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________________ m गीता दर्शन भाग-1 -- प्रश्नः भगवान श्री, किसी मरते और मिटते को बचा पाएं, तो कोई अर्थ नहीं है। य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम। नहीं. महावीर और बद्ध की अहिंसा का अर्थ और है। यह बचाने उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते।।। की आकांक्षा, यह न मारने की आकांक्षा! यह मारने में रस न लेने इस श्लोक के बारे में सुबह जो चर्चा हुई, उसमें | की स्थिति, यह बचाने में रस लेने का मनोभाव! जब महावीर एक आत्मा यदि हननकर्ता नहीं या हनन्य भी नहीं है, तो | चींटी को बचाकर निकलते हैं, तो ऐसा नहीं है कि महावीर के बचाने जनरल डायर या नाजियों के कनसनट्रेशन कैंप की | से चींटी बच जाती है। चींटी में जो बचने वाला है, बचा ही रहेगा; घटनाएं कैसे जस्टिफाई हो सकती हैं! टोटल | और जो नहीं बचने वाला है, वह महावीर के बचाने से नहीं बचता एक्सेप्टिबिलिटी में इनकी क्या उपादेयता है? है। लेकिन महावीर का यह भाव बचाकर निकलने का बड़ा कीमती है। इस भाव से चींटी को कोई लाभ-हानि नहीं होती, लेकिन महावीर को जरूर होती है। - कोई मरता है और न कोई मारता है; जो है, उसके | - बहुत गहरे में प्रश्न भाव का है, घटना का नहीं है। बहुत गहरे UI विनाश की कोई संभावना नहीं है। तब क्या इसका यह | में प्रश्न भावना का है, वह व्यक्ति क्या सोच रहा है। क्योंकि व्यक्ति अर्थ लिया जाए कि हिंसा करने में कोई भी बुराई नहीं | जीता है अपने विचारों में घिरा हुआ। घटनाएं घटती हैं यथार्थ में, है? क्या इसका यह अर्थ लिया जाए कि जनरल डायर ने या व्यक्ति जीता है विचार में, भाव में। आउश्वित्ज में जर्मनी में या हिरोशिमा में जो महान हिंसा हुई, वह | | हिंसा बुरी है; कृष्ण के यह कहने के बाद भी बुरी है कि हिंसा निंदा योग्य नहीं है? स्वीकार योग्य है? | नहीं होती। और कृष्ण का कहना जरा भी गलत नहीं है। असल में नहीं, कृष्ण का ऐसा अर्थ नहीं है। इसे समझ लेना उपयोगी है। | कृष्ण अस्तित्व से कह रहे हैं; अस्तित्व के बीच खोज रहे हैं। हिंसा नहीं होती, इसका यह अर्थ नहीं है कि हिंसा करने की | हिटलर जब लोगों को मार रहा है, तो कृष्ण की मनोदशा में नहीं आकांक्षा बुरी नहीं है। हिंसा तो होती ही नहीं, लेकिन हिंसा की | | है। हिटलर को लोगों को मारने में रस और आनंद है—मिटाने में, आकांक्षा होती है, हिंसा का अभिप्राय होता है, हिंसा की मनोदशा | विनाश करने में। विनाश होता है या नहीं होता है, यह बिलकुल होती है। | दूसरी बात है। लेकिन हिटलर को विनाश में रस है। यह रस हिंसा जो हिंसा करने के लिए इच्छा रख रहा है, जो दूसरे को मारने में रस ले रहा है, जो दूसरे को मारकर प्रसन्न हो रहा है, जो दूसरे को ___ अगर ठीक से समझें, तो विनाश का रस हिंसा है, मारने की मारकर समझ रहा है कि मैंने मारा-कोई नहीं मरेगा पीछे-लेकिन इच्छा हिंसा है। मरना होता है या नहीं होता है, यह बिलकुल दूसरी इस आदमी की यह समझ कि मैंने मारा, इस आदमी का यह रस कि | बात है। और यह जो रस हिटलर का है, यह एक डिसीज्ड, रुग्ण मारने में मजा मिला, इस आदमी की यह मनोकांक्षा कि मारना संभव | चित्त का रस है। है, इस सबका पाप है। समझ लेना जरूरी है कि जब भी विनाश में रस मालूम पड़े, तो पाप हिंसा होने में नहीं है, पाप हिंसा करने में है। होना तो | | ऐसा आदमी भीतर विक्षिप्त है। जितना ही भीतर आदमी शांत और असंभव है, करना संभव है। जब एक व्यक्ति हिंसा कर रहा है, तो | आनंदित होगा. उतना ही विनाश में रस असंभव है। जितना ही दो चीजें हैं वहां। हिंसा की घटना तो, कृष्ण कहते हैं, असंभव है, | | भीतर आनंदित होगा, उतना सृजन में रस होगा, उतना क्रिएटिविटी लेकिन हिंसा की मनोभावना बिलकुल संभव है। में रस होगा। ठीक इससे उलटा भी सोच लें कि फिर क्या महावीर की अहिंसा महावीर की अहिंसा एक क्रिएटिव फीलिंग है, जगत के प्रति और बुद्ध की अहिंसा का कोई अर्थ नहीं? अगर हिरोशिमा और | । एक सृजनात्मक भाव है। हिटलर की हिंसा जगत के प्रति एक आउश्वित्ज के कनसनट्रेशन कैंप्स में होने वाली हिंसा का कोई अर्थ | । विनाशात्मक भाव है, एक डिस्ट्रक्टिव भाव है। यह भाव नहीं है, तो बुद्ध और महावीर की अहिंसा का भी कोई अर्थ नहीं रह | महत्वपूर्ण है। और जहां हम जी रहे हैं, वहां अस्तित्व में क्या होता जाता। अगर आप समझते हों कि अहिंसा का अर्थ तभी है, जब हम | | है, यह मूल्यवान नहीं है। 120
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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