SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भागना नहीं - जागना है 4 को, लिखा है किताबों में कि कण-कण में परमात्मा है। नहीं, उन्होंने कहा कि मुझे वर्षों से दिखाई पड़ता है। तो मैंने कहा, और वर्षों के पहले कोशिश की होगी। मैंने कहा, आप रुकें। मेरे पास रुक जाएं और दो-चार दिन अब देखने की कोशिश न करें। दूसरे दिन सुबह उन्होंने मुझसे कहा कि आपने मुझे भारी | नुकसान पहुंचाया। मेरी तीस साल की साधना खराब कर दी । क्योंकि मैंने रात से कोशिश नहीं की, तो मुझे वृक्ष फिर वृक्ष दिखाई पड़ने लगे। अब मुझे परमात्मा दिखाई नहीं पड़ता ! तो मैंने कहा, जिसको तीस साल देखकर भी, दो-चार घंटे देखने की कोशिश न की जाए और खो जाता हो, तो आप वृक्षों के ऊपर अपना एक सपना आरोपित कर रहे हैं । उसका परमात्मा से कोई लेना-देना नहीं है। कह रहे हैं कि वृक्ष में परमात्मा है। समझाए जाएं, तो दिखाई पड़ने लगेगा। लेकिन यह वह परमात्मा नहीं है, जिसकी कृष्ण बात कर रहे हैं। आपको परमात्मा थोपना नहीं है जगत पर, आपको तो जगत के प्रति ही जाग जाना है। जागते से जगत खो जाता है और परमात्मा शेष रह जाता है। आपको सपने समझाना नहीं है अपने को कि यह झूठ है, यह झूठ है। नहीं, सपने को देख लेना है ठीक से, क्या है? और जैसे ही सपने को देख लिया जाता है कि क्या है, तो आप अचानक पाते हैं कि सपना टूट गया और नहीं है। फिर जो शेष रह जाता है, वही सत्य है। प्रयास तो हमें असत्य के लिए करने पड़ते हैं, सत्य के लिए नहीं करने पड़ते हैं। एफर्ट तो असत्य के लिए करना पड़ता है, सत्य के लिए नहीं करना पड़ता। क्योंकि जो सत्य मनुष्य के प्रयास मिलता होगा, वह सत्य नहीं हो सकता। जो सत्य मनुष्य के प्रयास बिना ही मौजूद है, वही सत्य है। सत्य आपको निर्मित नहीं करना है, वह आपका कंस्ट्रक्शन नहीं है कि आप उसका निर्माण करेंगे। सत्य तो है ही । कृपा करके असत्य भर निर्माण न करें; जो है, वह दिखाई पड़ जाएगा। मैं एक वृक्ष शाखा को अपने हाथ से खींच लेता हूं। फिर मैं राह चलते आपसे पूछता हूं कि इस वृक्ष की शाखा को मैंने इसकी जगह से नीचे खींच लिया है, अब मैं इसे इसकी जगह वापस पहुंचाना चाहता हूं, तो क्या करूं? तो आप क्या कहेंगे मुझसे कि कुछ करिए! आप कहेंगे, कृपा करके खींचिए भर मत; छोड़ दीजिए। शाखा अपनी जगह पहुंच जाएगी; शाखा अपनी जगह थी ही; आपकी कृपा से ही अपनी जगह से हट गई है। परमात्मा में पहुंचने के लिए मनुष्य को किसी एफर्ट और प्रयास की जरूरत नहीं है। परमात्मा को खोने के लिए उसने जो प्रयास किया है, कृपा करके उतना प्रयास भर वह न करे, अपनी जगह पहुंच जाएगा। | स्वप्न हमारे निर्माण हैं। सत्य हमारा निर्माण नहीं है। इसलिए बुद्ध को जब ज्ञान हुआ और लोगों ने बुद्ध से पूछा कि तुम्हें क्या मिला ? तो बुद्ध ने कहा, मुझे कुछ मिला नहीं, सिर्फ मैंने कुछ खोया है। तब तो वे बहुत हैरान हुए। उन्होंने कहा, हम तो सोचते थे कि आपको कुछ मिला है! बुद्ध ने कहा, मिला कुछ भी नहीं। जो था ही, उसे मैंने जाना है। हां, खोया जरूर कुछ । जो-जो मैंने बनाया था, वह मुझे सब देना पड़ा। अज्ञान मैंने खोया और ज्ञान मैंने पाया नहीं, क्योंकि ज्ञान था ही। जिस अज्ञान को मैं जोर से पकड़े था, उसकी वजह से दिखाई नहीं पड़ रहा था। खोया जरूर, पाया कुछ भी नहीं । पाया वही, जो पाया ही हुआ था, | सदा से मिला ही हुआ था । ठीक से समझें तो सिर्फ जागकर देखने की जरूरत है। आंख खोलकर, प्रज्ञा को पूरी तरह जगाकर, चेतना को पूरे होश से अप्रमाद में लाकर देखने भर की जरूरत है कि क्या है ! और जैसे ही हम देखते हैं कि क्या है, उसमें जो नहीं है, वह गिर जाता है; जो है, वह शेष रह जाता है। अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः । अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत ।। १८ । और, इस नाशरहित, अप्रमेय, नित्यस्वरूप जीवात्मा के ये शरीर नाशवान कहे गए हैं। इसलिए, हे भरतवंशी अर्जुन, तू युद्ध कर । अ र्जुन को युद्ध बड़ा सत्य मालूम पड़ रहा है; देह बहुत सत्य मालूम पड़ रही है; मृत्यु बहुत सत्य मालूम पड़ रही है; उसकी अड़चन स्वाभाविक है। उसकी अड़चन हमारी सबकी अड़चन है। जो हमें सत्य मालूम पड़ता है, वही उसे सत्य मालूम पड़ रहा है। कृष्ण उसे बड़ी दूसरी दुनिया की बातें कह रहे हैं। वे कह रहे हैं कि यह देह, ये शरीरधारी लोग, यह | 115
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy