृष्ण को भूल ही जाएं तो अच्छा है।
चोरी चला गया, वहां हम खड़े हैं। और यह जो बात है, यह किसी खतरा हुआ है। इस मुल्क ने जीवन के इतने गहरे सत्यों को | | शिखर से कही गई है। हम जहां खड़े हैं, वहां यह बात बिलकुल . पहचाना था, उसकी वजह से यह मुल्क बुरी तरह पतित हुआ है। नहीं है। असल में बहुत गहरे सत्य बेईमान आदमियों के हाथों में पड़ जाएं, इस देश के पतन में, इस देश के चारित्रिक ह्रास में, इस देश के तो असत्यों से बदतर सिद्ध होते हैं। इस मुल्क ने इतने गहरे सत्यों | | जीवन में एकदम अंधकार भर जाने में और गंदगी भर जाने में, हमारे
पहचाना था कि उन सत्यों को जब तक हम परा न जान लें, तब ऊंचे से ऊंचे सिद्धांतों की हमने जो व्याख्या की है. वह कारण है। तक उनका आधा उपयोग नहीं कर सकते।
यह सवाल ठीक है। इस मुल्क ने भलीभांति जाना था कि व्यवहार तो माया है, वह | __ कृष्ण आपसे नहीं कह रहे हैं कि बेफिक्री से हिंसा करो। कृष्ण तो सपना है। तो फिर ठीक है, बेईमानी में कौन-सी बुराई है! अगर यह कह रहे हैं कि अगर यह तुम्हारी समझ में आ जाए कि कोई यह मुल्क पांच हजार साल की निरंतर चिंतना के बाद आज पृथ्वी मरता नहीं, कोई मारा नहीं जाता; तब, तब जो होता है, होने दो। पर सर्वाधिक बेईमान है, तो उसका कारण है। अगर हम इतनी लेकिन दोहरा है यह तीर। डबल ऐरोड है। यह ऐसा नहीं है कि
अच्छी बातें करने के बाद भी जीवन में एकदम विपरीत सिद्ध होते | | दूसरा मरता है तो मारो, क्योंकि कोई नहीं मरता। और जब खुद हैं, तो उसका कारण है। उसका कारण यही है कि जिस तल पर बातें | | मरने लगो तो चिल्लाओ कि कहीं मुझे मार मत डालना। ऐसा ही हैं, उस तल पर हम नहीं उठते, बल्कि जिस तल पर हम हैं, उसी | | हो गया है। तल पर उन बातों को ले आते हैं।
हम इस देश में सर्वाधिक मानते हैं कि आत्मा अमर है और कृष्ण के तल पर अर्जुन उतरे, उठे, तब तो ठीक। और अगर सबसे ज्यादा मरने से डरते हैं जमीन पर। हमसे ज्यादा कोई भी मरने अर्जुन कृष्ण को अपने तल पर खींच लाए, तो खतरा होने वाला है। से नहीं डरता। जिनको हम नास्तिक कहते हैं, जिनको हम कहते और अक्सर ऐसा होता है कि कृष्ण के तल तक उठना तो मुश्किल हैं-ईश्वर को नहीं मानते, आत्मा को नहीं मानते, वे भी नहीं डरते
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